बिहार की राजनीति को जब भी याद किया जाएगा, उसमें रामा सिंह, सूरजभान सिंह, अनंत सिंह जैसे कई बाहुबली नेताओं का नाम सामने आएगा। लेकिन कोसी की धरती से निकला एक ऐसा नेता भी था, जिसने जुर्म के चलते यहां की मिट्टी में खून के दाग दिए। इस नेता का नाम था आनंद मोहन सिंह।

बिहार के सहरसा जिले पचगछिया गांव में 26 जनवरी 1956 को पैदा हुए आनंद मोहन सिंह के दादा राम बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। 1974 में जब आनंद 18 साल के हुए तो जेपी आंदोलन से जुड़े और सियासी समझ बनानी शुरू की। आपातकाल के दौरान 2 साल जेल में भी रहे। 1978 में पीएम मोरार जी देसाई को काले झंडे दिखाकर चर्चा में आये और 80 का दशक आते-आते वह दबंग बन चुके थे। उन पर कई मुकदमें दर्ज हो चुके थे।

साल 1983 था और आनंद मोहन को अपने कामों के चलते जेल जाना पड़ा। साल 1990 में आनंद मोहन सिंह जनता दल के टिकट पर महिषी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं और कांग्रेस के तगड़े प्रत्याशी को 60 हजार से अधिक वोटों से हरा देते हैं।

राजपूत समुदाय से आने वाले आनंद मोहन आरक्षण विरोधी रहे। जब देश में मंडल आयोग आने के बाद जनता दल ने भी आयोग का समर्थन किया तो आनंद मोहन जनता दल से अलग हो गए। 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई और बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया। इसके एक साल बाद ही उनकी पत्नी लवली आनंद ने 1994 में वैशाली लोकसभा सीट का उपचुनाव जीत लिया।

वैसे तो आनंद मोहन सिंह पर कई मामले दर्ज थे लेकिन 5 दिसंबर 1994 की एक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इसी साल आनंद मोहन के करीबी छोटन शुक्ला की हत्या हो गई। शुक्ला की अंतिम यात्रा के बीच उस समय के गोपालगंज डीएम जी कृष्णैया की गाड़ी गुजर रही थी। भीड़ भड़क गई और डीएम को पीट-पीटकर मार डाला। आनंद मोहन पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगा।

डीएम हत्या मामले में आनंद, पत्नी लवली समेत 6 को आरोपी बनाया गया और साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। यह पहला मामला था, जहां एक नेता को मौत की सजा सुनाई गई। लेकिन 2008 में इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।

इन सालों में बाहुबली छवि वाले नेता ने जेल में रहते हुए भी कई चुनाव जीते, लेकिन आनंद मोहन सिंह अब आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।