दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ में कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताओं से संबंधित सीबीआई मामले में पूर्व राज्यसभा सांसद विजय दर्डा और पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता समेत पांच अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया। अदालत ने आरोपियों को आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) और धारा 420 (धोखाधड़ी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया। सजा तय करने को लेकर 18 जुलाई को अगली सुनवाई में बहस होने वाली है।

विजय दर्डा के साथ इन लोगों को भी अदालत ने पाया दोषी, नए सिरे से करवाई थी जांच

विशेष न्यायाधीश संजय बंसल ने पूर्व सांसद के बेटे देवेंदर दर्डा, वरिष्ठ लोक सेवक केएस क्रोफा और केसी सामरिया, जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड और इसके निदेशक मनोज कुमार जयसवाल को भी कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में दोषी ठहराया। हालाँकि सीबीआई ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी, लेकिन साल 2014 में अदालत ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और निर्देश दिया था कि जांच एजेंसी द्वारा नए सिरे से जांच की जाए।

तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के पास था कोयला विभाग

अदालत ने कहा कि लोकमत समूह के अध्यक्ष विजय दर्डा ने तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जिनके पास कोयला विभाग था,को लिखे पत्रों में तथ्यों को “गलत तरीके से प्रस्तुत” किया था। इसमें कहा गया कि दर्डा ने जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के लिए छत्तीसगढ़ में फतेहपुर (पूर्व) कोयला ब्लॉक को सुरक्षित करने के लिए ऐसा किया था। 35वीं स्क्रीनिंग कमेटी ने जेएलडी यवतमाल एनर्जी को कोयला ब्लॉक आवंटित किया था।

सीबीआई ने अपनी एफआईआर में क्या आरोप लगाया था? क्लोजर रिपोर्ट में क्या था

सीबीआई ने अपनी एफआईआर में आरोप लगाया था कि जेएलडी यवतमाल एनर्जी ने 1999-2005 में अपने समूह की कंपनियों को चार कोयला ब्लॉकों के पिछले आवंटन को गलत तरीके से छुपाया था। लेकिन जांच एजेंसी ने बाद में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। उसमें कहा गया कि कोयला ब्लॉक आवंटन में कोयला मंत्रालय द्वारा जेएलडी यवतमाल एनर्जी को कोई अनुचित लाभ नहीं पहुंचाया गया। सीबीआई ने कहा था कि कोयला मंत्रालय के अधिकारियों और जेएलडी यवतमाल एनर्जी के निदेशकों के बीच धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश को स्थापित करने के लिए कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है।

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यूपीए-2 सरकार को हिला देने वाले कोयला घोटाले में 13वीं सजा

गुरुवार की सजा कोयला घोटाले में 13वीं सजा है। इस मामले ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार को हिलाकर रख दिया था। साल 2012 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने 2004 से 2009 के बीच गैर-पारदर्शी तरीके से सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और निजी कंपनियों को 194 कोयला ब्लॉकों के कथित अकुशल आवंटन के लिए सरकार की आलोचना की थी। सीएजी ने शुरू में सरकारी खजाने को 10.6 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था, लेकिन संसद में पेश की गई उसकी अंतिम रिपोर्ट में यह आंकड़ा 1.86 लाख करोड़ रुपये बताया गया।