मर्दों की खुदकुशी के आंकड़ों को पेश करके एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट से मांग कि वो एक नेशनल कमीशन का गठन करने का आदेश जारी करे, जिससे उन लोगों को समय रहते न्याय मिल सके जो परिवार की वजह से तनावग्रस्त हैं लेकिन उसका ये पैंतरा उलटा पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने वकील की ही क्लास लगाकर याचिका खारिज कर दी। जस्टिस का सवाल था कि क्या आपको पता है कि शादी के पहले दूसरे और तीसरे साल में कितनी महिलाएं पारिवारिक कारणों से खुदकुशी करती हैं?
दरअसल, याचिका में घरेलू हिंसा के शिकार विवाहित पुरुषों में बढ़ती आत्महत्या की दर से निपटने के लिए दिशानिर्देश और ऐसी शिकायतों से निपटने के लिए ‘राष्ट्रीय पुरुष आयोग’ की स्थापना की मांग की गई थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया। जैसे ही पीठ ने मामले पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की, याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने का फैसला किया।
इस दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर आप हमसे यह उम्मीद करते हैं कि इन पतियों ने पत्नी के उत्पीड़न के कारण आत्महत्या की है तो आप दुखद रूप से गलत हैं। दायर की गई याचिका में भारत के विधि आयोग को अनुसंधान करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। इसमें विवाहित पुरुषों के बीच आत्महत्या के मुद्दे और इससे निपटने के लिए “राष्ट्रीय पुरुष आयोग” की स्थापना का सुझाव दिया गया था।
वकील ने अदालत के समक्ष राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का डेटा प्रस्तुत कर कहा था कि विवाहित पुरुषों में आत्महत्या का आंकड़ा चौकाने वाला है। उसने अपनी याचिका में कहा था “मेरी प्रार्थना है कि ऐसा कोई प्रावधान या रास्ता नहीं है जहां मैं इस तरह का चरम कदम उठाने से पहले अपना गुस्सा जाहिर कर सकूं।”
इस पर न्यायमूर्ति कांत ने मौखिक रूप से टिप्पणी कर कहा, “किसी के प्रति गलत सहानुभूति का कोई सवाल ही नहीं है। आप एक तरफा तस्वीर पेश करना चाहते हैं जिसे स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं।” “क्या आप हमें वह डेटा दे सकते हैं कि देश में कितनी युवा महिलाएं शादी के एक, दो या तीन साल के भीतर मर रही हैं?”
न्यायालय ने यह भी कहा कि घरेलू हिंसा के पीड़ित पुरुष बिना किसी उपचार के नहीं हैं और इससे निपटने के लिए कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं। ऐसे मामलों में जहां वास्तव में किसी पुरुष को उसकी पत्नी परेशान करती है या यह आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती है तो जो भी अपराध का शिकार है उसके परिवार के सदस्य मामला दर्ज करा सकते हैं। वे उस व्यक्ति पर मुकदमा चला सकते हैं। कानून इसका ख्याल रखता है। इसके लिए पर्याप्त प्रावधान हैं।
वकील ने प्रस्तुत किया कि विशाखा के मामले में न्यायालय ने दिशानिर्देश निर्धारित किए थे जिसके कारण कानून बना। जिस पर पीठ ने जवाब दिया कि जब न्यायालय को लगेगा कि मुद्दे न्यायसंगत हैं तो न्यायालय हस्तक्षेप करेगा। क्या यह न्यायसंगत मुद्दा है?
एडवोकेट महेश कुमारी तिवारी ने NCRB डेटा का दिया हवाला
दरअसल, एडवोकेट महेश कुमारी तिवारी ने दायर याचिका में 2021 में प्रकाशित एनसीआरबी डेटा का हवाला दिया था। उन्होंने कहा कि साल 2021 में लगभग 33.2 प्रतिशत पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं और 4.8 प्रतिशत ने विवाह संबंधी मुद्दों के कारण सुसाइड कर लिया। याचिका में कहा गया है कि 18,979 पुरुषों ने आत्महत्या की है जो लगभग (72 प्रतिशत) है और कुल 45,026 महिलाओं ने आत्महत्या की है जो लगभग 27 प्रतिशत है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी।