Prem Sukh Delu IPS: प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को अक्सर अपनी प्रतिभा की समझ तैयारियों के दिनों में होती है। किताबों के बीच आत्मविश्लेषण से पर्सनालिटी में निखार लाता है। गंभीरता से की गई तैयारी आपको हमेशा आगे की तरफ लेकर जाती है। इसकी बानगी हैं, प्रेमसुख डुलू (Prem Sukh Delu)। साल 2010 में उनको पहली बार पटवारी बनने का मौका मिला था। बीकानेर में पटवारी बनने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनका जन्म किसी बड़े काम के लिए हुआ है। फिर क्या था, एक बार फिर किताब-कलम लेकर बैठ गए और लिख डाली सफलता की कहानी और बन गए IPS।
जन्म और परिवार: प्रेमसुख डुलू (Prem Sukh Delu) का जन्म राजस्थान के बीकानेर के छोटे से गांव रासीसर में 1988 को हुआ था। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रेमसुख बचपन से ही मेधावी छात्र थे। उनके पिता ऊंट गाड़ी चलाते थे। माता-पिता दोनों ने कभी पढ़ाई लिखाई नहीं की थी लेकिन वो चाहते थे कि उनका बच्चा खूब पढ़ाई करे, इसलिए वह अपनी तरफ से पूरा सपोर्ट करते थे।
साल 2010 में बने पटवारी: ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई के बाद प्रेमसुख (Prem Sukh Delu) ने सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू की। पहली नौकरी साल 2010 में बीकानेर जिले में पटवारी के तौर पर मिल गई। नौकरी ज्वाइन करने के बाद उन्हें आभास हुआ कि वह सिर्फ इस नौकरी के लिए नहीं बने, लिहाजा तैयारियों का सिलसिला जारी रखा। इसका परिणाम यह हुआ कि ग्राम सेवक परीक्षा में उनकी दूसरी रैंक आई लेकिन इस नौकरी को भी ज्वाइन नहीं किया। क्योंकि उसी वक्त राजस्थान असिस्टेंट जेल परीक्षा का परिणाम आ गया। अब इसकी ज्वाइनिंग की तैयारियां कर ही रहे थे कि तभी राजस्थान पुलिस सब इंस्पेक्टर के पद पर चयन हो गया।
इसलिए चुना पढ़ाने का काम: राजस्थान पुलिस में भी ज्वाइन करने से पहले उनको कॉलेज लेक्चरार बनने का मौका मिल गया। सभी नौकरियों के बजाय डुलू ने शिक्षा विभाग को चुनना तय किया क्योंकि उन्हें यहां खुद की पढ़ाई का पूरा समय मिलेगा। नौकरी मिलने के बाद उन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी, इसके बाद उन्हें कई जगहों पर नौकरी का मौका मिला लेकिन वह अपने लक्ष्य के पीछे चलते रहे और आखिर में साल 2015 में IPS बने।
IPS बनने के बाद भी प्रेमसुख डुलू की इच्छा IAS अधिकारी बनने की रही है, साल 2020 तक वह अपनी कोशिश में जुटे हुए थे। बतौर ट्रेनी IPS अधिकारी उन्होंने IAS का इंटरव्यू भी दिया था। उनका संघर्ष आज के युवाओं को प्रेरणा देती है। वह कहते हैं कि जीवन का समीकरण सिर्फ भाग्य रेखाओं से नहीं बनता है बल्कि मेहनत भाग्य को बदल देती है।