यूपी में ऐसे कई खूंखार गैंगस्टर हुए जिन्होंने कई सालों तक अपने इलाके में किसी राजा की तरह शासन किया। दबंगई के दम पर इन्होंने बाहुबली का तमगा हासिल किया और फिर सफेदपोश भी बने। आज हम उत्तर प्रदेश के उस कुख्यात डॉन की बात कर रहे हैं जिसने कम उम्र में ही अपराध की काली दुनिया में अपने लिए जगह बना ली।

श्रावस्ती जनपद में 10 अगस्त 1962 को अतीक अहमद का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि पढ़ाई-लिखाई में अतीक अहमद की कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। हाई स्कूल में फेल होने के बाद अतीक अहमद ने स्कूल छोड़ दिया। कच्ची उम्र में स्कूल छोड़ने वाला अतीक ढलती उम्र के साथ इतना बड़ा डॉन बन जाएगा यह शायद उसके घरवालों ने भी नहीं सोचा था।

तांगेवाले का ‘मुंडा’ बना गुंडा

अतीक अहमद का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उसके पिता का नाम हाजी फिरोज अहमद था। रोजी-रोटी की तलाश में वो देवरिया से इलाहाबाद आ गए। यहां हाजी फिरोज को धीरे-धीरे शहर में फिरोज तांगावाला के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि हाजी अपने बेटे अतीक को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। लेकिन कम उम्र में पढ़ाई छोड़ने के बाद अतीक ने जरायम की दुनिया की तरफ रूख किया। बात 1979 की है जब महज 17 साल की उम्र में अतीक अहमद पर कत्ल जैसे संगीन जुर्म का इल्जाम लगा। इसके बाद धीरे-धीरे तांगेवाले का ‘मुंडा’ सबसे बड़ा गुंडा बन गया।

जिसे उस्ताद बनाया उसकी हत्या कराई?

जुर्म की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए अतीक अहमद को उस्ताद की जरुरत पड़ी। बताया जाता है कि अतीक अहमद ने चांद बाबा को अपना उस्ताद बनाया। इसके बाद वो उनकी सरपस्ती में जुर्म की काली दुनिया में धीरे-धीरे अपने उस्ताद से भी बड़ा नाम बन गया। 80 के दशक में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी और वीरेद्र शादी, गाजीपुर में मुख्तार अंसारी, जौनपुर में धनंजय सिंह और ब्रजेश सिंह का खौफ था तो इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में अतीक अहमद के नाम का सिक्का चलता था। आपको बता दें कि गैंगस्टर एक्ट के तहत सबसे पहले अतीक अहमद पर ही केस दर्ज हुआ था। यह मुकदमा साल 1986 में दर्ज हुआ।

साल 1989 में चांद बाबा की हत्या हो गई। कहने वाले कहते हैं कि अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए अतीक अहमद ने अपने उस्ताद को ठिकाने लगाया और उसकी गद्दी पर सवार होकर इलाहाबाद के अंडरवर्ल्ड पर एक छत्र राज करने लगा। आलम ये था कि कुछ ही समय में अतीक ने अपने वर्चस्व को इतना बढ़ाया कि उसकी गैंग में 120 से भी ज़्यादा शूटर शामिल हो गए और गुंडागर्दी के बल पर अतीक सबसे बड़ा डॉन बन बैठा। पुलिस की फाइलों में अतीक अहमद के खिलाफ कई गुनाह दर्ज थे पर उसपर हाथ डालने की हिम्मत किसी में नहीं थी।

विधायक को दौड़ाकर किया छलनी

बाहुबल के दम पर अतीक अहमद ने राजनीति में भी एंट्री मारी। अतीक अहमद सांसद बन चुका था और इलाहाबाद पश्चिम की सीट खाली हो चुकी थी। अतीक ने इस सीट से अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को सपा के टिकट पर उतारा। उधर अशरफ के सामने खड़ा हुआ इलाहाबाद का एक और क्रिमिनल राजू पाल। 25 मुकदमों का ठप्पा लिए अमन पाल उर्फ राजू पाल ने बीएसपी के टिकट पर ताल ठोकी थी। कहते हैं कि राजू पाल कभी अतीक के लिए भी काम करता था और अब वो अतीक के वर्चस्व को ही चुनौती दे रहा था। इस चुनाव में राजू पाल ने अतीक के भाई को पटखनी दे दी। कहा जाता है कि यह हार अशरफ को इतनी बुरी लगी कि उसने घर में खाना-पीना तक छोड़ दिया।

25 जनवरी 2005 का दिन इलाहाबाद के लोग शायद ही कभी भूल पाएं। यह वो दिन था जब किसी फिल्मी स्टाइल में यहां सड़कों पर गोलियां चल रही थीं। आगे-आगे राजू पाल की गाड़ी और पीछे से उसपर गोलियां बरसाती एक अन्य गाड़ी। सड़क पर विधायक राजू पाल को दौड़ा-दौड़ा कर गोलियों से छलनी किया गया। पूरा शहर गोलियां की तड़तड़ाहट से गूंज रहा था। इलाहाबाद में सिविल लाइन्स से लेकर धूमनगंज तक पीछा कर के राजू और उसके साथियों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलती रहीं, जीवन ज्योति अस्पताल में जब वे पहुंचे तो तीन लोगों की मौत हो चुकी थी जिसमें राजू पाल भी शामिल था। इस हत्याकांड का सीधा आरोप अतीक अहमद और उसके गुर्गों पर लगा था।

कई गंभीर आरोप लगे

5 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अतीक अहमद पर 90 से ज्यादा क्रिमिनल केस हैं। मर्डर, अपहरण, अवैध खनन, रंगदारी, धोखाधड़ी समेत कई ऐसे गुनाह हैं जिसमें उस पर नामजद एफआईआऱ दर्ज हैं। साल 1989 में जब पुलिस ने एनकाउंटर में अतीक अहमद के सबसे बड़े कम्पटीटर शौकत इलाही को ढेर किया तब इससे अतीक अहमद का मनोबल काफी बढ़ गया। अतीक अहमद पर जो बड़े आरोप लगे थे उनमें 1995 में इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में एक हत्या का मामला, साल 2001 में अपने राजनीतिक विरोधी जावेद इकबाल उर्फ पप्पू पर जानलेवा हमला, जिसमें जावेद के बॉडीगार्ड की मौत हो गई थी। 2 जुलाई 2001 में अपने पड़ोसी और मुरली मनोहर जोशी के करीबी अशरफ को बीजेपी छोड़ने के लिए धमकी देने का मामला, 19 अक्टूबर 2002 को नसीम अहमद उर्फ नस्सन की हत्या करने का मामला और साल 2004 में बीजेपी नेता अशरफ़ की हत्या का आरोप शामिल है।