किसी का फेसबुक या अन्य सोशल वेबसाइट पर अकाउंट उसके व्यक्तित्व का आईना होता है। अपने विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ यह नए लोगों के लिए कुछ नया सीखने की जगह भी है। खासतौर पर जो लोग रचना के क्षेत्र में मशहूर होते हैं, उनकी बातें लोगों को बहुत प्रभावित करती हैं। मैं रेडियो का पुराना श्रोता रहा हूं। पहले ‘आकाशवाणी’, फिर ‘विविध भारती’ और यह सिलसिला एफएम आने तक जारी रहा। निजी एफएम आने के बाद उम्मीद जगी कि ‘आकाशवाणी’ को प्रतिस्पर्धा मिलेगी और एक श्रोता की हैसियत से मैं फायदे में रहूंगा, क्योंकि रेडियो सही मायने में अभी भी भारत का जनमाध्यम है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
दिन-रात बोलते रहने वाले इन निजी एफएम स्टेशन के रेडियो उद्घोषकों से मैं जल्दी ही ऊब गया। मैं इनकी ऊट-पटांग बातों के अलावा इनसे कुछ और सुनना और देश-दुनिया के विभिन्न मुद्दों के बारे में इनकी राय जानना चाहता था। पता चला कि निजी एफएम स्टेशन पर समाचारों के प्रसारण की छूट नहीं है, इसलिए ये बेचारे दिन भर प्यार का इजहार कैसे करें… लड़कियों को कैसे रिझाएं… आदि से लेकर त्योहार कैसे मनाएं जैसी बातें करते रहते हैं। इस बीच दुनिया बदल रही थी, टीवी और रेडियो के प्रस्तोता अपने फेसबुक पेज के जरिए नए सेलिब्रटी बनने लग गए थे। मैं भी इस बदलती दुनिया के हिस्से के तौर पर ‘फेसबुक’ जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों में अपना मुकाम तलाशने लगा। यहां मुझे अखबार, टीवी और रेडियो के उन प्रस्तोताओं से दोस्ती करने का मौका मिला, जिनसे सीधे मुलाकात का मौका शायद कभी न मिल पाए।
‘फेसबुक’ और ‘ट्विटर’ जैसी वेबसाइटों में अखबार और टीवी के कई बड़े नाम देश-दुनिया के मुद्दों पर धारदार तरीके से अपनी बात रख जनमत बनाने का काम कर रहे हैं। लेकिन इसी दौर में एफएम रेडियो के स्वनामधन्य रेडियो जॉकी (प्रस्तोता) ‘हेलो, कैसे हैं आप लोग! क्या आपने कभी किसी से प्यार किया है…’ जैसी बेसिरपैर की बातें कर रहे हैं। जो वे रेडियो पर बोलते हैं, वही ‘फेसबुक’ जैसे मंचों पर भी कर रहे हैं। तर्क यह दिया जाता है कि सोशल मीडिया किसी का अपना व्यक्तिगत मंच है।
लेकिन जिस माध्यम की आजकल जनमत निर्माण में बड़ी भूमिका है, वहां लोग आपसे इसलिए भी जुड़े हुए हैं कि आप रेडियो के बडे प्रस्तोता हैं और देश-दुनिया और अन्य मुद्दों पर आपकी राय मायने रखती है। टीवी और समाचारपत्रों से जुड़े कुछ लोग राष्ट्रीय मुद्दों और घटनाओं पर बेबाकी से ‘फेसबुक’ के माध्यम से अपने विचार रख रहे हैं। वहीं निजी एफएम स्टेशन के ये रेडियो जॉकी, जिनके पास खासी तादाद में फेसबुक-मित्र मौजूद हैं, अपने अकाउंट को निजी एफएम का साइबर संस्करण बनाए हुए हैं। वहां उनकी बातों में न कोई दिशा है, न कोई विचार और न किसी बदलाव की छटपटाहट। उत्तर भारत के कई बड़े रेडियो जॉकी के फेसबुक खाते को खंगालने के बाद मैंने पाया कि ये रेडियो को एक ऐसा जनमाध्यम बनाने पर तुले हैं, जो यह चाहता ही नहीं कि लोग किसी मुद्दे पर सोचें।
मुझे लगता है कि ‘फेसबुक’ पर कुछ राय जाहिर करने के लिए विचार होने चाहिए और जो लोग विचार शून्यता के शिकार होते हैं, उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। वे हलकी बातें इसलिए भी करते हैं कि अगर उन्होंने किसी मुद्दे पर अपनी राय या विचार सामने रखे तो उनके सोचने-समझने के स्तर के साथ-साथ वैचारिक प्रतिबद्धता का भेद खुल जाएगा। हो सकता है कि किसी रेडियो चैनल के फेसबुक पेज पर लिखने की सीमा हो, लेकिन सोशल वेबसाइट पर अपने निजी खाते से तो बात की ही जा सकती है। इससे साथ-साथ यह भी होगा कि सोशल वेबसाइटों की गंभीरता और उपयोगिता में भी इजाफा होगा।
मुकुल श्रीवास्तव
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