महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार के एक फैसले से हत्या के मामलों में दोषी करार दिए गए 49 कैदी बिफर गए और सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर तुरंत सुनवाई की मांग कर डाली। कोर्ट की वैकेशन बेंच सोमवार को इस पर सुनवाई करेगी। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच के समक्ष कैदियों ने ये अपील अपने वकील कोलिन गोंजालेविस के जरिए की।
दरअसल उद्धव सरकार ने मई माह में एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें उन कैदियों से 15 दिनों के भीतर सरेंडर करने को कहा गया था जिन्हें कोरोना के चलते 2020 में जेल से बाहर निकाला गया था। ये कैदी या तो पैरोल पर बाहर आए या फिर उन्हें जमानत पर रिहा किया गया था। ये सारे नासिक, औरंगाबाद, अमरावती व कोल्हापुर की जेल में हत्या के मामलों में उम्र कैद की सजा काट रहे थे।
हालांकि इसी तरह केरल सरकार के खिलाफ एक कैदी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में केरल के उन सभी कैदियों को सरेंडर करने का आदेश दिया था, जो कोरोना के कारण पैरोल पर चल रहे थे। कोर्ट ने कहा था कि कोरोना की स्थिति में अब सुधार हुआ है। अब ऐसी कोई वजह नहीं है कि कैदियों की पैरोल की अवधि को बढ़ाया जाए। ऐसे कैदियों से दो सप्ताह के भीतर जेल में सरेंडर करने को कहा गया था।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा था कि कोरोना की स्थिति में सुधार के बाद कैदियों को पैरोल जारी रखने की अनुमति देने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने कहा कि हमेशा के लिए पैरोल पर रहने का कोई अधिकार नहीं है और इसे रोकना होगा। ऐसा नहीं है कि आप अगले पांच साल तक जेल से बाहर रह सकते हैं।
गौरतलब है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान सुप्रीम अदालत ने जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया था। मार्च 2020 के आदेश में कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करने का निर्देश दिया। समिति ने 10 साल से कम कारावास की सजा पाए दोषियों को पैरोल पर रिहा करने की सिफारिश की थी। सर्वोच्च अदालत ने इस साल राज्यों को बाहर आए लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं करने का निर्देश देने के लिए कहा था।