इक्कीसवीं शताब्दी की शुरुआत से ही यह बात विभिन्न वैश्विक मंचों पर सुनाई देने लगी कि यह भारतीयों की सदी है। इसका मुख्य आधार संपूर्ण विश्व में सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश होने को माना जा रहा है। 2014 में सत्ता में आने के बाद से प्रधानमंत्री ने भी देश-विदेश में यह बात कई बार दोहराई है। इसकी अभिव्यक्ति वे अपने भाषणों में ‘सवा सौ करोड़ देशवासियों की मेरी टीम इंडिया’ उपमा देकर गर्व से करते हैं। यह बात जानकर हम सभी प्रसन्नता महसूस करते हैं। आज भारत विश्व में दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और विश्व में हर चौथा व्यक्ति भारतीय है।

इतनी बड़ी युवा आबादी की शक्ति और संसाधनों का तरीके से उपयोग किया जाए तो न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर की भांति है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के हांफते इंजन को सरपट दौड़ाने में सक्षम है। भारत के 65 करोड़ युवाओं को यदि उचित कौशल प्रशिक्षण युक्त बनाया जाए तो वे कुबेर के खजाने के समान हैं। आज विश्व युवा संसाधनों की कमी से जूझ रहा है जबकि भारतीय युवा आबादी उम्मीद की किरण की भांति है। अमेरिका में हमारे देश की प्रतिभाओं ने अपना लोहा मनवाया है। खाड़ी देशों में हमारी युवा आबादी सस्ते श्रम बल के रूप में बड़ी संख्या में मौजूद है। यहां तक कि मध्य एशिया के संकटग्रस्त इलाकों मसलन, सीरिया, इराक में भी भारतीय अत्यंत विषम परिस्थितियों में सराहनीय काम कर रहे हैं।

ऐसे अनेक उदाहरण विश्व के प्रत्येक कोने में हमें देखने को मिल जाएंगे। इन सभी लुभावनी बातों के अलावा दूसरा पहलू भी है जो हमें भविष्य की डरावनी तस्वीर दिखाता है। इतनी बड़ी युवा आबादी को यदि रोजगार के उचित अवसर नहीं मिल पाए तो उसके परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती। देश के संसाधनों पर बढ़ती आबादी का बोझ कितना अधिक है इस बात का छोटा-सा उदाहरण हाल ही में देखने को मिला जब उत्तर प्रदेश में क्लर्क के 300 पदों की भर्ती के लिए 23 लाख से अधिक आवेदन मिले। ऐसे उदाहरण देश के सभी राज्यों में हर भर्ती परीक्षा में नजर आते हैं। राजस्थान रोडवेज में परिचालक की भर्ती के लिए कई पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं ने आवेदन किया।

यह हमारे युवाओं में बढ़ रही बेरोजगारी की समस्या के विकराल पक्ष को उजागर करता है। यही युवा बेरोजगारी की अवस्था के अवसाद में गुनाह की तरफ कदम बढ़ा लेते हैं। हाल ही में जयपुर के एक व्यवसाई का अपहरण दो इंजीनियर युवाओं ने कर लिया। अपराध की दुनिया में बढ़ते युवाओं के कदमों को रोकने के लिए सरकार को गंभीरता पूर्वक प्रयास करने चाहिए ताकि युवा स्वर्णिम भारत बनाने में अपनी मजबूत भुजाओं से योगदान दे सकें और हम विश्वगुरु तथा विश्व शक्ति का दर्जा पाने की ओर बढ़ सकें। (जितेंद्र सिंह राठौड़, गिलांकोर)

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इनकी सेल्फी
आज सेल्फी अर्थात अपनी फोटो खुद खींचने कीबढ़ती दीवानगी लोगों पर इस कदर छा गई है कि वे उचित-अनुचित या अवसर का भी खयाल नहीं रखते। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में पत्रकारों का प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी लेने की होड़ लगाना क्या ठीक था? यह हरकत जनता की नजर में उनकी निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े करती है। जब पत्रकार ही प्रधानमंत्री का ‘फैन’ होगा तो क्या वह कभी उनके खिलाफ लिख पाएगा? (केसरी नंदन, आंबेडकर कॉलेज, दिल्ली)

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ज्यादा गंभीर
संपादकीय ‘मकसद और मिसाल’ (28 अक्तूबर) में गुजरात की शराबबंदी पर आपके विचार पढ़े। गुजरात में शराबबंदी के बावजूद वहां देसी दारू खूब बनती है, अंग्रेजी शराब ब्लैक में मिलती है और उसे पिया भी जाता है। अमदाबाद में जो घटना सामने आई थी उसमें ठेके से शराब पीने वाले लोग बीमार पड़ गए थे और उन्हें सिविल अस्पताल में दाखिल कराया गया था। यहां शराबबंदी होने के कारण ऊपर से सब ठीक दिखाई देता है पर अवैध शराब की वजह से समाज पर बुरा असर भी पड़ रहा है। शराब के अलावा मसाला और गुटखे के लोग बेहद आदी हैं। रिक्शा चलाने वाले से लेकर किशोर भी इन्हें खाते और थूक की पिचकारी मारते हुए दिखाई देंगे। यह भी ज्यादा गंभीर है। (हरेश परमार, रामनगर, जूनागढ़)

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राय से परहेज
हरियाणा में एक जिले की महिला पुलिस प्रमुख का तबादला सिर्फ इसलिए कर दिया गया कि उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के सामने किसी मामले को लेकर अपनी राय रखने का आत्मविश्वास दिखाया। यह कोई पहली बार नहीं है जब अपनी राय व्यक्त करने पर किसी अधिकारी का विरोध हुआ है। अपनी राय चार लोगों के बीच रखना तो आज जैसे हमारे देश में मुसीबत को न्योता देना हो गया है। एक तरफ जहां असहिष्णुता के विरोध में कई नामी गिरामी कलाकारों ने अपने पुरस्कार लौटा दिए तो दूसरी तरफ हमारे राजनेता सही और गलत के बीच की सीमा को भूलते जा रहे हैं। हमें समझना चाहिए कि असहिष्णुता का ऐसा माहौल देश को खोखला बना देगा। (अनीशा, नोएडा)

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लाभ ही लाभ
बिहार में नीतीश सरकार ने शराब पर पूर्ण पाबंदी लगा कर अपना एक बड़ा चुनावी वादा तुरंत पूरा किया है। इससे राजकोष में घाटा नहीं होगा बल्कि जनस्वास्थ्य में लाभ के साथ झगड़ों, दुर्घटनाओं, पारिवारिक हिंसा, महिला उत्पीड़न आदि के अतिरिक्त असंख्य आत्महत्याएं भी रुकेंगी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लौहपुरुष सरदार पटेल, मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह जैसे अनेक नेता भी शराब पर पूर्ण प्रतिबंध चाहते थे। अब नीतीश ने उन सबकी इच्छा पूरी कर दी है। बिहार के एक विपक्षी नेता ने लालू के दबदबे के रहते इस फैसले के अमल को लेकर संदेह जताया है। कुछ लोगों ने हरियाणा में बंसीलाल सरकार के समय दारू की कालाबाजारी होने पर शराबबंदी के अंत की आशंका जाहिर की है। उम्मीद है, नीतीश सरकार व्यापक जनहित में ऐसा हरगिज नहीं होने देगी। (वेद मामूरपुर, नरेला)