पुण से एक दिल को दुखाने वाली घटना सामने आ रही है। यहां एक टीचर ने इसलिए जान दे दी क्योंकि उसके स्कूल में छात्रों ने जाना छोड़ दिया। वह बच्चों को पढ़ाना चाहता था मगर उसका यह सपना अधूरा रह गया। शिक्षकों की बहुत सी कहानियां आपने सुनी होंगी मगर इस टीचर की कहानी एकदम अलग है। टीचर की उम्र 46 साल थी। हाल ही में उसका ट्रांसफर पुणे जिले के एक गांव के जिला परिषद स्कूल में हुआ था। स्कूल में कर्मचारियों की कमी थी। स्कूल काफी गंदा था। वह बच्चों को गंदगी में नहीं पढ़ाना चाहता था। इसलिए उसने बच्चों की मदद से स्कूल में सफाई अभियान चलाया औऱ साफ-सफाई की। यह बात छात्रों के अभिभावकों को पसंद नहीं आई और उन्होंने उस स्कूल में अपने बच्चों को भेजना बंद कर दिया।
अभिभावकों ने बच्चों का एडमिशन दूसरे स्कूलों में करा दिया। वैसे भी स्कूल में छात्रों की संख्या सिर्फ 10 थी। 9 छात्रों का एडमिशन कहीं औऱ हो गया औऱ 10वीं छात्र ने भी स्कूल जाना बंद कर दिया। इस बात से टीचर को बड़ा सदमा लगा। वे काफी दुखी हुए औऱ उसी स्कूल में जहर पीकर अपनी जान दे दी।
बच्चों को स्कूल में पढ़ाई के लिए रोक नहीं पाए टीचर
46 साल के टीचर को इस बात का अफसोस था कि वह छात्रों को अपने स्कूल में पढ़ाई के लिए रोक नहीं पाया। वह तो उनका भला चाहता था। अधिकारियों के अनुसार, डेढ़ महीने पहले ही अरविंद ज्ञानेश्वर देवकर स्कूल में शामिल हुए थे। उस वक्त स्कूल में सिर्फ 10 ही छात्र थे। हालांकि जब उन्होंने स्कूल की सफाई में छात्रों का सहयोग लिया तो उनके माता-पिता नाराज हो गए और बच्चों का एडमिशन दूसरे स्कूलों में करा दिया। अधिकारियों के अनुसार, शिक्षक ने इसे अपनी पेशेवर विफलता मानी और सुसाइड कर लिया।
रिपोर्ट के अनुसार, देवकर ने व्हाट्सएप पर अपने एक रिश्तेदार को एक नोट भेजा। जिसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया औऱ 3 अगस्त को दौंड तालुका में जावजीबुवाची वाडी के पास होल वस्ती स्थित स्कूल के अंदर कथित तौर पर जहर पी लिया।
10 में 9 छात्रों का एडमिशन कहीं औऱ करा दिया गया
कांस्टेबल रमेश गायकवाड़ के अनुसार, टीचर ने नोट में लिखा था कि स्कूल में कोई अन्य स्टाफ नहीं था इसलिए उन्होंने ज्वाइन करने के तुरंत बाद स्कूल को साफ-सुथरा बनाने के लिए सफाई अभियान चलाया। कई नाराज माता-पिता अगले दिन स्कूल गए और बच्चों से काम कराए जाने पर आपत्ति जताई। अगले कुछ दिनों में 10 में से नौ छात्रों को इलाके के दूसरे स्कूल भेज दिया गया। उसने माता-पिता को ऐसा न करने के लिए मनाने की कोशिश की लेकिन असफल रहा। एकमात्र नामांकित छात्र ने भी स्कूल आना बंद कर दिया था।
पुलिस के अनुसार, ग्रामीणों ने देवकर को 3 अगस्त को उरुली कंचन के एक अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें हडपसर के सह्याद्री अस्पताल में रेफर कर दिया गया जहां 8 अगस्त को उनकी मौत हो गई। देवकर पुरंदर तहसील के मावड़ी पिंपरी गांव के रहने वाले थे। वे पत्नी और दो बच्चों के साथ उरुली कंचन में रहते थे। उनकी पत्नी भी शिक्षिका हैं। घटना से इलाके में शोक है।