अफगानिस्तान से अमेरिकी और अन्य पश्चिमी देशों की फौजों के लौटते ही तालिबान का कहर दिखने लगा है। उन लोगों को खुली धमकी मिल रही हैं जिन्होंने अमेरिका या अन्य दूसरे देशों की मदद की थी। उन्हें कहा जा रहा है कि या तो सरेंडर करो या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ। तालिबान के इस कदम से आम लोगों के चेहरों पर खौफ साफ देखा जा सकता है। तालिबान की धमकी ऐसे कई लोगों को मिली है जो पश्चिमी देशों के साथ वहां के आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने का काम कर रहे थे। ऐसे लोगों के घरों पर रात के अंधेरे में चिट्ठियां चस्पा की जा रही हैं।

सूत्रों का कहना है कि तालिबान के लड़ाके रात में ऐसे लोगों के घरों पर चिट्ठी लगाकर जा रहे हैं जो कहीं न कहीं पश्चिमी देशों के साथ जुड़े रहे थे। ऐसे लोगों को कहा गया है कि वो तालिबान की कोर्ट में पेश हों। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो मरने के लिए तैयार हो जाएं। लोगों की उलझन है कि उनकी मदद के लिए कोई बचा नहीं तो ऐसे में वो करें भी तो क्या। ऐसे लोग फिलहाल छिपते छिपाते घूम रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वो तालिबान की कोर्ट में गए तो भी मरना है और उनके हाथ लग गए तो भी मौत तय है। उनका कहना है कि अब वो क्या करें, समझ से बाहर हो गया है।

बंदूक वाली सरकार को समर्थन नहीं

काबुल हवाई अड्डे के बाहर विस्फोट

एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे लोग अपने घरों को छोड़कर यहां वहां छिपते घूम रहे हैं। 34 साल के नाज ऐसे ही व्यक्ति हैं। छह बच्चों के पिता की कंस्ट्रक्शन कंपनी ने ब्रिटिश सेना की सड़कें बनाने में मदद की थी। उन्हें भी तालिबान का धमकी भरा पत्र मिला है। हालांकि, नाज ने ARAP के तहत ब्रिटेन में शरण की गुहार लगाई थी पर उनकी दरखास्त खारिज हो गई है। उनका कहना है कि अगर वो तालिबान की कोर्ट में गए तो निश्चित तौर पर उन्हें मौत की सजा दी जाएगी। उनका कहना है कि जो पत्र उन्हें मिला है उस पर तालिबान की मुहर लगी है।

शिर नाम के व्यक्ति ने बताया कि उन्हें भी ब्रिटिश फौज की मदद करने पर तालिबान से धमकी मिली है। वो छिपते घूम रहे हैं। देश छोड़ने के लिए तीन बार कोशिश की कि किसी तरह से फ्लाईट लेकर ब्रिटेन पहुंच जाए पर नाकामी ही हाथ लगी। तालिबान का ये तरीके सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिद्दीन लड़ाकों ने इस्तेमाल किया था। तालिबान पहले इस तरह की धमकी ग्रामीण इलाकों में दे रहा था पर अब वो शहरी लोगों को डराने के लिए भी इस तरीके का इस्तेमाल कर रहा है।

गौरतलब है कि अफगानिस्तान में कानून व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। हिंसा रुकने का नाम ही नहीं ले रही। अमेरिकी व नाटो सैनिकों की वापसी से हालात और ज्यादा बदतर हो गए हैं। अफगानिस्तान में अमेरिका ने साल 2001 से अब तक करीब 2.26 लाख करोड़ डॉलर खर्च किया है। अमेरिका ने सिर्फ अफगानिस्तान की सेना और पुलिस फोर्स को खड़ा करने के लिए करीब 83 बिलियन डॉलर खर्च किए। इतना खर्च करने बावजूद आखिरकार अफगान सेना पस्त हो गई। उनके पस्त हौसले देखकर ही अमेरिका ने पलायन का मन बनाया।