नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि भीमा कोरेगांव मामले की जांच केंद्र सरकार के आदेश के बाद के तहत की जा रही है। उन्होंने बताया कि मामले की गंभीरता, कई राज्यों से जुड़े तार और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडराते खतरे को देखते हुए केंद्र ने NIA को जांच के आदेश दिए थे। इस मामले में आरोपी द्वारा दायर याचिका के जवाब में एजेंसी एस एस शिंदे और एन जे जामदार की डिविजन बेंच के सामने अपना पक्ष रखा। वकील सुरेंद्र गाडलिंग को भीमा कोरेगांव मामले में 6 जून 2018 को गिरफ्तार किया गया था। इन दिनों वह टलोजा सेंट्रल जेल में बंद हैं।
NIA ने गाडलिंग और सुरेंद्र धवले की याचिकाओं का जवाब देते हुए कहा कि हमारा किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई व्यक्तिगत एजेंडा नहीं है, हलफनामे में आरोप लगाया कि आरोपी इस मामले को अपनी सुविधा के अनुसार मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं ताकि खुद को निर्दोष साबित कर सकें, जबकि एजेंसी सिर्फ कानूनों के तहत काम कर रही है।
गाडलिंग ने अपने वकील टीटी तालेकर के जरिए इस मामले की जांच NIA को साल 2020 में ट्रांस्फर करने को लेकर चुनौती दी थी, जबकि इसकी चार्चशीट 2018 में ही फाइल की गई थी। याचिका के अनुसार, इस तरह का केस ट्रांस्फर एनआईए की पॉलिसी के विपरीत है। उन्होंने कहा कि इस केस में कोई भी ऐसी बाध्यकारी परिस्थियां नहीं थी जिसके चलते जांच पूरी होने के बाद इसे केंद्रीय जांच एजेंसी को ट्रांसफर किया जाए। कानून के तहत इस तरह केस ट्रांसफर की अनुमति नहीं है।
NIA के पुलिस अधीक्षक विक्रम खलाटे ने एक हलफनामा दायर करते हुए कहा कि जांच के दौरान यह सामने आया है कि कंम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के कुछ सीनियर लीडर प्रतिबंधित संगठन के संपर्क में थे। इतना ही नहीं आयोजक भी संगठनों के संपर्क में थे। मामले में आरोपी माओवाद/नक्सलवाद की विचारधारा को फैलाकर गैरकानूनी गतिविधि को प्रोत्साहित करना चाहते थे।
