सीबीआई को उस समय किरकिरी का सामना करना पड़ा, जब एक विशेष अदालत ने 1995 के यूरिया घोटाले के एक मामले में 22 साल की देरी से दायर क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया। अदालत ने एजेंसी के निदेशक चेतावनी देकर कहा कि ऐसा दोबारा न हो। कोर्ट ने सीबीआई की एंटी करप्शन विंग 1 के संयुक्त निदेशक को मामले की जांच करने को कहा है।
स्पेशल जज सुरिंदर राठी ने अपने आदेश में कहा कि मामले में सीबीआई द्वारा आखिरी बार तफ्तीश 1999 में की गई थी। उसके बाद से एजेंसी ने अब तक रिपोर्ट दबाए रखी। उन्होंने कहा कि सीबीआई निदेशक इसमें कार्रवाई करें। वह यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएंगे कि ऐसा दोबारा न हो। जज ने कहा कि यह सीबीआई का मुकदमा नहीं है। यह समझ से परे है कि उसी अंतिम रिपोर्ट को इतने समय तक क्यों दबाए रखा गया था और इसका क्या उद्देश्य था।
एजेंसी ने मई 1996 में यूरिया घोटाले में केस दर्ज किया था। आरोपियों पर एक आपराधिक साजिश के तहत नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड (एनएफएल) को 133 करोड़ रुपये की चपत लगाने का आरोप था। मुख्य मामले में एनएफएल के कई अधिकारियों, कारोबारियों और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के भतीजे बी संजीव राव को दोषी ठहराया गया था।
सीबीआई ने जिस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, वो चार जून 1997 को दर्ज किया गया था। एजेंसी ने मामले में एनएफएल के पूर्व प्रबंध निदेशक सीके रामकृष्णन और कार्यकारी निदेशक डीएस कंवर, हैदराबाद स्थित साईं कृष्णा इंपेक्स के मुख्य कार्यकारी एम संबाशिव राव के साथ अमेरिका स्थित अलबामा इंटरनेशनल इंक के एस नुथी को नामजद किया था। सीबीआई ने जनवरी 2021 में इन आरोपियों के खिलाफ अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा था कि मामले में कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि रामकृष्णन और कंवर पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने संजीव राव व नुथी को बार-बार रियायतें दीं। जबकि वो यूरिया की आपूर्ति करने में नाकाम रहे थे। नियमों के तहत अनुबंध को पूरा करने में नाकाम रहने के चलते एनएफएल के पक्ष में जारी प्रदर्शन गारंटी (पीजी) बॉन्ड को जब्त किया जाना चाहिए था। जबकि ऐसा नहीं किया गया। एजेंसी कह रही है कि कोई नुकसान नहीं हुआ।
विशेष अदालत ने कहा कि लेटर ऑफ इंटेंट के तहत बार-बार यूरिया की आपूर्ति करने में नाकाम रहने के कारण दो फीसदी पीजी बॉन्ड को जब्त करने के बजाय कंवर ने इन्हें आठ जनवरी 1996 को नुथी को वापस दे दिया, जिसके चलते एनएफएल को तीसरे पक्ष से यूरिया खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा। केस फाइल देखने के बाद अदालत ने कहा कि मामले में आखिरी जांच 11 मार्च 1999 को की गई थी और इसके बाद 17 मार्च 1999 को अंतिम रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया गया था।