दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें एक व्यक्ति को अपनी “बीवी” के साथ बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया गया था। साल 2014 में कथित घटना के समय उसकी ‘बीवी’ लगभग “15 वर्ष” की थी। दिल्ली सरकार ने 15 नवंबर, 2016 के ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ “अपील करने की अनुमति” की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी।

क्या है साल 2014 का पूरा मामला

ट्रायल कोर्ट के फैसले में एक मुस्लिम शख्स को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दंडनीय अपराध से बरी कर दिया गया था। फरवरी 2015 में दर्ज की गई एफआईआर में पीड़िता की ओर से आरोप लगाया गया था कि “अक्टूबर और नवंबर 2014” में जब लड़की अकेली थी तो आरोपी आदमी “उसका असली जीजा” उसके घर “चार से पांच बार” आया और उसके साथ बलात्कार किया।

स्कूल के एडमिशन रजिस्टर में 13 मई 2000 दर्ज है लड़की की जन्मतिथि

दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने 17 अगस्त के अपने आदेश में कहा, “हमने पाया कि चूंकि पीड़ित बच्ची या बीवी लगभग 15 वर्ष की थी। प्रतिवादी को ठीक ही बरी कर दिया गया है। हमें अपील की अनुमति देने का कोई आधार नहीं मिला। इसलिए अर्जी को खारिज किया जाता है।” हाई कोर्ट ने कहा कि लड़की की जन्मतिथि उसके स्कूल के एडमिशन रजिस्टर में 13 मई 2000 दर्ज की गई थी। अदालत ने कहा, “इसलिए बच्ची की जन्मतिथि पर सवाल नहीं उठाया गया, जिसके अनुसार घटना के समय उसकी उम्र लगभग 15 वर्ष थी।”

पहले आरोपी को बताया था जीजा, फिर पीड़िता ने की शादी

अदालत ने आगे कहा कि लड़की ने निचली अदालत के समक्ष गवाही दी थी कि वह आरोपी व्यक्ति उसका जीजा था। उसने आगे बताया कि दिसंबर 2014 में वह अपनी मां, उस व्यक्ति और उसकी पत्नी के साथ अपने चचेरे भाई की शादी में शामिल होने के लिए बिहार गई थी। खंड पीठ ने कहा, “शादी में शामिल होने के बाद उसने आरोपी से शादी कर ली… उसने आगे बताया कि प्रतिवादी ने उसके बाद कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। वह गर्भवती हो गई और यह बात उसकी मां को पता चल गई। उसके माता-पिता को प्रतिवादी के साथ उसकी शादी के बारे में पता नहीं था।”

लड़की और उसकी मां की गवाही और पूछताछ में अहम सबूत नहीं मिले

पीठ ने कहा, “इसलिए फरवरी 2015 में उसकी माँ ने पुलिस को बुलाया और उसी दिन वह अपनी माँ के साथ पुलिस स्टेशन गई, जहाँ उसकी माँ ने शिकायत दर्ज कराई। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसका बयान दर्ज किया गया। उसने आगे बताया कि प्रतिवादी ने शादी से पहले उसके साथ कभी कोई गलत काम नहीं किया था। काबिल एपीपी ने गवाह से जिरह की, लेकिन कुछ भी ठोस जानकारी हासिल नहीं हो सकी।”

शादी के बाद ही बनाए गए शारीरिक संबंध, ट्रायल कोर्ट का फैसला सही

पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने लड़की की गवाही को देखते हुए “सही टिप्पणी” की है कि उसने दिसंबर 2014 में प्रतिवादी से शादी की थी और “इसके बाद ही उन्होंने शारीरिक संबंध बनाए, POCSO एक्ट की धारा 5(1) के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 6 के तहत कोई अपराध नहीं है।” 17 अप्रैल, 2015 को उस व्यक्ति के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत आरोप तय किए गए, जिसमें उसने खुद को दोषी नहीं बताया।

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IPC के तहत बलात्कार के अपराध के अपवादों में से एक मामला

लड़की और उसकी माँ महत्वपूर्ण गवाह थीं और उनकी गवाही दर्ज की गई थी। सबूतों के आधार पर, ट्रायल कोर्ट ने उस आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया। उसके खिलाफ राज्य ने हाई कोर्ट के समक्ष अपील करने की अनुमति दे दी। भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत, बलात्कार के अपराध के अपवादों में से एक में कहा गया है, “किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही पत्नी, जिसकी पंद्रह वर्ष से कम उम्र न हो, के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है।”