Bombay High Court News: एक 19 साल की हिंदू लड़की, जिसे पुलिस ने एक मुस्लिम लड़के के साथ रहने के कारण मुंबई के एक शेल्टर होम में भेजा था, ने बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि वो अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती और अपने पार्टनर के साथ रहना चाहती है। उसने ये भी कहा कि भले ही उसका साथी कानूनी रूप से उससे शादी करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि वो केवल 20 साल का है, फिर भी वो उसके साथ ही रहना चाहती है।

शेल्टर होम से रिहा करने की मांग की

हालांकि, कोर्ट ने किशोरी से इस संबंध में फैसला लेने से पहले याचिकाकर्ता (लड़का) के सेटल होने का इंतजार करने को कहा। सोमवार को, न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की बेंच एक मुस्लिम शख्स की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें किशोरी को शेल्टर होम से रिहा करने की मांग की गई थी।

याचिका अधिवक्ता लोकेश जादे और आबिद अब्बास सैय्यद के ओर से दायर की गई थी और अदालत ने पुलिस को शेल्टर होम से लड़की को पेश करने का निर्देश दिया था। पीठ ने लड़की से बातचीत करने का फैसला किया जिसने कहा कि वो 19 साल से थोड़ी अधिक उम्र की है और उसने ब्यूटीशियन का कोर्स किया है। उसने कहा कि उसने अभी तक याचिकाकर्ता (लड़का) से शादी नहीं की है, लेकिन जब वो 21 साल का हो जाएगा, जो भारत में पुरुषों के लिए शादी करने की कानूनी उम्र है, तो वो उससे शादी भी कर लेगी।

कोर्ट ने पूछा कि क्या वो और याचिकाकर्ता जानते हैं कि शादी के बाद वे अपना जीवन यापन और भरण-पोषण कैसे करेंगे। इस पर लड़की ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। लेकिन उसने कहा कि ऐसे मुद्दे सुलझ जाएंगे क्योंकि उसका पार्टनर कॉल सेंटर में काम करता था और जल्द ही उसे दूसरी नौकरी मिल जाएगी।

माता-पिता के पास वापस नहीं जाना चाहती

अदालत में मौजूद याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने अंडरगारमेंट कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया है और उसे कुछ कमाई की उम्मीद है। कोर्ट को जवाब में लड़की ने जोर देकर कहा कि वो अपने माता-पिता के पास वापस नहीं जाना चाहती और याचिकाकर्ता के साथ रहना चाहती है और बाद में वे शादी कर लेंगे।

पीठ ने कहा कि उनकी सारी योजनाएं भविष्य में हैं और लड़की से कहा, “पहले उसे सेटल होने दो और फिर उससे शादी करने का फैसला करो।” इस पर लड़की ने कहा, “मैंने फैसला कर लिया है।” उसने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के शादी योग्य उम्र का होने तक उसे उसके साथ रहने में कोई समस्या नहीं है। इधर, याचिकाकर्ता ने लड़की को उसके माता-पिता के घर भेजे जाने का विरोध किया और आरोप लगाया कि उसकी जान को खतरा है।

फिर से याचिका पर सुनवाई करने का फैसला

हालांकि, पीठ ने लड़की के पिता को अदालत परिसर में उससे मिलने की अनुमति दी और उससे कहा, “तुम्हें तुम्हारे माता-पिता से कोई खतरा नहीं है। तुम्हारे पिता को केवल तुम्हारी चिंता है।” मुलाकात के बाद पीठ ने बुधवार (11 दिसंबर) को फिर से याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया।

याचिका में कहा गया है, “याचिकाकर्ता और लड़की दोनों वयस्क हैं और अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने में पूरी तरह सक्षम हैं।” साथ ही, किशोरी ने अपने माता-पिता का घर छोड़ दिया था और अपनी मर्जी से याचिकाकर्ता के साथ रहने आई थी।