अस्सी के दशक में बिहार आगे बढ़ रहा था, लालू यादव राज्य का सीएम बनने की सोच रहे थे। इसी दौर में एक लड़का तेजी से राजनीति के गलियारे में घुसने की जुगत में था। हालांकि यह लड़का पहले केवल राजनीतिक विचारों के बेमेल होने के चलते मारपीट में ही शामिल था, लेकिन साल 1986 में उस पर पहली बार एफआईआर दर्ज हुई। इस लड़के का नाम था शहाबुद्दीन।

शहाबुद्दीन का जन्म बिहार के सीवान जिले के प्रतापपुर में हुआ था। कॉलेज के दिनों से ही वह मार-पिटाई और खूनी रंजिशों में शामिल था। इसके बाद उसे राजनीति में आने की सूझी तो फिर 1990 में शहाबुद्दीन, लालू यादव के साथ जुड़ गया और आगे चलकर वह दो बार विधायक, 4 बार सांसद बना। लेकिन इसने बिहार की धरती में अपराधों की ऐसी झड़ी लगाई कि जनता-प्रशासन सभी अवाक थे। धीरे-धीरे शहाबुद्दीन रंगदारी, फिरौती, धमकी और तस्करी जैसे धंधे में भी उतर गया।

बिहार में आये दिन शहाबुद्दीन कोई न कोई अपराध को अपने गुर्गों की मदद से अंजाम देता। सीवान पुलिस के माथे पर बल पड़े थे और दबी जुबान में ही सही पर जनता उसके खिलाफ बोल रही थी। लेकिन शहाबू के नाम से चर्चित इस अपराधी ने किसी की न सुनी और साल 2001 में इसने एक पुलिस अधिकारी को थप्पड़ मार दिया। अब बात पुलिस के इकबाल पर आ चुकी थी इसलिए सीवान पुलिस ने शहाबू पर टीम बनाकर हमला बोला। पुलिसवालों और शहाबू के गैंग में भीषण मुठभेड़ हुई। इस घटना में दो पुलिसकर्मियों समेत आठ लोग मारे गए।

इस घटना के बाद बौखलाए शहाबू ने पुलिस की तीन गाड़ियां फूंक दी और नेपाल भाग गया। थोड़े दिनों बाद शहाबुद्दीन लौटा तो फिर से एक अपहरण को अंजाम दिया। यह किडनैपिंग एक कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्त्ता की थी जिस मामले में शहाबुद्दीन को जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद साल 2004 में एक केस सामने आया जिसमें शहाबुद्दीन के ऊपर दो सगे भाइयों को तेजाब से जिंदा जला देने का आरोप लगा, मामला भी दर्ज हुआ लेकिन केस में कोई भी गवाह न होने के चलते हर बार छूटता रहा।

2005 में शहाबुद्दीन को जिला बदर कर दिया गया और इसके बाद घर पर पड़ी रेड ने सांसद शहाबुद्दीन के लिए मुश्किलें ला दी। इस अपराधी के घर पकिस्तान के बने कई हथियार और बम मिले, जब मामला कोर्ट पहुंचा तो वहां से रास्ता सीधे जेल को गया। जैसे-तैसे चल रहा था कि 2007 में पार्टी ऑफिस में तोड़फोड़ के मामले में उसे दो साल की जेल हो गई और एक कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता की हत्या के मामलें में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

इसके बाद 2009 में चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किये जाने के बाद अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा पर वह हार गई। 2014 और 2016 में हत्याओं के मामलें में फिर से नाम उछला और वह जेल में ही रहा। लेकिन साल 2021 की कोरोना महामारी के चपेट में आने के चलते उसकी मौत हो गई। उस वक्त शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में बंद था।