कहते हैं अनुभव बहुत बड़ी चीज होती है, नया अधिकारी भले ही सीनियर हो लेकिन अनुभव के सामने अपने उस जूनियर से छोटा होता है जिसने कई साल थाने में गुजार दिया हो। मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर आईपीएस राकेश मारिया के साथ भी कुछ ऐसी ही घटना घटी।

आईपीएस राकेश मारिया (IPS rakesh maria) की पहली पोस्टिंग अकोला जिले में हुई थी। वहां उन्होंने मटके का धंधा बंद करवा दिया था। यहां से उनकी छवि एक बहादुर पुलिस वाले की बन गई थी। इसके बाद इनका ट्रांसफर खामगांव हो गया था। यहां भी अकोला की तरह मटका, अवैध शराब, उगाही जैसे अपराध थे। लेकिन एक चीज यहां अलग थी और वो था पारदी गैंग।

पारदी गैंग डकैतों का एक खतरनाक ग्रुप था जो कई राज्यों में आपराधिक वारदात को अंजाम दे चुका था। ये गैंग घरों में घुसकर लूटपाट और मारपीट करती थी। बलात्कार जैसी घटनाएं भी ये लोग अंजाम दिया करते थे। राकेश मारिया के कार्यकाल में भी पारदी गैंग की एक घटना शहर में काफी चर्चित हुई थी। गैंग ने एक घर में लूटपाट की थी और महिलाओं के साथ बलात्कार किया था।

अपनी किताब ‘लेट मी से इट नाऊ’ में राकेश मारिया (IPS rakesh maria) ने इस किस्से को काफी विस्तार से समझाया है। उन्हें शहर के पुलिस अधीक्षक ने आदेश दिया कि इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाया जाना चाहिए। मारिया ने जांच शुरू की और जैसे ही उन्हें संदिग्धों की जानकारी मिली, उन्होंने आरोपियों को हिरासत में ले लिया। मारिया ने इस मामले की पूछताछ खुद शुरू की। लेकिन उनकी इस कवायद का कोई नतीजा नहीं आ रहा था। वो पुलिस अकादमी में सिखाए गए तरीके से पूछताछ कर रहे थे, जिसके मुताबिक थर्ड डिग्री सही नहीं होती है। उस समय तक मारिया मानते थे कि अपराधियों के साथ ज्यादती नहीं करनी चाहिए।

मारिया पूरी सौम्यता और शांत भाव के साथ इन खूंखार डकैतों से पूछताछ कर रहे थे। वो थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें चाय और पान भी दे रहे थे। पारदी गैंग भी इस पूछताछ का मजा ले र​हे थे। मारिया की पूछताछ चलती रही और दोनों डकैत आराम से चाय पीते रहे और पान खाते रहे।

इस इंट्रोगेशन के समय वहां मौजूद पुलिसकर्मियों को मारिया ने यह आदेश दिया था कि किसी भी सूरत में आरोपियों के साथ सख्ती और थर्ड डिग्री पूछताछ नहीं की जाए। दरअसल राकेश मारिया किताबी तरीके से प्रक्रिया का पालन कर रहे थे, लेकिन दिन बीतने के साथ उनके साथी पुलिसकर्मियों का सब्र कमजोर होता जा रहा था। उधर, अदालत से मिली हिरासत की अवधि भी खत्म होने को थी। लेकिन पारदी गैंग ने अब तक कुछ नहीं उगला था। खुद मारिया का सब्र जवाब दे रहा था, लेकिन वो अकादमी की बातों को याद रखते हुए काम कर रहे थे।

एक वक्त ऐसा भी आया जब उनके मातहत एक इंस्पेक्टर से रहा नहीं गया तो वो पूछताछ वाले कमरे में आया और मारिया से कहा, “सर आप थक गए होंगे, थोड़ा आराम कर लीजिए।” परेशान मारिया भी इस बात से सहमत हो गए और वो कमरे से बाहर चले गए। अभी वो हाथ-मुंह धोकर, यह सोच ही रहे थे कि बदमाशों का कैसे मुंह खुलवाया जाए, कि उन्हें इंट्रोगेशन रूम से चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। मारिया जब तक पता लगा पाते कि माजरा क्या है तब तक इंट्रोगेशन रूम से वही इंस्पेक्टर बाहर आया और कहा, “सर बदमाशों ने मुंह खोल दिया है, डकैती के सामान का पता चल गया है।”

मारिया (IPS rakesh maria) इंस्पेक्टर की बातों को सुनकर बहुत हैरान हुए। उन्हें लगा जैसे वो इंस्पेक्टर कहा रहा हो- यंग मैन, इस तरह के बदमाशों के लिए यही चीज कारगर है, और आपको भी यही करना पड़ेगा। इसके बाद मारिया बदमाशों के बताए गए ठिकाने पर पहुंचे और उन्होंने लूट का माल बरामद कर लिया।

इसके बाद राकेश मारिया (IPS rakesh maria) आगे बढ़ते गए और अपनी नौकरी के दौरान उन्होंने कई केस सुलझाए। 1993 में मुंबई पुलिस के उपायुक्त के रूप में उन्होंने बॉम्बे सीरियल धमाकों के मामले की जांच की। इसके बाद मारिया ने 2003 गेटवे ऑफ इंडिया और झवेरी बाजार में हुए दोहरे विस्फोट के मामले को भी सुलझाया था। मारिया को 2008 के 26/11 के मुंबई हमलों की भी जांच की जिम्मेदारी दी गई थी।