मुंबई के माफियाराज की बात होती है तो सबसे पहला नाम दाउद इब्राहिम का नाम आता है। हालांकि, एक और गैंगस्टर था जिसे दाउद से बड़ा डॉन कहा जाता था। इस गैंगस्टर का नाम अमर नाइक था। मुंबई अंडरवर्ल्ड में अमर नाइक की एंट्री किसी फिल्म सरीखी है, क्योंकि अमर नाइक की पृष्ठभूमि अपराध जगत से मेल नहीं खाती थी।

मुंबई के माटुंगा में पैदा हुए अमर नाइक का जीवन दुश्वारियों से शुरू हुआ था। परिवार सड़क किनारे सब्जी का ठेला लगाकर गुजर बसर करता था। उन दिनों स्थानीय बदमाश सड़क किनारे ठेले और खोमचों से हफ्ता वसूली करते थे। एक दिन इसी हफ्ता वसूली के बीच अमर नाइक भी फंसा पर गुस्से में अमर नाइक ने सब्जी काटने वाली चाकू उठाई और बदमाशों पर टूट पड़ा। एक अदने से लड़के की धमक ने गुंडों को रफा-दफा कर दिया। बस उसी दिन से माटुंगा के इलाके में अमर नाइक एक बड़ा नाम बन गया।

80 का दशक आते-आते अमर नाइक ने अपने जैसे लड़कों के साथ मिलकर गैंग बनाया। इसके बाद नाइक गैंग ने कुछ सालों के भीतर ही कई वारदातों को अंजाम दिया। इसी समय BRA गैंग यानी अरुण गवली, रेशिम बाबू और रामा नाइक भी मुंबई में सक्रिय थी। इन दोनों गैंग के बीच अदावत तब छिड़ी जब अमर के भाई आश्विन नाइक का अपहरण हुआ। हालांकि, अश्विन किडनैपर्स के चंगुल से बच गया था, लेकिन अमर को पता था कि इस काम में गवली गैंग का हाथ है।

अमर नाइक अपनी गैंग की मदद से अरुण गवली से बदला लेना चाहता था कि तभी उसका संपर्क मुंबई के गैंगस्टर राम भट से हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो राम भट श्रीलंका से हथियारों की तस्करी करता था। साल 1985 आते-आते राम भट की मदद से अमर नाइक ने मुंबई माफियाराज में बड़ी पहचान बना ली। उस दौर में अमर नाइक अपनी माटुंगा की चाल से सारे कामों को संचालित करता था। वह अपनी कमाई रियल स्टेट के बिजनेस में खपाने लगा।

जब अमर नाइक काली कमाई को जमीन की खरीद-फरोख्त में लगा रहा था, तभी दाउद का गैंग भी अपने पांव पसार रहा था। अमर नाइक और अरुण गवली गैंग में हिंसक झड़पें शुरू हो चुकी थी। वहीं, साल 1986 तक पुलिस के निशाने पर अमर-दाउद और गवली गैंग आ चुकी थी। तीनों गैंग्स की गैंगवार मुंबई पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुकी थी। इस समय तक अमर नाइक को लोग मुंबई का ‘रावण’ कहने लगे थे। जिसका काला कारोबार तो था, लेकिन पुलिस की पकड़ से बाहर था।

1988 तक अपराध जगत में धाक जमा चुके अमर नाइक के पीछे पुलिस के अलावा गवली और दाउद गैंग भी लगी थी। लेकिन दाउद इब्राहिम भी पुलिस के नकेल कसने पर साल 1988 में दुबई भाग गया। 90 का दशक आते-आते अमर नाइक दोनों गैंग्स पर भारी था, लेकिन मुंबई पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई के चलते गैंगवार और माफिया राज नरम पड़ रहा था।

साल 1993 के मुंबई बम धमाकों के बाद पुलिस की निगाहें दाउद को ढूंढ रही थी। तभी साल 1994 में अमर नाइक के भाई आश्विन नाइक पर कोर्ट में गोली मारी गई पर वह बच गया। इस गोलीबारी में गवली गैंग के रविंद्र सावंत का नाम सामने आया था। एक साल बाद 1995 में अमर नाइक को मदनपुरा इलाके में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर के नेतृत्व में पुलिस ने घेर लिया। पुलिस से घिरने पर उसने फायरिंग शुरू की, लेकिन आधी रात को हुई इस मुठभेड़ में अमर नाइक को मार गिराया गया। कुख्यात गैंगस्टर अमर नाइक पर दर्जनों मुकदमें दर्ज थे, जिनमें से हत्या, हत्या की कोशिश, रंगदारी और जबरन वसूली जैसे संगीन मामले शामिल थे।