22 साल पहले हुई हत्या की एक घटना ने अजय कटारा की पूरी जिंदगी बदल दी। हत्या के चश्मदीद गवाह बनने की जो कीमत उन्हें चुकानी पड़ी है उसे वो भूले नहीं भूला सकते हैं। अजय कटारा को 22 साल पहले की उस रात को याद करने के लिए बस अपनी आंखें बंद करनी पड़ती हैं।
दोस्त की बेटी की बर्थडे पार्टी से लौट रहे थे अजय
17 फरवरी, 2002 की देर रात जब चारों ओर कोहरा छाया हुआ था, उनका स्कूटर गाजियाबाद को दिल्ली से जोड़ने वाली हापुड़ रोड से गुजर रहा था। तभी वो इलाका सुनसान हुआ करता था। वे गाजियाबाद के पास स्थित गोविंदपुरम में रहने वाले एक दोस्त की बेटी की बर्थडे पार्टी में शामिल होने के बाद शाहदरा अपने घर लौट रहे थे।
हालांकि, अपने दोस्त के घर से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर, हापुड़ टोल बूथ के पास, एक एसयूवी ने उसके स्कूटर को पीछे से टक्कर मार दी, जिससे वे जमीन पर गिर गए। इस टक्कर ने अजय को हिलाकर रख दिया। उन्हें गुस्से में आया और वे तेजी से उठे और एसयूवी के ड्राइवर सीट की ओर बढ़े। वे लड़ाई करने की नीयत से उस ओर बढ़े थे। हालांकि, वहां पहुंच कर उन्होंने जो देखा उसने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
कार के अंदर बैठे लोगों को देख डर गए अजय
गाड़ी की पैसेंजर सीट पर लाल कुर्ता और सफ़ेद स्टोल पहने एक आदमी बैठा था। कुछ घंटों बाद, 23 वर्षीय नितीश कटारा नाम के उसी शख्स की मौत हो गई और अजय हत्या के मामले में प्राइम विटनेस (मुख्य गवाह) बन गए। अजय की मानें तो उस दिन नीतीश के साथ कार में विकास यादव (जो समाजवादी पार्टी और बसपा सहित कई पार्टियों में रह चुके कद्दावर नेता डी पी यादव के बेटे हैं), विकास के चचेरे भाई विशाल यादव और उनके सहयोगी सुखदेव पहलवान भी थे।
कथित तौर पर तीनों ने नीतीश को गाजियाबाद में उसके क्लासमेट की शादी से अगवा किया था, जिसके कुछ ही घंटों बाद उसकी हत्या कर दी गई थी। बताया जाता है कि यादव परिवार नीतीश के डीपी यादव की बेटी भारती के साथ अफेयर से नाराज था। स्कूटर और कार की टक्कर के कुछ घंटों बाद, नीतीश का जला हुआ शव हापुड़ के पास बुलंदशहर के खुर्जा गांव में मिला, जहां अजय का एक्सीडेंट हुआ था।
पूरी घटना में एक अजीब संयोग ये है कि अजय और अंजान मृतक का सरनेम एक ही था। ये घटना ऐसा मोड़ था जिसने ये तय कर दिया कि अजय का आगे का जीवन कैसे बीतेगा।
अजय के खिलाफ दर्ज कराए गए 37 झूठे केस
घटना के बाद के वर्षों में अजय पर 37 मामले दर्ज किए गए, जिनमें रेप के दो, पॉक्सो के तहत एक और धोखाधड़ी, जबरन वसूली और जालसाजी के कई मामले शामिल हैं। पिछले कुछ सालों में अदालतों ने उनके खिलाफ 37 में से 35 मामलों में आरोपों को खारिज कर दिया है। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शेष दो मामलों में कार्यवाही पर रोक लगा दी है।
इन दो मामलों में एक डीपी यादव द्वारा अजय के खिलाफ 2009 में एक फोन कॉल पर कथित रूप से अपमान करने के लिए दायर किया मुकदमा है और दूसरा 2018 में उसके खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी का मामला है। पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि कुछ वकीलों और अन्य लोगों ने अजय को आपराधिक मामले में फंसाने के लिए फर्जी याचिका दायर की थी।
अजय ने तारीखें, एफआईआर नंबर और हर मामले की स्थिति बताते हुए दावा किया कि कम से कम 10 बार उनकी हत्या की कोशिश की गई है। इन कोशिशों में कथित तौर पर जहर देने का एक मामला और गोली मारने की कई घटनाएं शामिल हैं। वे कहते हैं, “इनमें से चार मामले अभी भी अदालतों में पेंडिंग हैं।”
भगवान ने ही मुझे घटनास्थल पर रहने के लिए चुना था : अजय
17 फरवरी, 2002 की सुबह हुई दुर्घटना और उसके बाद की घटनाओं ने “उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी”, अजय का मानना है कि शायद उन्हें उस रात घटनास्थल पर रहने के लिए भगवान ने चुना था।
51 वर्षीय अजय कहते हैं, “मैं उस दिन जन्मदिन की पार्टी में जाने से कतरा रहा था। रात में बहुत ठंड थी और मैं सही में स्कूटर से घर वापस नहीं जाना चाहता था, लेकिन मेरे दोस्त ने मुझे शाम को दो बार फोन किया, और जोर देकर कहा कि मैं पार्टी में जाऊं। भगवान रहस्यमय तरीके से काम करते हैं।” वो उस समय ज्वेलरी शॉप में छोटे-मोटे रत्न सप्लायर के रूप में काम करते थे। अब वे एक प्लांट नर्सरी चलाते हैं और एक थोक टायर बिजनस के को-ओनर हैं।
कोर्ट ने आरोपियों को सुनाई 25 साल की सजा
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2016 को विकास और विशाल यादव के साथ-साथ तीसरे आरोपी सुखदेव पहलवान को बिना किसी छूट के 25 साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
कोर्ट में अपनी गवाही के दौरान अजय ने जोर देकर कहा कि जब वो उस एसयूवी के पास गया जिसने उसे टक्कर मारी थी, तो उसने तुरंत ही उसमें बैठे लोगों को पहचान लिया था – सभी को, सिवाय सामने वाली सीट पर बैठे नीतीश के। बाद में पता चला कि ड्राइवर विकास यादव था। अजय कहते हैं, “हर कोई डीपी यादव और उनके बेटे विकास को जानता था।”
डी पी यादव एक कुख्यात नेता थे। यूपी के बुलंदशहर से लेकर हरियाणा के सिरसा तक, उनके खिलाफ कई मामले पेंडिंग थे। 2014 के लोकसभा चुनाव के हलफनामे के अनुसार, उनके खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास और जबरन वसूली सहित कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
अजय काटरा को समझ आ गई थी ये बात
डीपी यादव के बेटे विकास का नाम 1999 के जेसिका लाल हत्याकांड में सामने आ चुका था। मुख्य आरोपी मनु शर्मा के दोस्त विकास को 2006 में इस मामले में चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। हादसे वाले दिन अजय को एहसास हो गया कि वो ये लड़ाई नहीं जीत पाएगा। ऐसे में उसने लड़ाई ना करके अपना स्कूटर कार के रास्ते से हटा दिया और उसे आगे निकल जाने दिया।
हालांकि, तीन दिन बाद, टीवी चैनलों पर बुलंदशहर में हत्या की खबर दिखाई गई। खबर के अनुसार शिकारपुर रोड पर एक व्यक्ति का शव मिला था। अजय ने देखा कि उस व्यक्ति की मां ने नेशनल टेलीविजन पर घोषणा की कि वो अपने बेटे के हत्यारों को जानती है। फिर, मृतक की तस्वीर स्क्रीन पर आई। ये देख अजय चौंके। उन्होंने उस व्यक्ति को पहचान लिया।
अजय कहते हैं, “ये वही आदमी था जिसे मैंने उस दिन हापुड़ के पास विकास यादव के बगल में बैठे देखा था। फोटो में, उसने वही लाल कुर्ता और सफेद स्टोल पहना हुआ था जिसमें मैंने उसे देखा था।” उनकी मानें तो पुलिस के पास जाने की हिम्मत जुटाने में उन्हें लगभग एक हफ़्ते से ज़्यादा का समय लगा। फिर वे कवि नगर पुलिस स्टेशन गए, जहां, उनका दावा है, SHO ने उनकी बात नहीं सुनी। अजय कहते हैं, “शायद वे भी डरे हुए थे। जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने उन चारों को उस रात हापुड़ टोल प्लाजा के पास देखा था, तो उन्होंने मेरी बात पर यकीन नहीं किया।”
2002 में पहली बार अजय ने दी थी गवाही
अजय कहते हैं कि पुलिस को आखिरकार उनकी बात को गंभीरता से लेना पड़ा क्योंकि उन्होंने उन्हें सबसे महत्वपूर्ण सबूत मुहैया कराया था – कि नीतीश को आरोपी के साथ मृत पाए जाने से कुछ मिनट पहले देखा गया था। वे कहते हैं, “मैंने पुलिस को लाइसेंस प्लेट नंबर दिया था।”
अगस्त 2002 में, नीतीश कटारा हत्या मामले में पटियाला हाउस कोर्ट में मुकदमा शुरू हुआ। अगले साल 31 मई को अजय ने कोर्ट में खड़े होकर बताया कि 2002 की फरवरी की रात को उन्होंने क्या देखा था। यहीं से उनकी परेशानियां शुरू हुईं।
अजय कहते हैं, मार्च 2003 में कोर्ट में पेश होने से लगभग दो महीने पहले एक परिचित ने उन्हें लखनऊ बुलाया और कुछ ऐसी बात पर चर्चा करने की बात की, जिससे “मुझे बहुत फ़ायदा हो सकता था। जब हम बातें कर रहे थे, तभी डीपी यादव कमरे में आए। मुझे एहसास हुआ कि मैं उनके साथ बातचीत करके फंस गया हूं। उन्होंने मुझे एक झूठा गवाह बनने के लिए कहा। जब मैंने मना कर दिया, तो मेरे परिचित, जो अभी भी कमरे में थे, ने कहा, ‘क्या तुम अपने परिवार को मरते हुए देखना चाहते हो?’
उन्होंने आगे कहा कि डीपी यादव ने कथित तौर पर उन्हें चुप रहने के लिए पैसे की पेशकश की। अजय का दावा है, “मैंने कमरे के माहौल को भांप लिया था। मुझे पता था कि मैं खतरे में हूं। इसलिए मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी गवाही नहीं दूंगा, लेकिन पैसे लेने से इनकार कर दिया।”
हालांकि, धमकियों के बावजूद वो कोर्ट पहुंचे और अपनी गवाही दी। उसके बाद के सालों में अजय पर कई मामले दर्ज किए गए, जिनमें से सभी, उनका आरोप है, डी पी यादव के इशारे पर दर्ज किए गए थे। अजय के खिलाफ पहला मामला सितंबर 2003 में दर्ज किया गया था। अदालत में उनकी पहली गवाही के तुरंत बाद, कथित तौर पर डी पी यादव के एक रिश्तेदार द्वारा मामला दर्ज कराया गया।
अपने ऊपर हुए झूठे केस पर क्या बोले अजय?
अजय ने बताया, “इस व्यक्ति, सरोज के अनुसार, मैंने गाजियाबाद में एक बहस के दौरान उसके साथ दुर्व्यवहार किया था और उसके कपड़े फाड़ दिए थे… मैं उस समय हरिद्वार में था।” वह कहते हैं उनके खिलाफ मामला दर्ज होने से पहले वो सरोज से कभी नहीं मिले थे या उनके बारे में कभी नहीं सुना था।
ऐसे में जब वो मामले से निपटने के लिए गाजियाबाद लौटे, तो अजय का दावा है कि डीपी यादव ने कथित तौर पर उन्हें डराने के लिए पुलिस स्टेशन में गुंडे भेजे थे। अजय की सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा दल बनाया गया था, जो पिछले 22 सालों से उनके साथ है।
जब इंडियन एक्सप्रेस ने डीपी यादव से संपर्क किया, तो उन्होंने अपने खिलाफ कोई मामला दर्ज होने से इनकार किया। “मैंने उनके खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा या लिखा है। मैं आपको यह लिखित में दे सकता हूं… मैं आपको एक हलफनामा दे सकता हूं कि हमने उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कहा या किया है।”
अजय कटारा की हत्या की कोशिशों के बारे में पूछे जाने पर डीपी यादव ने कहा, “मैं ऐसा क्यों करूंगा? कटारा एक धोखेबाज है जो अपने गममैन को इधर-उधर घुमाना और अवैध तरीकों से पैसा कमाना पसंद करता है। वो सुरक्षा व्यवस्था को अपने पास रखने के लिए ये सब झूठ बोल रहा है।”
हालांकि, अजय के खिलाफ मामलों को खारिज करते हुए जजों ने लगातार आदेशों में उनके द्वारा झेले गए उत्पीड़न का संज्ञान लिया है।
पत्नी से हो गया तालाक
अपने जीवन में आए ड्रास्टिक चेंज के बावजूद अजय कहते हैं कि वे एक नॉर्मल लाइफ के लिए तरसते हैं। 2005 में, उस समय 32 वर्ष के थे, उन्होंने गाजियाबाद की एक लड़की से शादी की, लेकिन दोनों का तालाक हो गया। वहीं, अजय के खिलाफ दहेज और मेंटल अब्यूज से संबंधित आईपीसी धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।
2008 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अजय के खिलाफ दहेज के मामले का निपटारा कर दिया, जब पुलिस ने फरवरी 2007 में एक रद्दीकरण रिपोर्ट दायर की कि कई समन के बावजूद, महिला और उसके वकील अदालत में पेश होने में विफल रहे।
अजय का दावा है कि 2007 से 2009 के बीच उन पर कई बार जानलेवा हमले हुए। जून 2007 में, कथित तौर पर मेरठ में उन पर गोली चलाई गई, जब वे काम के लिए वहां गए थे। वहीं, नवंबर 2007 में, उन्हें अगवा कर लिया गया और एक तेज रफ्तार कार से फेंक दिया गया।
2013 में, अजय के खिलाफ POCSO का मामला दर्ज किया गया था। उन पर बदायूं की 12 साल की लड़की का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया था। 16 दिसंबर, 2019 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निपटाए जाने के बावजूद यह मामला लगभग एक दशक तक चलता रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया
इस साल 2 अप्रैल को, हाई कोर्ट ने अपने 2019 के फैसले में संशोधन की मांग करने वाली एक अर्जी को खारिज कर दिया। इसी मामले में कटारा को फंसाने के लिए कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट में दो स्पेशल लीव पिटीशन दायर की गई थीं, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने 20 सितंबर को सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
2013 में एक महिला ने अजय पर महरौली के पास एक होटल में उसके साथ रेप करने का आरोप लगाया था। वे कहते हैं, “एक बार फिर, मुझे टीवी न्यूज़ चैनलों के ज़रिए मामले की जानकारी मिली। इस बार मैं अंडमान में था।”
वे कहते हैं कि रेप के मामलों ने उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया। अजय कहते हैं, “मैं डिप्रेशन में चला गया और मेरा बहुत ज़्यादा वेट लॉस हो गया। मैं बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहा था। मैंने आत्महत्या के बारे में सोचा। यही एक बार था जब मैंने सोचा कि क्या मैं हार मान लेता तो बेहतर होता। लेकिन फिर मैंने सोचा कि वो (नीतीश) भी मेरी तरह ही कटारा था, मैं उसे कैसे निराश कर सकता था।”
अजय के वकील ने क्या कहा?
अजय की गवाही इस मामले में कितनी महत्वपूर्ण थी, इस बारे में बात करते हुए उनके वकील प्रदीप कुमार डे ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “वे चश्मदीद गवाह है, जो कोर्ट की नजर से बहुत महत्वपूर्ण है। अदालत उस व्यक्ति को उसके बयान के साथ-साथ कुछ अन्य सबूतों के आधार पर दोषी ठहरा सकती है।”
अजय को दो दशक की लड़ाई की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। एक तो ये कि उन्हें लोगों पर बहुत ज़्यादा भरोसा नहीं है। वे कहते हैं, “मेरे बहुत कम दोस्त हैं, मैं अपनी योजना के बारे में अपनी सुरक्षा टीम को भी पहले से नहीं बताता। कौन जानता है कि कौन किससे क्या कह देगा?”
अपनी सुरक्षा को लेकर लगातार चिंतित होते हुए, 2019 में अजय ने कुछ समय के लिए शाहदरा में एक घर किराए पर लिया। वह बताते हैं, “अगर मैं उनसे (परिजनों)दूर रहूं तो कम से कम मेरा परिवार सुरक्षित रहेगा।” उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि किराए का घर सबसे ऊपरी मंजिल पर हो, भागने की स्थिति में कम से कम दो एग्जिट डॉर हों, और घर एक संकरी गली के आखिर में हो ताकि बहुत से लोग आसानी से घर में घुस न सकें।
आज भी गाजियाबाद में उनका घर उनके हाउसिंग टीम के मेन गेट की ओर है। वे कहते हैं, “मैं हमेशा यह सुनिश्चित करता हूं कि मेरे घर से एक से अधिक एग्जिट डोर हों।” इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान उन्होंने अपने घर के मेन गेट की ओर मुंह करके बैठने पर जोर दिया।
कुछ हद तक एक रुटीन लाइफ जी रहा : अजय
अजय कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में उनकी जान पर हमले और झूठे केसों में कमी आई है और अब वे “कुछ हद तक एक रुटीन लाइफ” में आ गए हैं। हफ्ते के चार दिन अदालत में पेश होना पड़ता है,लेकिन वे अपना बाकी समय “जीवन के बचे हुए कामों को पूरा करने” में बिताते हैं।
उन्होंने फिर से शादी कर ली है और उनका एक बेटा है। और फिर भी, अजय शायद ही कभी अपने परिवार के साथ बाहर जाते हैं। वे कहते हैं, “मेरी शादी को अब 14 साल हो गए हैं, लेकिन मैं अपनी पत्नी और बेटे के साथ कभी फिल्म देखने नहीं गया।”
कटारा याद करते हैं कि कैसे 2020 में, उनकी पत्नी और बेटा, जो उस समय छह साल का था, एक कार द्वारा उनके स्कूटर को टक्कर मारने के बाद घायल हो गए थे। मैं चिंतित रहता था कि मेरे बेटे पर स्कूल में हमला हो जाएगा… लेकिन अब मैंने थोड़ा आराम है… अब, एक पुलिसकर्मी मेरे बेटे के साथ बस स्टॉप तक जाता है,” वे कहते हैं।
जब उनकी पत्नी सब्ज़ी खरीदने के लिए बाहर जाती हैं, तो वे सुरक्षाकर्मियों के साथ होती हैं। वह कहते हैं, “दम घुट गया है… पर अंधेरा मिटाने के लिए दीपक को जलना पड़ता है ना?”