ब‍िहार में जब अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू हुई तो शुरुआत के कुछ दिनों तक लोगों में डर बना रहा, इस दौरान कुछ चौंकाने वाली खबरें भी आईँ, शराब की आदत से मजबूर लोग बीमार होने लगे औऱ अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा। आम पियक्कड़ों की छोड़िए कई कई पुलिसवालों ने शराब नहीं मिलने की सूरत में ऐसा ड्रामा किया कि पूरा अमला सकते में था, एक थानेदार साब ने तो नशे के लिए कपड़े धोने का साबुन चबा डाला ।

जहां एक तरफ शराबबंदी के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि राज्य में अपराध पर काबू पाया जा सकेगा और उसके लिए दलीलें भी दी गई, कहा गया कि शराब पीकर लोग मार-पीट नहीं करेंगे, शराब पीकर लोग गाड़ियां नहीं चलाएँगे, शराब पीकर लोग किसी समारोह में रंग में भंग नहीं डालेंगे और इस सब जगह ऐसी स्थिति पैदा होती है कि नशे में अपराध हो जाते हैं । तो न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी, मतलब साफ था कि बिहार में अपराध पर काबू करने के लिए शराबबंदी को सबसे कारगर हथियार माना गया और सरकार ने उसे लागू कर दिया।

शायद नियम कायदे बनाने वालों को ऐसा लगा हो कि बिहार में तो जैसे सारे अपराधों की जड़ है तो बस शराब । शराब बंद अपराध बंद । कहां ये उम्मीद की जा रही थी कि शराबबंदी के बाद अपराध पर काबू पाया जा सकेगा। सरकार पूरी ताकत से समझाने की कोशिश कर रही थी शराबबंदी समाज सुधार की दिशा में इतना बड़ा कदम साबित होगा कि आप लोग उसकी कल्पना नहीं कर सकते। बदलाव दिख भी रहे थे लेकिन क्या जो बदलाव दिख रहे थे वो स्थाई थे, क्या वही हकीकत थे या फिर उसके पीछे कहानी कुछ और थी। जल्द ही बिहार का ये सुनहरा ख्वाब टूटने लगा था। इतनी मात्रा में शराब की खेप पकड़ी जाने लगी कि शासन-प्रशासन के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी लेकिन वो अपनी जिद पर अपने फैसले को सही ठहराते रहे।

शराबबंदी के दौरान शराब का पकड़ा जाना महज शराब का पकड़ा जाना नहीं है, ऐसा नही है कि ल‍िकर कार्टेल में पुलिस प्रशासन ने सेंध मारी और शराब की खेप पकड़ ली, अपराध के जड़ तक पहुंच गए और अपराध पर काबू पा लिया। जितना आसान ये बाहर से दिखता है और जितनी आसानी से इससे जुड़ी खबरों को बिहार की जनता ने पचाना शुरु कर दिया दोनों बिहार के लिए डिजास्टर होने का संकेत था।

2018 की जनवरी में बिहार के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने एक कार्यक्रम में कह डाला कि शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध का ग्राफ गिरा है। बिहार में हर किस्म के अपराध में कमी आई है। हालांकि ऐसा नहीं था और बाद में नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों ने मलिक की बातों को झूठा साबित किया।

दरअसल शराबबंदी के बाद अपराध ने अपना स्वरूप बदल लिया था, अपराध की रफ्तार तेज हो गई थी। अपराध के रंग बदल गए थे, अपराधी और उनके आका बदल गए थे या फिर नए नए आका आ गए थे लेकिन अपराध पर काबू नहीं पाया गया था। 
2019 में जयपुर में शराबबंदी और अपराध पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में जो डेटा सामने रखा गया उसमें साफ साफ कहा गया कि बिहार में शराबबंदी के बाद अपराध कम नहीं हुए हैं।

शराबबंदी के 2 साल बीतते-बीतते ये एक स्टेटस सिंबल होने लगा था। एक अलग किस्म का माफिया, इसमें अभी तक कोई लूट नहीं हो रही थी किसी की हत्या नहीं की जा रही थी। लोगबाग खुशी खुशी पैसे दे रहे थे और उनको घर बैठे शराब मिल रही थी, शराब कहां से आती है इससे पीने वालों को कोई मतलब नहीं था और कौन पीता है, कितना पीता है और उसके पास पीने के लिए पैसा कहां से आता है इससे मतलब तो कभी से शराब के कारोबारियों को नहीं रहा है।

एक तरफ सरकार नई नई घोषणाओं के जरिए ये बताने की कोशिश कर रही थी कि शराबबंदी राज्य में कितनी कारगर है और एक ऐतिहासिक काम सरकार ने किया है जो हाल के कुछ दशकों में नहीं सोचा गया । दूसरी तरफ सरकार की इन सारी नीतियों को, इन सारे प्रयासों को पटरी से उतारने में सरकारी अमले से लेकर आम जनता तक सब जुटे हुए थे।

श्रुति सिंह (पूर्वी चंपारण की तत्‍कालीन एसपी) ने अपनी सूझ-बूझ और जानकारियों के आधार पर बिना पुख्ता सबूत राजन कश्यप को एक रोज शाम को अचानक उठा लिया जब वो अपने दोस्तों के साथ छपवा बाजार में चौकड़ी जमाए बैठा था। इलाके के थानेदार को सूचना नहीं दी गई नतीजा इस छापेमारी में दो पुलिसकर्मी भी महफिल में रमे पाए गए।

सूचना बहुत व्यक्तिगत थी और किसी अदंर के व्यक्ति ने ही दी थी। पुलिसकर्मी समेत कई दूसरे लोगों ने शराब पी रखी थी लेकिन राजन कश्यप चूंकि पीता ही नहीं था इसलिए उसपर ये आरोप नहीं लगाया जा सकता था। न तो वो घर राजन का था और न हीं उसने शराब पी रखी थी लेकिन पुलिस ने उसे उठा लिया था।

बाकी शराबियों को अलग हाजत में बंद किया गया और राजन को श्रुति सिंह के टास्क सेंटर पर रखा गया। राजन ने अपने अंदाज में श्रुति से बहस की और कहा कि मैडम न तो हम पीते हैं और न पिए हैं, न वो हमारा घर है फिर आपने किस आधार पर हमें गिरफ्तार किया है। राजन को थोड़ी देर बाद अहसास हुआ कि वो किसी ऐसी जगह पर है जहां वो है या नही है इसकी जानकारी बाहर के लोगों को तो छोड़िए चंद सीक्रेट पुलिसवालों के अलावा किसी को नहीं है।

पुलिस अपने अंदाज में काम करती है अगर वो चाहे तो अपराध रोका जा सकता है। जब राजन और उसके सभी दोस्तों को गिरफ्तार करके मेडिकल के लिए अस्पताल लाया गया तो सभी एक ही गाड़ी में सवार थे । मेडिकल के बाद जिला पुलिस मुख्यालय तक राजन को अलग गाड़ी में लाया गया और फिर सबको एक हाजत में और राजन को दूसरे हाजत में रखा गया।

जिला पुलिस मुख्यालय के हाजत और उसके दफ्तर की बनावट कुछ ऐसी थी कि बीचों बीच टेबल पर एक थानेदार किस्म का व्यक्ति बैठता है, सामने से दरवाजा है और उसके तीन तरफ तीन लॉकअप बने हुए हैं। इसी कमरे से जुड़ा हुआ एसपी श्रुति सिंह का दफ्तर है। श्रुति ने एक इंसपेक्टर से जोर आवाज देकर डिटेल पूछी, जब उस इंसपेक्टर ने कहा कि एक को छोड़ और बाकी सबने शराब पी रखी है तो श्रुति ने कहा कि उसे बाहर लाओ जिसने नहीं पी है।

लॉकअप के बाहर राजन कश्यप खड़ा था, पुलिसवालों ने कुछ सवाल जवाब किए और श्रुति ने कहा जाओ अगली बार पकड़े गए तो समझना ठीक नहीं होगा तुम्हारी सेहत के लिए। दूसरे लॉकअप में बंद राजन के बाकी साथी शराबियों ने देखा कि राजन कश्यप को छोड़ दिया गया तो उन सबने राहत की सांस ली होगी और दो बातें सोची होंगी, एक तो ये कि राजन बच गया और दूसरी ये कि राजन बाहर जाएगा तभी तो हमें भी छुड़ाएगा।

राजन जैसे ही जिला पुलिस मुख्यालय के अहाते से बाहर निकला, दूसरे पुलिस वालों ने अपने चिर परिचित अँदाज में दूसरी गाड़ी में बिठाया और श्रुति सिंह के टास्क सेंटर ले गए।  राजन एक तरफा बोलते बोलते अचानक रुक गया जब उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसके साथ के लोगों को और उसके टुकड़ों पर पलने वाले पुलिसकर्मियों की नजर में तो पुलिस ने हमें हाजत से ही छोड़ दिया है और हम अब भी उनकी गिरफ्त में हैँ।

अगले दिन बाकी लोगों को अदालत में पेश किया गया और जेल भेज दिया गया, राजन का कहीं अता पता नहीं था । सबको अंदेशा था कि पुलिस ने कुछ गड़बड़ की है लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी। इधर श्रुति ने एक दिन पूरी आवभगत से राजन को अपने सेंटर में रखा, कुछेक सवाल किए, ऐसे बर्ताव किया कि उसे कोई परेशानी नहीं हुई और एक दिन बाद अखबारों में गिरफ्तार लोगो की खबरें छपी और खबर में लिखा था कि राजन कश्यप को थाने से ही छोड़ दिया गया, उस अखबार की कटिंग के साथ सुबह सुबह श्रुति अपने टास्क सेंटर पर थीँ।

राजन के सामने अखबार रखते हुए श्रुति ने इस बार राजन से सीधे कहा कि, तुम अपने पूरे नेक्सस और दूसरे पूरे अपराधों की सारी फेहरिस्त सामने रखो, क्यूंकि हम उगलवाने पर आएंगे तो शायद तुम बताने के लिए बचो ही नहीं और फिर तुम एक लापता करार दिए जाओगे।

राजन जरूर पिछले 4 सालों में अपराध की दुनिया में आया था लेकिन मुख्य तौर पर वो शराब माफिया था इसलिए बाकी कुख्यात अपराधियों की तरह वो मजबूत नहीं था और न ही कभी पुलिस की मार खाई थी। जिले के ज्यादातर पुलिसवाले तो उसके इशारों पर चलते थे और वो देखते ही देखते करोड़ों का बिजनेसमैन बन चुका था। जाहिर है शराब की दुकान तो चला नहीं सकता था तो आखिर उसके दिखाने के कारोबार क्या क्या थे और उसकी आड़ में वो क्या क्या करता था ये जानना श्रुति के लिए जरूरी था।

राजन ने कहा कि हम आपको सब बता देंगे, आपको पूरी बात सुननी होगी और फिर फैसला लेना होगा। राजन बातचीत में बीच बीच में ठीक ठाक अंग्रेजी के वाक्यों का भी प्रयोग करता था। राजन ने जो अपनी पहली कहानी बताई उसमें उसने वही बताया कैसे मजबूरी में उसे इस कारोबार में उतरना पड़ा और जब एक बार वो इसमें उतर गया तो उतरता चला गया।

राजन के एक साथी अवधेश जायसवाल का मुख्य व्यवसाय था किराना के कुछ सामान का थोक कारोबार। वो मुख्य तौर पर चीनी का कारोबार करता था। राजन उसी के व्यवसाय में पार्टनर था जो महज दिखावे का पार्टनर था।

एक दुकान की आड़ में शराब का अवैध कारोबार फल फूल रहा था। इलाके के सैकड़ों ऐसे लोग थे जिनके घर रोजाना शराब की सप्लाई की जाती थी। पहले तो उसने राइडर के जरिए अपने कारोबार को स्थापित किया था पर बाद में उसके कुछ ल‍िकर पैडलर्स ने ग्राहक तोड़ने शुरू किए तो उसने इलाके के सारे पैडलर्स को एक दिन कहीं बुलाया और कहा कि अब वो सिर्फ थोक सप्लाई करेगा, अपना मार्जिन कम कर दिया और बोला कि आप सभी लोग अभी तक हमारे साथ काम करते थे, जो हमारे साथ काम करना चाहते हों वो काम करें और जो अपना काम करना चाहते हों वो अपना काम करें लेकिन माल हमीं से खरीदें।

हमारा रेट फिक्स रहेगा और आप जितनी मार्जिन पर बेचना चाहते हैं बेचें। बेच कर फिर हमें पैसा दें, पहले पैसा नहीं लगाना पड़ेगा लेकिन एक बार का माल ही उधार मिलेगा। अगली बार माल उठाने से पहले पिछला पेमेंट क्लीयर करना होगा।

तभी बीच में से एक ने पूछा अगर आपके साथ काम करना चाहे तो उसे क्या मिलेगा, राजन ने सोच ही रखा होगा उसने तपाक से कहा कि अभी तक आपलोगों को 20-25 हजार रुपए की पगार थी अब 40-45 हजार की पगार होगी जो सीधे हमारे लिए काम करेगा। आप कल्पना नहीं कर सकते वहां मौजूद लगभग 200 युवाओँ में 180 युवाओँ ने राजन के साथ काम करने की हामी भर दी और बाकी बचे बीस लोगों को राजन ने कहा कि अपना कारोबार करो हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन माल हमीं से खरीदोगे, किसी दूसरी पार्टी से माल खरीदोगे तो ठीक नहीं होगा।

बातचीत की शुरुआत में जहां राजन नरम दिख रहा था 200 में 180 लोगों का साथ पाकर सख्त हो चुका था। अब राजन कश्यप खुद में ही एक नेक्सस हो रहा था। जिस राज्य में क्लास वन की नौकरी पाने वाले सरकारी मुलाजिमों की शुरुआती तनख्वाह 40 हजार के आस पास हो वहां अगर कैसी भी शिक्षा वाले बेरोजगार युवाओँ को 40-45 हजार की पगार मिलने लगे तो वो क्यों कर पढ़ाई के बारे में सोचेगा और किसी दूसरे की बात मानेगा जो उसे किसी सही दिशा में जाने को कह रहा हो।

देखते ही देखते पूरे बिहार में हजारों युवा राजन के इस गैंग का हिस्सा बनते जा रहे थे। चम्पारण के एक छोटे से गांव में रहते हुए तकनीक के सहारे राजन अपना धंधा बढ़ाता जा रहा था। जिसको अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की जरा भी चिंता नहीं थी वो इस कारोबार को खुलेआम कर रहे थे और जो दोहरी जिंदगी जी सकता था वो इसे पर्दे के पीछे से कर रहा था।

राजन की दी गई जानकारियों को श्रुति सिंह अपने पास वाले जिले के पुलिस अधिकारियों से शेयर करती और पुलिस मुखिया को भी जानकारी देती, शराब माफिया के खिलाफ धरपकड़ तेजी से चल रही थी।

राजन की जानकारियों के हिसाब से जो छापे मारे जा रहे थे उसमें शराब तो बरामद हो रही थी लेकिन ज्यादातर तनख्वाह पर काम करने वाले पैडलर्स ही पकड़े जा रहे थे और शराब का कोई ऐसा कंसाइनमेंट नहीं पकड़ा गया था जिसे पुलिसिया भाषा में ब्रेकथ्रू कहा जा सके।

10 दिनों से राजन श्रुति के टास्क सेंटर पर था और उसके घरवालों से लेकर उसके करीबियों में चिंता बढ़ती जा रही थी। श्रुति हर दिन उससे कुछ जानकारी जुटाती और छापेमारी करती लेकिन वो इन सूचनाओँ से संतुष्ट नहीं हो रही थी । दस दिन बीतते बीतते राजन को भी लगा कि इस पुलिस अधिकारी को एक बड़ा सुराग देना होगा तभी उसे लगेगा कि हमारा नेक्सस उसे मालूम हो चुका है और तभी शायद उसके यहां से निकलने की कोई सूरत बन पाए।

( इस बारे में अनुरंजन झा की क‍िताब ‘झूम – बॉटल एंड बैलट’ का अंश।)