अमेरिका से मैत्रीपूर्ण संबंध और आपसी सहयोग आवश्यक है। लेकिन इस बार गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद होना कई मामलों में खास है। यह आगमन न केवल आपसी संबंधों को मधुर बनाने के लिए प्रस्तावित है, बल्कि अपने साथ कई विवादों और मुद्दों को जन्म देने वाला भी है। हाल के दिनों में अखबारों में ऐसी खबरें प्रमुखता से प्रकाशित हुई हैं कि बराक ओबामा के भारत आगमन पर सुरक्षा की दृष्टि से तमाम तरह के इंतजाम किए गए हैं। जहां भी ओबामा के रुकने का कार्यक्रम है, वहां भारी पुलिस बल की मौजूदगी के साथ-साथ सामान्य नागरिकों के लिए कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाने हैं। अब तक भारत के इतिहास में किसी राष्ट्र प्रमुख के आगमन पर ऐसी व्यवस्था नहीं की गई थी।
ओबामा का भारत आगमन कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है। इस मौके पर दोनों देशों के बीच आर्थिक और कूटनीतिक सहित कई मसलों पर समझौते या सहमति के आसार हैं। मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र से लेकर सैन्य खरीदारी आपसी समन्वय के बगैर असंभव हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमेरिका के साथ बेहतर संबंध हमारी जरूरत में शामिल है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति ओबामा को मुख्य अतिथि के रूप में बुला कर देश की समूची सुरक्षा-व्यवस्था को कसौटी पर रख दिया जाए। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के नखरे इतने सारे हैं कि भारत में उनकी हर मांग को उसी रूप में शायद पूरा नहीं किया जा सकता। सबसे अच्छी मेजबानी के बावजूद अगर कोई हमारा मखौल उड़ाए तो ऐसे आतिथ्य को क्या कहा जाएगा! यह सही है कि ओबामा आतंकियों के निशाने पर हैं। लेकिन उसी लिहाज से उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित करना जरूरी है। और भारत की सुरक्षा व्यवस्था के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। इसलिए जाहिर है, इस मोर्चे पर मौजूदा हालत के मुकाबले देश की सरकार को कई गुना ज्यादा ऊर्जा खर्च करनी होगी।
बहरहाल, ओबामा का भारत आगमन भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ जनता के लिए भी सिरदर्द साबित होने वाला है। सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के नाम पर जहां जनता के पैसों को पानी की तरह बहाया जा रहा है, वहीं उस पर तमाम तरह के प्रतिबंध भी लाद दिए गए हैं। कई जगहों पर पूरे इलाके को दो-तीन या चार दिनों तक के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र बना दिया जाना आम जनता की जरूरतों और उसके मन पर कैसा असर डालेगा! जब इतनी बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती ओबामा की सुरक्षा के मद्देनजर होगी, तब आम जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? जरूरी नहीं है कि कोई भी घटना वहीं हो, जहां समूची सुरक्षा व्यवस्था को केंद्रित कर दिया जाए। आतंकवादी घटनाओं के मामले में दिल्ली का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। इसलिए सुरक्षा के सभी पहलुओं के साथ-साथ यह भी ध्यान रखे जाने की जरूरत है कि किन्हीं हालात में भारत या यहां की जनता का मजाक न उड़े!
ओबामा का भारत दौरा सुरक्षा या दूसरे लिहाज से कामयाब हो, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इससे भारत की प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आए। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान आम जनता को जिन घोषित-अघोषित प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था, वह किसी से छिपा नहीं है। अमेरिका के साथ संबंध बनाने की कीमत पर देश की साख के साथ अगर मजाक किया गया तो इसका दीर्घकालिक असर पड़ेगा। यह जरूर है कि बराक ओबामा की सुरक्षा के बहाने जितने बड़े पैमाने पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने हैं, वे अगर स्थायी होंगे, तो आम जनता की सुरक्षा के लिहाज से मददगार साबित होंगे।
नीरज प्रियदर्शी
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