आज बात 26 साल पहले हुए एक खौफनाक कांड की जिसने देश भर के लोगों के अंदर जबरदस्त गुस्सा भर दिया था। प्रियदर्शिनी मट्टू नाम की लड़की के साथ हुई इस घटना ने लगभग पुलिस और कानून से भरोसा हटा दिया था। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली लड़की के साथ दुष्कर्म और फिर हत्या की यह वारदात काफी सालों तक लोगों के मन में रच बस सी गई थी।
मामला 26 साल पहले 1996 का है। श्री नगर से स्कूलिंग और जम्मू से बीकॉम की पढ़ाई करने के बाद प्रियदर्शिनी मट्टू उर्फ प्रिया दिल्ली यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई कर रही थी। यहीं एक संतोष नाम का लड़का भी पढ़ता था जो प्रिया का सीनियर होने के साथ उसका दीवाना भी था। यहां तक कि संतोष कई बार प्रिया को प्रपोज कर चुका लेकिन उसने हर बार संतोष को इंकार कर दिया था।
प्रिया ने सोचा शायद वह पास हो जाए तो पीछा छोड़ देगा लेकिन संतोष नहीं माना। इसके चलते प्रिया ने पुलिस में शिकायत कर दी, जिसके बाद प्रिया को राजिंदर सिंह नाम का एक सुरक्षाकर्मी भी दिया गया था। पुलिस ने संतोष को चेतावनी दी थी कि वह लड़की से दूर रहे लेकिन वह नहीं माना। साल 1996 में 23 जनवरी के दिन राजिंदर सिंह को देर हो गई इसलिए प्रिया अपने माता-पिता का साथ कॉलेज चली गई।
सुरक्षा की चिंता के बीच जब राजिंदर सिंह कॉलेज पहुंचे तो वहां उसे संतोष दिखा लेकिन प्रिया अपनी क्लास में थी। क्लास ख़त्म होने के बाद प्रिया, राजिंदर के साथ घर वापस आ गई और सुरक्षाकर्मी से शाम को आने को कहा। इस दौरान घर का रसोइया भी किसी काम से बाहर चला गया। इसी बीच संतोष घर के अंदर दाखिल हुआ, जिसे प्रिया के पड़ोसी कुप्पुस्वामी ने दाखिल होते देख लिया था।
शाम को 5:30 बजे जब राजिंदर घर पहुंचा तो किसी ने दरवाजा नहीं खोला। ऐसे में जब वह घर के पीछे वाले दरवाजे से अंदर घुसे तो वहां का नजारा देख राजिंदर दंग रह गए। प्रिया का शव कमरे में खून से लथपथ पड़ा था। उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी और जांच टीम ने मौके से सारे सबूत जुटा लिए। इसमें एक हीटर का तार भी था जिससे प्रिया का गला घोंटा गया था।
घटना की सूचना माता-पिता को मिली तो संतोष का नाम सामने आया। बता दें कि, संतोष खुद एक प्रशासनिक अधिकारी का बेटा था जो उस वक्त जम्मू-कश्मीर में तैनात थे। मामले में जांच शुरू हुई तो रेप की पुष्टि ही नहीं हुई। सीबीआई पूरे मामले को देख रही थी। तीन साल बाद 3 दिसंबर 1999 को जज जीपी थरेजा ने घटिया जांच के लिए सीबीआई की खिंचाई की और संतोष को बरी कर दिया।
घटना में सारे सबूतों के बाद संतोष का बरी होना जनता को रास नहीं आया, पूरे देश में घटना को लेकर भारी गुस्सा था। साल 2000, फरवरी में सीबीआई ने फिर से मामले में हाई कोर्ट में अपील की और कुछ महीनों बाद संतोष के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर दिया। अपील के 6 साल बाद 17 अक्टूबर 2006 को हाई कोर्ट ने प्रियदर्शिनी मट्टू के साथ बलात्कार और हत्या के लिए संतोष को दोषी ठहराया।
अदालत ने अपने आदेश में कहा था पुलिस ने प्रिया के पड़ोसी कुप्पुस्वामी का बयान ही नहीं लिया था। जबकि पड़ोसी ने घटना के दिन ही संतोष के बारे में बता दिया था। इसके अलावा जांच में भी पुलिस ने ढीला रवैया बरता। सजा से बचने के लिए संतोष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश पर स्टे दे दिया। इसके बाद 6 अक्टूबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने संतोष सिंह की सजा बरकरार रखी, लेकिन मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
