साल 2008 में अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाके मामले में विशेष अदालत ने शनिवार को जारी अपने आदेश में 38 को मौत की सजा सुनाई तो वहीं 11 को मौत तक जेल में रहने की सजा सुनाई। इस आदेश में कहा गया कि देश में पहली बार अस्पताल को सामूहिक हत्याओं के लिए चुना गया था। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि जिन दो अस्पतालों में योजना के साथ समयबद्ध तरीके से विस्फोट किये गए, उनमें तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह सहित कई अन्य नेताओं को भी मारने का प्लान बनाया गया था।

बता दें कि, 26 जुलाई 2008 को शहर में 20 धमाकों में से एक सबसे विध्वंसक धमाका एशिया के सबसे बड़े सिविल अस्पताल असरवा में हुआ था। इन धमाकों में 37 लोगों की मृत्यु हुई थी, जिनमें मुख्य रूप से डॉक्टर, समाजसेवी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और घायलों के परिजन शामिल थे। वहीं, दूसरे अस्पताल एलजी में हुए धमाकों में कोई भी हताहत नहीं हुआ था। इन धमाकों में 56 लोग मारे गए थे जबकि 240 लोग घायल हुए थे।

अदालत के विशेष न्यायाधीश एआर पटेल ने आदेश में कहा, “देश में अब तक कई बम धमाकों की घटनाएं हुई हैं, लेकिन इन विस्फोटों में सामूहिक हत्याओं के इरादे से शहर के दो बड़े अस्पतालों में बम धमाके किये गए। साथ ही इन धमाकों को वीभत्स रूप देने के लिए विस्फोटकों से लदी कई गाड़ियों का इस्तेमाल किया गया था। देश के अस्पतालों में इस तरह के बम विस्फोट न पहले कभी हुए थे और न ही इस बारे में सुना गया था।”

अदालत ने कहा कि, “इन बम धमाकों में तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह सहित नितिनभाई पटेल, आनंदी बेन पटेल, प्रदीप सिंह परमार, विधायक परमार सिंह जड़ेजा जैसे कई अन्य नेता-मंत्री निशाने पर थे।

कोर्ट ने कहा कि “एक बात तो स्पष्ट है कि अस्पताल में किये गए धमाकों में हमलावरों का इरादा राजनेताओं को मारने का था। क्योंकि वह जानते थे कि शहर में बम धमाकों की खबर सुनकर सभी लोग (नेता, समाजसेवी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता) पीड़ितों की मदद व सांत्वना के लिए अस्पताल की ओर रुख करेंगे। अदालत ने इस दौरान इस योजना के स्पष्टीकरण के लिए तीन दोषियों के कबूलनामे का हवाला दिया।

इस मामले में अदालत ने यह भी दर्ज किया कि इस योजना में अधिक से अधिक हिन्दुओं को मारने की योजना थी, इसी के चलते उन क्षेत्रों में हड़तालें की गई थी। इसके अलावा न्यायाधीश ने उन दोषियों के तर्क को खंडित किया जिसमें कुछ ने कहा कि था कि ‘उन्हें मुस्लिम होने के चलते इस मामले में झूठा फंसाया गया है।’

इस सन्दर्भ में कोर्ट ने आदेश में कहा कि, “कई आरोपियों ने कहा था कि क्योंकि वह मुस्लिम हैं इसलिए उन पर झूठे आरोप लगाए गए, लेकिन ऐसी बातें कतई स्वीकार्य नहीं हैं; क्योंकि देश में करोड़ों मुसलमान अच्छे नागरिक का फर्ज निभाते हुए रहते हैं। जांच टीम ने केवल इन लोगों को ही क्यों गिरफ्तार किया? अगर वह चाहते तो किसी और भी फंसा सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

इसके अलावा कोर्ट ने कई दोषियों के अनुचित व अशोभनीय व्यवहार पर भी ध्यान दिया। जिनमें से कुछ ने कहा था कि “वह केवल अल्लाह में विश्वास करते हैं, उन्हें भारत सरकार, उनके कानूनों और अदालतों में विश्वास नहीं है। भारत में कोई ऐसी जेल नहीं है, जो उन्हें हमेशा के लिए रख सकती है। इसलिए देश/सरकार को उन्हें जेल में रखने की जरूरत नहीं है।”

उपरोक्त टिप्पणी पर जवाब देते हुए अदालत ने कहा कि, “इन सब बातों के बीच यदि उन्हें समाज में रहने दिया भी गया तो यह बेगुनाह लोगों पर आदमखोर तेंदुएं को छोड़ने जैसा होगा।” साथ ही अदालत ने न्यायिक कार्यवाही में अभियुक्तों की सजा के एलान के समय उनके अनुचित व्यवहार, साबरमती केंद्रीय जेल के अंदर 213 फुट की सुरंग खोदने सहित जेल आचरण पर भी विचार किया।