भाई की हत्या के इस मामले में शख्स को आखिरकार कोर्ट से इंसाफ मिल ही गया। दोषी को कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी। हालांकि पहली नजर में हर किसी को इस व्यक्ति को मिली यह सजा मुफीद ही लगेगी। लेकिन कानून की नजर में यह गलत था। जिस पर हाई कोर्ट ने दोषी को राहत देते हुए उसकी उम्र कैद की सजा माफ कर दी। कैदी जेल में 10 साल की सजा काट चुका है।

दरअसल, मामला करीब 40 साल पहले सन 1980 का है। बिहार के गया में बनारस सिंह ने अपने चचेरे भाई की हत्या कर दी थी। एक होटल में वह अपने भाई के साथ ही आया था। यहीं उसने इस घटना को अंजाम दिया था। हत्या के कुछ समय बाद इसकी जानकारी होटल कर्मचारियों को हुई। लेकिन भाई की हत्या कर बनारस सिंह वहां से फरार हो चुका था। हालांकि, बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। हत्या के आरोप में बनारस को उम्र कैद की सजा सुनाई गई।

बनारस सिंह ने मिली सजा के 10 साल जेल में गुजार भी लिए। लेकिन इसके बाद उसने पटना उच्च न्यायालय से मिली सजा के खिलाफ अपील की। बनारस सिंह की दलील थी कि हत्या करने के वक्त वह नाबालिग था। उसकी उम्र 17 साल 6 महीने थी। इसलिए उसे नाबालिग के तौर पर सजा मिले। हालांकि उसकी इस दलील को मानने से हाई कोर्ट ने इंकार कर दिया।

इसके बाद बनारस सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उसके वकील ने उच्च न्यायाल के फैसले के खिलाफ जाकर बिहार चाइल्ड्स एक्ट एंड जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का हवाला देते हुए अपना पक्ष रखा। इसके बाद ट्रायल कोर्ट से जवाब मांगा गया। निचली अदालत से आई रिपोर्ट में हाईस्कूल के सर्टिफिकेट और अन्य दस्तावेज से साबित हो गया कि बनारस सिंह ने जिस वक्त भाई की हत्या की, उस वक्त उसकी उम्र 17 साल 6 महीने ही थी।