मुंबई अंडरवर्ल्ड में कई डॉन हुए जिनका कारोबार खौफ के दम पर कई सालों तक फलता-फूलता रहा। लेकिन इन अपराधियों के बीच एक लड़का झुग्गी बस्ती से निकलकर अपराध की दुनिया में आया था, जिसका नाम अरुण गवली था। ये वही गवली था जो बाद में जुर्म की दुनिया में ‘सुपारी किंग’ के नाम से मशहूर हुआ।
अरुण गवली का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में हुआ था। अरुण के पिता गुलाब राव मूल रूप से एमपी के खंडवा के निवासी थे, जो साल 1950 में नौकरी के चलते मुंबई अहमदनगर जा बसे थे। मिल में काम करने वाले गुलाब राव की नौकरी छूटते ही अरुण का स्कूल भी छूट गया और फिर वह शक्ति मिल्स में नौकरी करने लगा। मिल में काम करने के बाद से ही अरुण छोटे-मोटे गैरकानूनी धंधों में शामिल हो गया।
इस दौर में मुंबई दाउद इब्राहिम, करीम लाला, हाजी मस्तान और वरदराजन जैसे डॉन के नाम से जानी जाती थी। लेकिन अरुण जैसे-जैसे जुर्म की दुनिया में आता गया वैसे-वैसे मुंबई खाली होती गई।
1980 और जुर्म की शुरुआत: 80 के दौर में अरुण गवली अपने साथ पढ़ने वाले रामा नाइक और रेशिम बाबू के साथ आ गया। उस वक्त रामा और रेशिम अपनी गैंग के जरिये वसूली, फिरौती और तस्करी का धंधा करते थे। इसी साल डॉन वरदराजन भी चेन्नई चला गया, करीम लाला ने 1985-86 में जुर्म की दुनिया को अलविदा कह दिया था। अब मुंबई की जुर्म की दुनिया में दाउद इब्राहिम और पनपता हुआ रामा नाइक, अरुण गवली का गैंग ही बचे थे।
दाउद से छिड़ी अदावत: 1986 के बाद दाउद इब्राहिम अब पूरी मुंबई का बेताज बादशाह बन चुका था। लेकिन दो साल बाद 1988 में दाउद भी दुबई चला गया। दाउद के जाने के बाद एक पुलिस एनकाउंटर में नाइक को मारा गया, अरुण को शक था कि दाउद ने ही उसकी मुखबिरी की थी। इसके बाद वह और दाउद जानी-दुश्मन बन गए।
दगड़ी चाल थी सुपारी किंग का ठिकाना: 90 के दशक में अरुण गवली ने अपना सारा धंधा अपने घर यानी दगड़ी चाल से शुरू किया। हफ्ता वसूली, रंगदारी और सुपारी किलिंग अब गवली का मुख्य धंधा हो चुका था। साथ ही अरुण गवली को लोगों के बीच सुपारी किंग के नाम से भी जाना जाने लगा।
जब राजनीति में आजमाया हाथ: एक समय आया जब उसे लगा कि कानून की हाथ उसकी तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे में साल 2004 में एक पार्टी अखिल भारतीय सेना बनाई और विधानसभा चुनावों में कई प्रत्याशी भी उतारे। खुद अरुण गवली ने चिंचपोकली से चुनाव लड़ा और जीता।
साल 2008 की हत्या और दोषी करार: सुपारी किंग अरुण गवली अब विधायक था लेकिन उसने शिवसेना के कॉरपोरेटर कमलाकर जामसांडेकर की हत्या करवा दी। मामला शिवसेना से जुड़ा था तो लाजमी था कि हल्ला हुआ फिर अदालत ने अरुण गवली को इस मामले में दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी।
अरुण गवली के जेल जाने के बाद पुलिस ने उसके पूरे गैंग को खत्म कर दिया। इस समय वह नागपुर जेल में अपने गुनाहों की सजा काट रहा है।