महज 13 साल की उम्र में डाकुओं ने उसका अपहरण कर लिया और उसे ले गए चंबल के बिहड़ों में। उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के एक गरीब ठाकुर परिवार में जन्मी इस मासूम को डाकुओं से खौफ लगता था। लेकिन डरी-सहमी सी यह बच्ची खूंखार डाकुओं के बीच रही और फिर एक दिन वो खुद बन गई ‘डाकूरानी’। जी हां, यह कहानी है उस खूंखार डकैत की जिसके खौफ से 80-90 के दशक में चंबल के इलाकों में सन्नाटा पसरा रहता था। सन् 1983 में कुख्यात डकैत लाल राम ने जिस बच्ची का अपहरण किया था उसका नाम है सीमा परिहार। 18 साल की उम्र तक सीमा बंजर जंगल में दुर्दांत डाकुओं के बीच ही पली-बढ़ी। जिसका नतीजा यह हुआ कि सीमा परिहार जल्दी ही चंबल की सबसे बड़ी डकैत बन कर उभरी। सीमा फुलन देवी को अपना आदर्श मानती थी। माथे पर काला टीका, सिर पर लाल पट्टी, हाथ में दुनाला बंदूक और बदन पर बागी वर्दी पहनी सीमा परिहार ने एक समय चंबल की घाटियों में ऐसा खौफ कायम किया कि कई कोस दूर तक लोग सिर्फ सीमा का नाम सुनकर ही थर्रा उठते थे। कहा जाता है कि इस ‘डाकूरानी’ का खौफ 6 लाख एकड़ जमीन तक था। आंकड़ें बताते हैं कि सीमा ने करीब 30 डकैती और 200 किडनैपिंग को खुद अंजाम दिया है। इतना ही नहीं कहा तो यह भी जाता है कि सीमा ने 70 हत्याएं की।
यह इस ‘डाकूरानी’ की खौफ का ही आलम था कि उन दिनों पुलिस की मोस्ट वांटेड लिस्ट में उसका नाम सबसे ऊपर रखा गया था। उस वक्त पुलिस ने सीमा को जिंदा या मुर्दा पकड़वाने वाले को 40 लाख रुपए इनाम देने का ऐलान भी कर दिया था। दिनदहाड़े आंधी की तरह संगीन वारदातों को अंजाम देना सीमा के बाएं हाथ का खेल माना जाता था। कई बार सीमा और पुलिस के बीच सीधी मुठभेड़ हुई लेकिन सीमा हर बार बच निकली। हथियार चलाने और हथगोले फेंकने में माहिर इस डकैत के नाम से ही अच्छे-अच्छे माथे पर आए पसीने को पोंछना भी भूल जाते थे। लेकिन ऐसा नहीं है कि डाकू सीमा परिहार की कहानी में सिर्फ खौफ और आतंक ही भरा है इस डकैत की कहानी में लव ट्रैंगल भी है। डाकू सीमा परिहार ने मशहूर डाकू निर्भय गुज्जर से बिहड़ों में ही शादी रचाई थी। कहा जाता है कि सीमा का कन्यादान डाकू लालाराम ने ही किया था। लेकिन बाद में यह खुलासा हुआ कि सीमा का पहला प्यार डाकू जय सिंह था। जब पुलिस हाथ धोकर जय सिंह के पीछे पड़ी तब जय सिंह ने सीमा को निर्भय के हवाले कर दिया। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि सीमा ने दूसरी शादी लालाराम से भी रचाई थी। लालाराम और सीमा को एक बेटा भी हुआ।
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बाद में लालराम और निर्भय गुज्जर गैंग में गैंगवार हो गया और साल 2000 में पुलिस ने लालाराम को एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया। लालराम की मौत के बाद इस ‘डाकूरानी’ का बिहड़ों की जिंदगी से मोहभंग हो गया। 18 साल तक चंबल में खौफ की पर्याय रही सीमा परिहार ने जून 2000 में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। सीमा को जेल हो गई और उसपर करीब 29 मामले दर्ज हुए। जिसमें 8 मर्डर, आधा दर्जन किडनैपिंग के मामले शामिल हैं। साल 2005 में जब पुलिस ने निर्भय गुज्जर को मार गिराया तब सीमा ने पुलिस से अपने पति के शव सौंपने की अपील भी की थी हालांकि पुलिस ने शव देने से इनकार कर दिया था। बावजूद इसके सीमा ने वाराणसी पहुंचकर निर्भय की अस्थियां विसर्जित की थी।
सरेंडर से सुर्खियां बटोरने वाली सीमा को साल 2001 में राजनीति में शामिल होने का ऑफर भी मिला। साल 2002 में यूपी विधानसभा चुनाव में सीमा ने शिवसेना का समर्थन किया। नवंबर 2006 में उसने इंडियन जस्टिस पार्टी ज्वायन किया। जनवरी 2008 में वो लोकजन शक्ति पार्टी में शामिल हुई। इसके बाद वो समाजवादी पार्टी में भी शामिल हो गई। सीमा परिहार की जिंदगी पर एक फिल्म ‘वुंडेड’ भी बनी। खास बात यह है कि इस फिल्म में डाकू का रोल खुद सीमा ने ही निभाया था। यह फिल्म साल 2006 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने क्रिटिक्स अवार्ड भी जीते। साल 2010 में सीमा टीवी शो ‘बिग बॉस’ में नजर आईं। करीब 78 दिन यानी 11 हफ्तों तक वो ‘बिग बॉस’ के घर में भी रहीं। इसके अलावा सीमा ने दूरदर्शन पर आने वाले वाले शो ‘रणभूमि’ में भी काम किया।
