महिलाएं पुलिस की कस्टडी में भी सुरक्षित नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार 2017 से 2022 तक हिरासत में बलात्कार के 270 से अधिक मामले दर्ज किए गए। ये आंकडें चौकाने वाले हैं। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इन घटनाओं के लिए कानून प्रवर्तन प्रणालियों में संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को जिम्मेदार बताया है। इस खबर के बारे में जानकर लोग हैरान है। लोगों का कहना है कि महिलाएं हिरासत में भी सुरक्षित नहीं है।

2027 में दर्ज किए गए थे दुष्कर्म के 89 मामले

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, अपराधियों में पुलिसकर्मी, लोक सेवक, सशस्त्र बलों के सदस्य और जेलों, सुधार गृहों, हिरासत स्थलों के साथ अस्पतालों के कर्मचारी शामिल हैं। आंकड़ों के अनुसार, 2017 में 89 में मामले दर्ज किए गए थे जो 2018 में घटकर 60, 2019 में 47, 2020 में 29, 2021 में 26 और 2022 में 24 रह गए। जिससे यह पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में ऐसे मामलों में धीरे-धीरे कमी आई है।

उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले

हिरासत में दुष्कर्म के मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) के तहत दर्ज किए जाते हैं। 2017 के बाद से हिरासत में दुष्कर्म के दर्ज किए गए 275 मामलों में सबसे अधिक 92 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गए। इसके बाद 43 मामलों के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा।

‘पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, “हिरासत व्यवस्था दुर्व्यवहार के लिए ऐसे अवसर प्रदान करती है, जहां सरकारी कर्मचारी अक्सर अपनी शक्ति का इस्तेमाल यौन इच्छा पूरी करने के लिए करते हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “ऐसे कई उदाहरण हैं जहां महिलाओं को उनके संरक्षण या उनकी कमजोर स्थिति, जैसे तस्करी या घरेलू हिंसा के कारण हिरासत में लिया गया और उनके साथ यौन हिंसा की गई जो प्रशासनिक संरक्षण की आड़ में शक्ति के दुरुपयोग को दर्शाता है।”