बिहार में चुनाव का बिगूल बज चुका है। आज इस कड़ी में हम बात करेंगे पप्पू यादव की। राज्य की जनता के बीच कभी बाहुबली की छवि ऱखने वाले पप्पू यादव अब खुद को राज्य के CM के तौर पर देखते हैं। कोई दो राय नहीं कि पप्पू यादव ने खुद की छवि बदलने और जनता के करीब पहुंचने में काफी मेहनत की है। हालांकि चुनाव नतीजे बताएंगे कि जनता उन्हें इसका क्या इनाम देती है।

कभी दबंग कहे जाने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव तिहाड़ की हवा भी खा चुके हैं। कहा जाता है कि किसी अन्य बाहुबलियों की तरह पप्पू यादव भी बिहार में राजनीति और अपराध के कॉकटेल से ही पनपे थे। 14 जून 1998 को पूर्णिया में अज्ञात लोगों ने पूर्व माकपा विधायक अजीत सरकार की गोली मारकर हत्या कर दी थी। कहा जाता है कि अजित सरकार और पप्पू के बीच किसानों के मुद्दे पर मतभेद था। अजीत सरकार की हत्या के बाद पप्पू यादव इस हत्याकांड में आरोपी बनाए गए।

जल्दी ही पुलिस की टीम ने पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें सिक्किम की जेल में कैद कर दिया गया। कहा जाता है कि उस वक्त लालू प्रसाद यादव से करीबी और अपनी राजनीति रसूख की वजह से पप्पू यादव बेऊर जेल में ट्रांसफर किये गये। हालांकि जब यह केस सीबीआई के हाथ में गया तब पप्पू यादव को तिहाड़ की हवा भी खानी पड़ी। सीबीआई की विशेष अदालत ने इस हत्याकांड में पप्पू यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई। बाद में पटना हाईकोर्ट ने 2008 में पप्पू को रिहा कर दिया था।

पप्पू यादव साल 1990 में पहली बार निर्दलीय विधायक बनकर विधानसभा में पहुंचे थे। कहा जाता है कि साल 1986-87 में जब लालू यादव बिहार की राजनीति में बड़ी पहुंच बनाने की जद्दोजहद में लगे थे तब पप्पू यादव ने खुलकर उनका साथ दिया था और यहीं वजह है कि पप्पू यादव का नाम उन लोगों में शामिल रहा है जो लालू प्रसाद यादव के बेहद नजदीकी रहे हैं और पार्टी ने चुनाव दर चुनाव उनपर भरोसा भी जताया।

साल 1991 में पप्पू यादव पूर्णिया लोकसभा सीट से जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद  साल 1996, 1999 और 2004 में पप्पू यादव ने राजद की टिकट पर जीत का परचम लहराया। 2014 में भी पप्पू यादव ने राजद के टिकट पर जेडीयू के दिग्गज शरद यादव को हराकर पार्टी में नई ऊर्जा भर दी थी। लेकिन कहा जाता है कि इसी के बाद पप्पू यादव और लालू प्रसाद यादव के बीच दूरियां बढ़ने लगीं।

साल 2015 में पप्पू यादव न राजद से अलग होकर अपनी अलग पार्टी जन अधिकार पार्टी बनाई। एक अखबार से साक्षात्कार में पप्पू यादव ने खुद बताया था कि ‘मैं तो एक सीधा-सादा छात्र था। लालू का समर्थक था। उनको अपना आदर्श मानता था, लेकिन लालू ने मेरे साथ बार-बार छल किया। मुझे बिना अपराध किए ही कुर्सी का नाजायज फायदा उठाते हुए कुख्यात और बाहुबली बना दिया।’

लालू से अपने अलगाव को लेकर पप्पू यादव हमेशा ही राजद सुप्रीमो से खफा नजर आते हैं। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने पूर्णिया, सहरसा और मधेपुरा में कई आशिर्वाद रैलियां भी कीं और अपनी छवि बदलने का प्रयास किया।

पप्पू यादव ने अपनी बायोग्राफी ‘द्रोहकाल का पथिक’ में बताया है कि एक बार उन्होंने खुदकुशी की कोशिश भी की थी। दरअसल इस बार मामला अपराध या राजनीति नहीं बल्कि मोहब्बत से जुड़ा था।

एक एलबम में रंजीत रंजन की फोटो देख कर पप्पू यादव पहली ही नजर में उनपर फिदा हो गए थे। टेनिस खेलने वाली रंजीत रंजन हालांकि पप्पू को पसंद नहीं करती थीं और उन्होंने कई बार पप्पू को मना किया था कि वो उन्हें टेनिस कोर्ट पर देखने ना आएं। रंजीत की बेरुखी को प्यार में हार मानकर पप्पू यादव ने नींद की गोलियां खाकर अपनी जान देने की कोशिश की।

कई दिनों तक वो अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ते रहे। बाद में रंजीत को उनके सच्चे प्यार का एहसास हुआ और फिर पप्पू यादव ने अपने परिवार वालों के विरोध को दरकिनार कर रंजीत रंजन से गुरुद्वार में शादी रचाई थी।