अब तक आपने तमाम राज्यों के अधिकारियों की बहादुरी के किस्से, उनसे जुड़े भ्रष्टाचार के मामले या फिर पारिवारिक झगड़े के सार्वजनिक होने के मामले देखे सुने या पढ़े होंगे लेकिन आज आपको एक ऐसे पुलिस अधिकारी की कहानी बताते हैं जो अपने पुराने साथियों को सड़क पर भीख मांगते हुए दिखा। य़हां बात हो रही है मध्य प्रदेश पुलिस के एक इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा की। मनीष मिश्रा मध्य प्रदेश पुलिस के 1999 बैच के अधिकारी रहे हैं, साथ ही अपने जमाने के अचूक निशानेबाज भी माने जाते थे। जिंदगी ने कुछ ऐसी करवट की वह सीधे अधिकारी की कुर्सी से सरककर सड़क पर भीख मांगने के लिए पहुंच गए।

घटना 10 नवंबर 2020 की है, जब एक ग्वालियर में उपचुनाव की मतगणना चल रही थी। रात करीब 1.30 बजे दो डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदौरिया, सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेते हुए गुजर रहे थे, अचानक से उनकी एक नजर सड़क किनारे एक शख्स पर पड़ी जोकि ठंड में ठिठुर रहा था। जबरदस्त ठंड का आभास और मानवता के नाते उन्होंने गाड़ी रोककर बात की, मदद के तौर पर रत्नेश तोमर ने अपने जूते दे दिए तो विजय भदौरिया ने जैकेट दे दी। उसकी मदद के बाद जब दो पुलिस अधिकारी अपने गंतव्य की ओर जाने लगे तो एक लड़खड़ाती आवाज में पुकारा गया उनका नाम, उन्हें हैरान कर गया।

अधिकारियों ने देखा तो जिस भिखारी की मदद की वह ही उन्हें नाम लेकर बुला रहा है, उसकी आवाज कुछ जानी पहचानी लगी तो और पूछताछ की। इसके बाद जो सच सामने आया उसने दोनों अधिकारियों के चेहरे का रंग उड़ा दिया। क्योंकि यह भिखारी कोई और नहीं उन्हीं के बैच का इंस्पेक्टर रहा मनीष मिश्रा था। मनीष मिश्रा को इस हालत में देख रत्नेश और परेशान हो गए, क्योंकि एक जमाने वह उनका अच्छा मित्र हुआ करता था। अधिकारियों ने तुरंत एक समाज सेवी संस्थान से संपर्क साधा और उन्हें आश्रम भिजवाया ताकि उनकी देख-रेख सही से हो सके।

कैसे इंस्पेक्टर से भिखारी बने मनीष: मनीष का घर शिवपुरी में हैं, माता पिता अत्यंत बूढ़े हो चुके हैं और पत्नी ने तलाक दे दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2005 तक सब ठीक था, आखिरी बार वह दतिया में पोस्टेड थे। लेकिन उसके बाद से मानसिक स्थिति बिगड़ने लगी। परिवार ने एक आश्रम से इलाज शुरू कराया लेकिन वहां से वह भाग गए थे। पत्नी से तलाक हो चुका था। ऐसे में न कोई उन्हें ढूंढने वाला था और न ही इलाज कराने वाला, समय के साथ भिखारी बन गए। जो मिलता वह खाते और जहां जगह मिलती वहीं सो जाते।

बताया जाता है कि मनीष के मिलने पर समाज सेवी संस्थान की तरफ से बहन द्वारा संपर्क किया गया, जोकि एक चीन दूतावास में पदस्थ हैं। परिवार की तरफ से किसी ने संपर्क साधने की कोशिश नहीं की लेकिन उनके बैच के अधिकारियों ने उनकी हर संभव मदद की कोशिश की।

जिस समाज सेवी संस्थान में उनका इलाज चल रहा है, वह बताते हैं कि पहले से काफी बेहतर हैं, अभी भी उनसे मिलने के लिए उनके दोस्त आते हैं।