राजस्थान के भरतपुर जिले का एक गांव है जघीना। इस गांव में गौरव सिंह सोगरवाल पले-बढ़े। पिताजी अध्यापक थे और घऱ में खेती-बाड़ी भी होती थी। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े गौरव खुद उन दिनों प्रत्यक्ष रूप से खेती-किसानी से जुड़े रहे। गौरव सिंह के घर पर आर्थिक समस्याएं जरुर थीं पर पिता किसी तरह बेटे को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। इसके लिए वो दिन-रात खेतों में पसीना बहाया करते थे।
गौरव सिंह सोगरवाल ने एक साक्षात्कार में बताया था कि उनके पिता चाहते थे कि वो एक अफसर बनें। उनके पिता ने ही सिविल सर्विस के प्रति गौरव के मन में आकर्षण पैदा किया। गौरव अपने पिता के सपने को पूरा करना चाहते थे औऱ इस बीच उनके साथ एक ऐसा हादसा हुआ जिसे वो कभी भूल नहीं सके। दरअसल एक सड़क दुर्घटना में उनके पिता की मौत हो गई। बेटे को अफसर बनाने का सपना लिए पिता की मौत से गौरव को गहरा आघात लगा।
परिवार की आर्थिक परेशानियों को गौरव ने नजदीक से देखा। जीवन के कई सारे उतार-चढ़ावों को देखने के बाद गौरव सिंह सोगरवाल का सिविल सेवा में जाने का सपना अब और भी ज्यादा दृढ़ हो गया। पुणे से इंजीनियरिंग करने के बाद अपने आर्थिक हालातों को सुधारने के लिए लगभग तीन साल तक गौरव सिंह सोगरवाल ने प्राइवेट नौकरी की। साल 2013 में वो दिल्ली आ गये थे।
गौरव सोगरवाल ने जब यूपीएससी की परीक्षा दी तब पहले प्रयास में उनका प्रारंभिक परीक्षा में 1 अंक से चयन रुक गया, तो वहीं दूसरे प्रयास में 1 अंक से मुख्य परीक्षा में चयनित नहीं हो पाये थे। हालांकि, इस दौरान उनका चयन असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में BSF में हो चुका था, इसलिए रोजगार की चिंता अब ज्यादा नहीं रही थी। हालांकि असफलताओं से लड़ते हुए गौरव सिंह सोगरवाल आखिरकार IAS अफसर बन गये।
अफसर बनने के बाद गौरव सिंह सोगरवाल अपने काम को लेकर काफी चर्चा में रहे कोरोना की पहली लहर जब आयी और लॉकडाउन लगा तो गौरव सिंह सोगरवाल सदर तहसील में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट/एसडीएम के पद पर कार्यरत थे। लोग घरों में रहें और उन्हें वहीं जरूरत के सभी सामान मिल जाएं, इसके लिए उन्होंने होम डिलीवरी की शुरूआत करायी थी।
एक दर्जन से अधिक पोर्टल एवं एप बनाकर उसके जरिए आर्डर नोट करना और लोगों के घर तक सामान पहुंचाने की मुहिम को काफी तारीफ मिली थी। दवा से लेकर हर सामान इस माध्यम से घर पहुंच रहा था। कई किराना स्टोर संचालकों का नंबर भी सार्वजनिक कर उनसे भी सामान घर-घर पहुंचाने को कहा गया था। नियमित रूप से इसकी मॉनीटरिंग भी होती थी।

