तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्यस्थल पर पति का अपमान करना मानसिक क्रूरता है।
बार और बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पति या पत्नी के खिलाफ लगातार आरोप और मुकदमेबाजी क्रूरता के समान है और यह तलाक का आधार होगा। कोर्ट ने तलाक के इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि तथ्य यह है कि लगातार आरोप और मुकदमेबाजी की कार्यवाही की गई है और यह क्रूरता हो सकती है।
कोर्ट ने तमिलनाडु के इस जोड़े की शादी को समाप्त करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि शादी शुरूआती दौर में ही समाप्त हो गई थी। जस्टिस संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि फरवरी 2002 में कपल ने शादी की। दोनों ओर से समाधान खोजने के प्रयास सफल नहीं हुए।
पति ने कहा कि उसकी पत्नी का विचार था कि शादी उसकी सहमति से नहीं हुई है। शादी के बाद ही वो मंडप से उठकर चली गई थी। इसके कुछ महीनों बाद महिला ने पति के खिलाफ कई मामले दायर किए, उसके ऑफिस में भी कार्रवाई शुरू करने की मांग की। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का आचरण क्रूरता के बराबर समझा जाएगा।
बार और बेंच की रिपोर्ट में कहा गया है कि शादी कई दौर की मुकदमों से गुजरी। ट्रायल कोर्ट से पहले पति को तलाक मिल गया। इसके बाद अपीलीय अदालत ने आदेश को रद्द कर दिया और दूसरी अपील में तलाक के आदेश को फिर से बहाल कर दिया गया। हालांकि, पत्नी द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका में उच्च न्यायालय में तर्क दिया गया था कि विवाह के टूटने के आधार पर तलाक की डिक्री देने के अधिकार क्षेत्र की कमी थी। इसलिए, मामला अंत में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
पीठ ने बिना किसी हिचकिचाहट के ये निष्कर्ष निकाला कि न केवल अपीलकर्ता की दूसरी शादी के कारण, बल्कि इसलिए भी कि दोनों पक्ष एक-दूसरे से इतने परेशान थे कि वे साथ रहने के बारे में सोचने को भी तैयार नहीं थे। इसलिए शादी खत्म करने का फैसला सुना दिया। हालांकि, बेंच ने यह भी देखा कि यह एक कठिन स्थिति थी क्योंकि इस मामले में आपसी सहमति की काफी कमी थी।