आज बात देश के ऐसे जासूस की जो हर हालात में देश के लिए खड़ा रहा। वो सालों पड़ोसी मुल्क की सेना में रहा और देश की मदद करता रहा। देश के इस सबसे बड़े जासूस का नाम रविंद्र कौशिक था। रविंद्र की उनकी कुशलता और चपलता के चलते ‘टाइगर’ नाम दिया गया था। हालांकि, जीवन के कठिन हालातों में इस जासूस को देश का साथ नहीं मिल पाया, जिसका जिक्र कौशिक का परिवार कई बार करता रहा।
रविंद्र कौशिक का जन्म 11 अप्रैल 1952 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था। बड़े होते-होते उन्होंने 65 और 71 के युद्ध करीब से देखे थे। एसडी बिहानी कॉलेज में पढ़ने के दौरान वह थियेटर आर्टिस्ट हुआ करते थे। साल 1972 में जब वह लखनऊ एक नाटक के मंचन के लिए आए तो एक खुफिया एजेंसी के अधिकारी की नजरों में चढ़ गए। इस नाटक में उन्होंने एक जासूस की भूमिका निभाई थी, जो दुश्मनों के चंगुल में फंसने के बाद भी देश के राज नहीं उगलता है।
साल 1973 में बीकॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह दिल्ली चले गए और वहां खुफिया एजेंसी रॉ के साथ दो साल की ट्रेनिंग पूरी की। यहां उन्होंने पंजाबी, उर्दू सीखने के साथ इस्लाम से जुड़ी कई सारी जानकारियां जुटाई। इसके बाद वह 1975 में नबी अहमद शाकिर बनकर पड़ोसी मुल्क में दाखिल हुए। रविंद्र कौशिक ने लाहौर को अपना ठिकाना बनाया और बड़े कॉलेज में दाखिला लेकर एकेडमिक डिग्री हासिल की।
पहचान छुपाने में माहिर रविंद्र कौशिक ने थोड़े दिनों में ही पाकिस्तानी सेना ज्वाइन कर ली। इसके बाद वह मेहनत की दम पर सेना में मेजर रैंक तक पहुंचे। साथी ही किसी को शक न हो इसलिए बटालियन के ही एक अधिकारी की बेटी से शादी भी की। 1971 की हार के बाद पाकिस्तान लगातार साजिश रच रहा था, लेकिन रविंद्र कौशिक उसे असफल करते जा रहे थे।
रविंद्र कौशिक ने 1979 से 1983 तक अहम जानकारियां साझा कर भारत को दुश्मन देश से बचाए रखा। इसी के चलते देश के तत्कालीन गृहमंत्री ने रविंद्र कौशिक को ‘टाइगर’ नाम दिया था। वहीं, आईबी के वरिष्ठ अधिकारी रहे एम. के धर ने रविंद्र कौशिक पर लिखी गई किताब “मिशन टू पाकिस्तान” में लिखा था कि वह हमारे देश की अमूल्य धरोहर थे। उन्होंने पकिस्तान में रहते हुए अहम जानकारी देकर करीब 20 हजार सैनिकों की जान बचाई थी।
हालांकि, साल 1983 में रविंद्र कौशिक तब मुश्किल में पड़ गए, जब इनायत मसीह नाम के जासूस की एक गलती के चलते उनके 8 साल का भेद खुल गया था। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर सियालकोट सेंटर में भेज दिया गया। यहां ‘टाइगर’ को कई तरह की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ी पर उन्होंने मुंह नहीं खोला। फिर साल 1985 में उन्हें मौत की सजा सुनाकर मियांवाला जेल भेज दिया गया। कई सालों तक जेल में रहने वाले टाइगर ने टीबी और ह्रदय रोगों के चलते नवंबर 2001 में आखिरी सांस ली। इसके बाद उन्हें न्यू सेंट्रल मुल्तान जेल में दफना दिया गया था।