आशीष आर्यन, प्रणव मुकुल
विशाखापट्टनम में हुए गैस लीक कांड में कम से कम 10 लोगों की जान चली गई और कई लोग बीमार पड़ गए। LG Polymers India के विशाखापट्टनम स्थित इकाई के कुछ डॉक्यूमेंट ‘The Indian Express’ के हाथ लगे हैं। इन कागजातों से यह पता चला है कि यह यूनिट पिछले 22 साल से बिना मंजूरी के ही चल ही थी। इतना ही नहीं यहां तय सीमा से ज्यादा उत्पादन भी किया जा रहा था।
कंपनी की तरफ से State Level Environment Impact Assessment Authority (SEIAA), को जो शपथ पत्र दिया गया था उसमें कंपनी की तरफ से यह माना गया है कि उत्पादन को लेकर कंपनी के पास अवैध उत्पादन की सीमा को लेकर Environmental Clearance सर्टिफिकेट नहीं है।
कागजातों के मुताबिक कंपनी ने यह भी स्वीकार किया है कि इसमें बिना Environmental Clearance के ही उत्पादन की क्षमता को बढ़ाया है। कंपनी की तरफ 10, मई 2019 को यह भी कहा गया था कि वो भविष्य में वो किसी भी प्रकार के जरुरी नियमों का उल्लंघन नहीं करेगी।
कंपनी की योजना थी कि पिछले साल इस यूनिट को ‘Category A’ प्रोजेक्ट की श्रेणी में लाया जाए। इसके लिए कंपनी ने Andhra Pradesh State Environmental Impact Assessment Authority के पास जून 2019 में अप्लाई भी किया था जहां से यह प्रपोजल केंद्र को ट्रांसफर किया गया था।
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नवंबर 2019 में कंपनी के प्रोपोजल को लिस्ट से यह कहते हुए हटा दिया गया था कि ‘ऐसा लगता है कि यह कंपनी अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं रखती है।’
साल 1997 में LG Polymers ने यह प्लांट McDowell & Company से खरीदा था। इसके बाद आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास मई 2019 में प्लांट को हरी झंडी देने के लिए अप्लाई किया गया। दरअसल कंपनी इसके उत्पादन क्षमता को प्रतिदिन 415 टन से बढ़ाकर 655 टन करना चाहती थी।
इस यूनिट में प्लास्टिक उत्पादन का काम होता था। इसके अलावा यहां प्राइमरी प्लास्टिक को इंजीनियरिंग प्लास्टिक में रि-प्रॉसेस करना का काम भी होता था। एलजी केमिकल्स, एलजी पॉलीमर्स की मूल कंपनी है। गुरुवार को सिओल स्थित एलजी केमिकल्स की तरफ से बयान जारी कर कहा गया कि गैस लीक को अब कंट्रोल कर लिया गया है।
कंपनी प्रशासन के साथ सहयोग कर रही है। इस गैस से जी मचलाना और सिर चकराने जैसी शिकायतें हो सकती हैं, इसलिए हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इस वक्त सभी को जरुरी इलाज मिल सके। हम इस बात की भी जांच कर रहे हैं कि यह गैस लीक कैसे हुआ?’
इस यूनिट को 1982-1997 के बीच McDowell & Company ही संचालित करती थी। इसे एलजी पॉलीमर्स को बेचने से पहले कंपनी ने तय किया था कि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए यहां ‘स्टाइरीन’ के इस्तेमाल को बंद किया जाए। McDowell & Company से कंपनी को खरीदने के बाद एलजी पॉलीमेयर्स ने तय किया कि वो पॉलीस्टाइरिन का निर्माण जारी रखेगी।
स्टाइरिन को खतरनाक और टॉक्सिक कैमिकल की श्रेणी में रखा गया है। स्टाइरिन के जरिए ऐसे प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है जो विस्तार योग्य होते हैं। इसे 17 डिग्री से कम तापमान में रखना जरुरी होता है। स्टाइरीन गैस को यहां अनुकूल तापमान में नहीं रखा गया था। जिसकी वजह से स्टोरेज चैंम्बर में दबाव बना और बताया जा रहा है कि इसी वजह से वॉल्व टूटा तथा गैस लीक की भयानक घटना हुई।