महात्मा गांधी जब अपने सपनों के भारत की बात करते हैं तो वे सर्वाधिक जोर ग्राम स्वराज पर देते हैं। दरअसल, वे जीवन, समाज और शासन के एक ऐसे मॉडल को जरूरी मानते हैं जिसका बुनियादी ढांचा केंद्रित नहीं बल्कि विकेंद्रित हो। 1909 में उनकी यह फिक्र सैद्धांतिक रूप में ‘हिंद स्वराज’ पुस्तिका में सामने आई। आगे उनका जोर लगातार इस बात पर बना रहा कि गांवों को विकास की मुख्यधारा मे जोड़ने के नाम पर छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए मुखापेक्षी बनाना सही नहीं होगा।

दो अगस्त, 1942 को वे हरिजन में लिखते हैं, ‘ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि वह एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा जो अपनी जरूरतों के लिए पड़ोसी पर भी निर्भर नहीं करेगा।’ हालांकि इसी लेख में वे आगे यह भी कहते हैं कि अगर बहुत जरूरी हो तो पड़ोस की मदद ली जा सकती है लेकिन ऐसा परस्पर सहयोग की भावना के साथ होना चाहिए।

1992 में संविधान के 73वें संशोधन के माध्यम से पंचायती राज अधिनियम संसद से पारित हुआ। संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर 29 विषय पंचायती राज संस्थाओं को दिए गए। बीते तीन दशकों में महिला सशक्तीकरण से लेकर कई तरह के विकास कार्यों से गांवों की स्थिति में बड़ा परिवर्तन आया है। पर आज भी अधिकार और संसाधन को लेकर पंचायतों को और स्वायत्त करने की मांग उठती रहती है।

इस बीच, ग्राम स्वराज की संकल्पना से प्रेरित होकर कई दूसरी पहल भी सामने आई है। गत वर्ष ई-ग्राम स्वराज पोर्टल और मोबाइल एप्लीकेशन का लांच ऐसा ही एक कदम है। यह ऐप ग्राम पंचायतों को विकास परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एकल ‘इंटरफेस’ प्रदान करता है। इसका मकसद विकास योजनाओं से लेकर उसके पूरा होने तक की जानकारी सुलभ करना है। इससे गांव के हर व्यक्ति को योजनाओं के बारे में पता होगा कि वे कैसी चल रही हैं, कितनी राशि खर्च हो रहा है। ग्राम स्वराज एक बड़ा लक्ष्य है और उसे हासिल करने के लिए अभी कई और ठोस कदम उठाने होंगे।