Delhi Riots: दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने 63 साल के बुजुर्ग को जमानत देने से इनकार कर दिया। इस मामले में आरोपी बुजुर्ग ने अपनी उम्र का हवाला देकर अदालत से जमानत की याचना की थी। लेकिन दंगे से जुड़े CCTV फुटेज को देखने के बाद जज ने बुजुर्ग को जमानत नहीं दिया। एडिशनल सेशन जज विनोद यादव ने लियाकत अली की जमानत याचिका को रद्द करते हुए कहा कि याचिकर्ता की पहचान एक दंगाई के तौर पर हुई है।

CDR कॉल डिटेल से भी पता चलता है कि लियाकत 25 फरवरी को दंगा स्थल पर मौजूद थे। जज ने कहा कि ‘याचिकाकर्ता एक बुजुर्ग इंसान हो सकते हैं..लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के बयान और अन्य सबूतों से दंगा में बुजुर्ग की भूमिका जाहिर होती है। यह भी साबित होता है कि बुजुर्ग ने ही सबसे पहले एक समुदाय पर पत्थर फेंका था। एक समुदाय के वरिष्ठ नागरिक होने के बावजूद उन्होंने भावनाओं को भड़काने में अहम भूमिका अदा की।’

हालांकि अली की तरफ से अदालत में पेश हुए वकील दिनेश तिवारी ने उनके जमानत के पक्ष में दलील देते हुए पहले कहा कि ‘उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई है और दूसरी दलील दी कि वो एक सीनियर सिटीजन हैं लिहाजा उन्होंने ऐसा कुछ किया होगा ऐसी उम्मीद नहीं है।’ इसपर स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर मनोज चौधरी ने बुजुर्ग की जमानत का विरोध किया। पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की तऱफ से कहा गया कि प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के बाद आऱोपी को पकड़ा गया है। अली इस दंगे से जुड़े कई अन्य दूसरे केस में भी आरोपी हैं।

कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की अदालत ने कहा कि ‘जब भी समाज या परिवार में किसी तरह की तनावपूर्ण स्थिति आती है तो बुजुर्ग अपनी समझदारी से हालात को संभालते हैं। वह युवा पीढ़ी को भाई-चारे का पाठ पढ़ाते हैं। लेकिन यहां तो उलटा ही हुआ। अधिकतर बुजुर्ग दंगों को भड़काने और ज्यादा से ज्यादा नुकसान करने में सबसे आगे थे। इस मामले की फुटेज में भी यह बुजुर्ग सबसे पहले पत्थर उठाकर फेंकते हुए साफ नजर आ रहे हैं फिर बुजुर्ग होने के नाते किस बात की राहत दी जाए।’