यही वजह है कि बीते वर्षों में कई ऐसे अध्ययन हुए जिसमें भारत में महिलाओं की स्थिति तुलनात्मक रूप से दुनिया के कई मुल्कों से खराब मानी गई।
2018 में ऐसी ही एक आॅनलाइन रायशुमारी में भारत को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक देश करार दिया गया। थॉमसन-रॉयटर्स फाउंडेशन की ओर से की गई इस रायशुमारी में यह बात सामने आई कि खासतौर पर यौन हिंसा और महिलाओं को नौकरानी समझने में भारत सबसे आगे है।
यह रायशुमारी 550 महिला विशेषज्ञों के साथ किया गई थी। इसमें सवालों का जवाब देने वालों में सहायता कर्मी, स्वास्थ्य कर्मचारी, शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञ, एनजीओ में काम करने वाले, नीति निर्माता और सामाजिक मुद्दों के जानकार शामिल थे। इसमें पाया गया कि भारत महिला सुरक्षा के मामले में अशांत अफगानिस्तान और सीरिया से भी पीछे है। अलबत्ता इस रायशुमारी से आए नतीजों को लेकर देश में लोगों और संस्थाओं की राय बंटी रही।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि इस रायशुमारी में बहुत कम लोगों की हिस्सेदारी थी इसलिए यह भारत के हालात का सही आकलन नहीं करता है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय महिलाएं बहुत जागरूक हैं। यह हो ही नहीं सकता कि महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों में हम पहले स्थान पर हों। जिन देशों में महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर बोलने तक का हक नहीं हैं, उन्हें भारत के बाद रखा गया है।’
रेखा शर्मा के एतराज को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। भारतीय समाज के साथ खासतौर पर यहां की महिलाओं के प्रति औपनिवेशिक दौर से एक पूर्वग्रह से भरा नजरिया दुनिया भर में रहा है। फाउंडेशन की इस रायशुमारी में पश्चिम के शीर्ष दस देशों में अमेरिका शामिल है।
इस तरह की रायशुमारी इससे पहले 2011 में भी कराई गई थी, जिसमें अफगानिस्तान, कांगो, पाकिस्तान, भारत और सोमालिया को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश बताया गया था। हालांकि यह जरूर है कि 2011 की सूची में भारत पहले स्थान पर नहीं था।
सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि 2007 और 2016 के बीच महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के मामलों में 83 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान हर चार घंटे में एक महिला बलात्कार का शिकार हो रही थी। साफ है कि रायशुमारी या पूर्वग्रह से उलझने से ज्यादा जरूरी है कि सरकार और समाज महिला सुरक्षा के लिए कारगर पहल करें।