उत्तर प्रदेश में चंबल के किनारे बसे बीहड़ों में एक वक्त डकैतों का राज हुआ करता था। किसी निश्चित जगह पर न टिकने वाले यह डकैत इलाकों में लूटपाट को अंजाम देते थे। 70 के दशक में मैनपुरी के इलाके में डकैत छविराम की बड़ी दहशत थी। दिनदहाड़े लोगों का गायब हो जाना उस समय आम बात सी हो चली थी, लेकिन जब नेताओं का अपहरण शुरू हुआ तो बात बढ़ गई।

मैनपुरी के औछा गांव में जन्में डाकू छविराम का खौफ दशकों तक लोगों और राजनीतिक पार्टियों के बीच में रहा। डकैत छविराम को लोग नेताजी के नाम से जानते थे और वह डाकुओं की टॉप लिस्ट में शामिल था। छविराम का गैंग इलाके में डकैती और अपहरण के लिए कुख्यात था। इसके अलावा, उनके निशाने पर राजनीतिक दलों के नेता हुआ करते थे।

डाकू छविराम का आपराधिक इतिहास 20 साल की उम्र से शुरू हुआ था फिर 1970 से लेकर 1982 तक उसका खौफ बरकरार रहा। उस समय मुलायम सिंह यादव भी मैनपुरी से सक्रिय राजनीति में थे और छविराम के गैंग ने भी इससे इलाके में आतंक मचा रखा था। माना जाता था कि मुलायम और छविराम का छत्तीस का आंकड़ा था, वहीं जब 1980 में यूपी में वीपी सिंह की सरकार आई तो डकैतों पर एक्शन की बात कही गई।

साल 1981 में डकैत छविराम ने यूपी पुलिस को गहरा घाव दिया। पहले उसने अलीगंज के नाथुआपुर गांव में 9 पुलिसवालों को मार डाला फिर एक सीओ को अगवा कर बड़ी चुनौती दे दी। हालांकि, छविराम ने सीओ के एक दिन बाद छोड़ दिया था लेकिन मामला दिल्ली तक जा पहुंचा। इधर मुलायम सिंह यादव ने भी छविराम पर कार्रवाई की मांग की।

मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने यूपी पुलिस को आदेश दिया कि छविराम पर अंकुश लगाया जाए। फिर तत्कालीन एसपी कर्मवीर सिंह ने प्लान के तहत मुखबिरों को काम पर लगाया। 2 मार्च 1982 को पता चला कि डकैत छविराम का गैंग घिघोर गांव के आसपास देखा गया है। यूपी पुलिस तैयार थी और एटा-इटावा और मैनपुरी के बीच के समतल इलाके में घेरने की तैयारी की गई।

रातभर मुखबिर छविराम और उसकी गैंग की सूचना पुलिस तक पहुंचाते रहे। इस दौरान डाकुओं ने कई ठिकाने बदले लेकिन 3 मार्च के दिन छविराम और उसके गिरोह को मैनपुरी से 27 किलोमीटर दूर हरेना गांव में देखा गया। यह पूरा इलाका सेंगर नदी के तलहटी का था और यहीं पर पूरे गिरोह को पुलिस की टुकड़ी ने घेर लिया।

3 मार्च 1982 को सुबह से लेकर देर शाम तक चली मुठभेड़ में पुलिस और डकैतों ने मिलकर करीब 9,000 राउंड फायरिंग की। कई घंटों तक चली मुठभेड़ के बाद डकैत छविराम और उसके आधा दर्जन से अधिक साथियों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया। डकैत छविराम पर सरकार ने 1 लाख का इनाम रखा था और उस दौर में छविराम और उसके साथियों के शव बैलगाड़ी में लादकर लाए गए थे।