मुंबई में लंबे समय तक डॉन हाजी मस्तान का दबदबा रहा, लेकिन उसी दौर में एक और डॉन हुआ जिसे ‘काला’ बाबू के नाम से जाना जाता था। लेकिन इस काला बाबू को डॉन बनाने वाला शख्स हाजी मस्तान ही था। हम बात कर रहे हैं अंडरवर्ल्ड डॉन वरदराजन मुदालियार उर्फ काला बाबू उर्फ वर्दा की। हाजी मस्तान और वर्दा की दोस्ती बेजोड़ थी। मजबूत इसलिए भी कि हाजी मस्तान और वर्दा दोनों तमिलनाडु से थे और मुंबई आने पर दोनों ने ही कुली का काम किया था। अंतर बस इतना था कि हाजी मस्तान, वर्दा से पहले स्थापित हो गया था।

वरदराजन का जन्म तमिलनाडु के थूटुकुडी में 1926 को हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी इसलिए वह रोजगार की तलाश में 1960 में मुंबई आ गया। वरदराजन को शुरुआत से ही जल्दी ताकतवर और अमीर शख्स बनने की चाहत थी। लेकिन जब कोई काम नहीं मिला तो वह स्टेशन पर कुली का काम करने लगा और यही उसकी मुलाकात अवैध शराब के धंधे में जुड़े लोगों से हुई। इसके बाद वरदराजन थोड़े ही समय में ‘वर्दा’ भाई बन गया।

अवैध शराब के धंधे में उतरा वर्दा अब अपना बिजनेस बढ़ाने की कोशिश में था, क्योंकि उसे अब मुंबई में रहने वाले तमिलों का साथ भी मिल रहा था; लेकिन उसके सामने हाजी मस्तान था। कुछ ही समय बाद एक चोरी के केस में पुलिस ने वर्दा को गिरफ्तार कर लिया। यही उसकी मुलाकत हाजी मस्तान से हुई। हाजी मस्तान ने वर्दा से कहा कि हमें तुम्हारी जरूरत है। तुमने जो भी चुराया है उसे वापस कर दो और हमारे बिजनेस में हिस्सेदार बन जाओ। बस एक मुलाकात और वर्दा अब पूरी मुम्बई में राज करने वाला था।

हाजी मस्तान से जुड़ने के बाद उसने डॉकयार्ड से सोने की तस्करी शुरू की और इसके बाद रियल स्टेट के धंधे में भी आ गया। सुपारी लेकर जमीन पर कब्ज़ा और नशीले पदार्थों की तस्करी उसका मुख्य धंधा था। इसी दौरान हाजी मस्तान ने उसकी मुलाकात डॉन करीम लाला से करवाई और काम के लिए मुंबई में इलाकों को बांट लिया।

70 के दशक में पूर्व-मध्य मुंबई का सारा काम देखने वाले वर्दा की अब गहरी पैठ थी और वह तमिल लोगों के बीच मजबूत पकड़ वाला डॉन बन चुका था। वर्दा का खौफ इतना था कि पुलिस भी उसके इलाके में इजाजत लेकर मिलने जाती थी। समय – समय पर जरूरतमंदों की मदद करना और धार्मिक कार्यों में लगने वाला पैसा वर्दा का ही हुआ करता था।

लेकिन हाजी मस्तान को पहले 1974 में और फिर 1975 में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था। जब वह बाहर आया तो वह रियल स्टेट के धंधे में आ गया। वहीं कुछ ही सालों बाद मुंबई के एक पुलिस अफसर यादवराव पवार ने वर्दा गैंग के गुर्गों को एनकाउंटर में मार गिराने के साथ वरदराजन को मुंबई छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

प्रशासन और सरकारी तंत्र पर जोरदार पकड़ वाले वर्दा ने कई बार पवार को मैनेज करने की कोशिश की लेकिन 1980 में उसे चेन्नई वापस जाना पड़ा। जहां कुछ सालों बाद 1988 में उसकी मृत्यु हो गई। हाजी मस्तान ने उसकी अंतिम इच्छानुसार एक विशेष विमान से उसके शव को मुंबई मंगवाया और लाखों की भीड़ के बीच उसका अंतिम संस्कार करवाया।