हाई कोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया है जो हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था। जानकारी के अनुसार सजा सुनाये जाने के बाद वह 12 साल से अधिक समय जेल में काट चुका है। न्यायालय ने कहा कि 2005 में जब अपराध किया गया था तब आरोपी किशोर था। जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की मई 2023 की रिपोर्ट का उल्लेख किया। दरअसल, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को शख्स के किशोर होने संबंधी याचिका के संबंध में जांच करने को कहा गया था।

अपराध के समय किशोर होने की दी दलील

शख्स ने याचिका में कहा था कि उसकी जन्मतिथि दो मई, 1989 है। पीठ में न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार भी शामिल रहे। पीठ ने पांच सितंबर को पारित आदेश में कहा, “अगर याचिकाकर्ता की जन्मतिथि दो मई, 1989 है तो अपराध की तारीख यानी 21 दिसंबर, 2005 को वह 16 साल 7 महीने का था। इस हिसाब से अपराध करने की तारीख पर याचिकाकर्ता किशोर था।’’

इस याचिका पर कोर्ट ने सुनाया फैसला

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की उस याचिका पर आदेश सुनाया जिसमें किशोर न्याय (बाल देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के अनुसार उसके किशोर होने का सत्यापन करने का अनुरोध किया गया। उसने कहा कि कानून के प्रावधानों के अनुसार याचिकाकर्ता अधिकतम तीन साल हिरासत में रह सकता है।

तीनों अदालत ने दोषी को सुनाई थी उम्रकैद की सजा

पीठ ने कहा कि चूंकि हमारे सामने मौजूदा रिट याचिका (2022 में दायर) में पहली बार किशोरवयता की दलील रखी गई थी। इसलिए 2005 में शुरू हुई आपराधिक कानून की प्रक्रिया के कारण याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया और निचली अदालत, उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय तीनों ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता पहले ही 12 साल से अधिक समय जेल में बिता चुका है। फैसले में कोर्ट ने जेल में बंद शख्स को रिहा करने का आदेश दिया।