पत्रकारों के पास कानून अपने हाथ में लेने का लाइसेंस नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान ये सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने चार पत्रकारों की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पत्रकार या रिपोर्टर होने का मतलब ये नहीं है कि आपके पास कानून अपने हाथ में लेने का लाइसेंस है।
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने की टिप्पणी
दरअसल, दो साल पुराने सदाकत पठान बनाम मध्य प्रदेश राज्य केस के चार आरोपी पत्रकारों की अग्रिम जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की दो सदस्यीय बेंच ने बच्चों की तस्करी रैकेट से जुड़े एक न्यूज रिपोर्ट को दबाने के लिए रिश्वत लेने के आरोपी एक दैनिक अखबार के रिपोर्टर समेत मध्य प्रदेश के कुछ और पत्रकारों को गिरफ्तारी से पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा को हटाते हुए यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने स्टेटमेंट में और क्या कहा
बार एंड बेंच में छपी सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि आरोपी अन्य मामलों में भी शामिल थे। कोर्ट ने यह राय दी कि उनको मिले अंतरिम संरक्षण जारी रखने का कोई कारण नहीं है। कोर्ट ने कहा, “हालांकि इस स्तर पर हमें आरोपों की प्रकृति में जाने की आवश्यकता नहीं है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता अन्य मामलों में भी शामिल हैं, इस स्तर पर हमें इस न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम सुरक्षा जारी रखने का कोई कारण नहीं दिखता है।”
पहले दी गई अंतरिम संरक्षण को बंद करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुनवाई के दौरान आरोपियों ने कहा कि उनके खिलाफ एक समाचार रिपोर्ट को दबाने के लिए रिश्वत या फिरौती मांगने के आरोप कमजोर थे। हालाँकि, कोर्ट ने आखिरकार उन्हें पहले दी गई अंतरिम संरक्षण को बंद करने का फैसला लिया। जस्टिस बोपन्ना ने मौखिक रूप से कहा,”पत्रकार होने का मतलब यह नहीं है कि आपके पास कानून अपने हाथ में लेने का लाइसेंस है… आजकल कुछ भी विश्वसनीय या अविश्वसनीय नहीं है।”
जांच अधिकारी तय करें कि हिरासत में लेने की जरूरत है या नहीं- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सदाकत पठान और बाकी आरोपियों द्वारा दायर व्यक्तिगत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आरोपियों को अंतरिम राहत दी थी। कोर्ट ने बुधवार को कहा कि मुख्य मामले में आरोपियों के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है। गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण हटाने के अलावा अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता को हिरासत में लेने की आवश्यकता है या नहीं यह जांच अधिकारी द्वारा विचार किया जाने वाला मामला है और केवल कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी।”
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा ठुकराई जा चुकी थी अग्रिम जमानत की याचिका
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत की याचिका को अस्वीकार करने के बाद आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। हाई कोर्ट ने सदाकत पठान की जमानत याचिका खारिज करते हुए यह भी टिप्पणी की थी कि पत्रकारिता की आड़ में किए गए परोक्ष कृत्यों को बचाया नहीं जा सकता। हाई कोर्ट ने कहा था, “यह स्पष्ट है कि आवेदक के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, वे एक पत्रकार या समाचार पत्र के लिए मान्यता प्राप्त रिपोर्टर के रूप में आवेदक के कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित नहीं हैं। यदि किसी पेशे की आड़/छाया के तहत कोई परोक्ष कार्य किया जाता है, जिसे सुरक्षा नहीं दी जा सकती है… प्रथम दृष्टया, यह नहीं कहा जा सकता है कि वर्तमान आवेदक को झूठे मामले में फंसाया गया है और इसकी कोई जांच की आवश्यकता नहीं है।”
क्या है समाचार दबाने के लिए रिश्वत मांगने का पूरा मामला
न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, 25 जुलाई, 2021 को एक दैनिक अखबार ने मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के एक मामले पर रिपोर्ट की थी। वहां एक जोड़े पर एक नवजात बच्चे को बेचने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था। घटनाओं में आए एक मोड़ के बाद पुलिस ने आखिरकार खुलासा किया कि वे मामले में स्थानीय पत्रकारों की भूमिका की भी जांच कर रहे थे।
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Pocso Act और Juvenile Justice Act के तहत आपराधिक शिकायत
एक शिकायत के अनुसार, स्थानीय पत्रकारों को ब्लैकमेल किया गया था और आरोपियों में से एक से फिरौती की मांग की गई थी और धमकी दी गई थी कि अगर फिरौती नहीं दी गई तो वे एक रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे जिसमें आरोप लगाया जाएगा कि वह बच्चों की तस्करी में शामिल था। आरोपी-शिकायतकर्ता ने कहा कि उस पर पत्रकारों को 20 रुपए लाख का भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया था। पत्रकारों के खिलाफ अपहरण, जबरन वसूली और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Pocso Act) और किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज की गई थी। पत्रकारों ने आरोपों से इनकार किया है।