खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने पिछले नौ महीने में पचास हजार से ज्यादा मुकदमों की आॅनलाइन सुनवाई की है। पिछले साल के मुकाबले यह तेरह हजार अधिक है। हाई कोर्ट और जिला अदालतों में भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई हो रही है।

महामारी के दौर में यह एक जरूरी पहल है। इस योजना को तैयार करने और मूर्त रूप देने के लिए अमेरिका, सिंगापुर, तुर्की, कनाडा और इटली द्वारा अपनाई जा रही तकनीकों का अध्ययन किया गया है। इन देशों में सबसे अच्छा वर्चुअल कोर्ट प्रणाली काम कर रही है। इस प्रणाली से समय की बचत भी होगी और प्रक्रिया में भी गतिशीलता कायम होगी।

अक्सर अदालत में लंबित प्रकरणों में निष्कर्ष जल्दी नजर नहीं आता। तारीखों पर तारीखें आगे बढ़ती रहती हैं, जिससे लोगों का समय और पैसों की भी बबार्दी होती है। देश भर में उच्च तकनीक पर आधारित आॅनलाइन अदालतें होने से समय सीमा में कार्य होने की उम्मीद है। भविष्य के मद्देनजर वकीलों को भी इस तकनीकी के साथ सहज बनाया जाएगा।
’योगेश जोशी, बड़वाह, मप्र

वक्त के साथ

कोई भी नया साल चुनौतियों को भी अपने साथ लेकर आता ही है। उसके आगमन के साथ कई गुना उत्साह लोगों में देखा जाता है। सवाल को जवाब में बदलने के लिए बस कार्यशैली का अंतर होता है। सबक और ललक व्यक्ति को जिज्ञासु तथा महत्त्वाकांक्षी बनाती है।

वैश्विक स्तर पर इस मुश्किल दौर में आॅनलाइन शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है, जो कि सभ्यता और संस्कृति के साथ होनी चाहिए थी। लेकिन यह भी देखना होगा कि हमारे देशकाल में यह कितना उपयोगी होगा और कितने बच्चे इसके दायरे में आ पाएंगे, कितने बच्चे जरूरी शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। सच यह है कि ‘पलायन’ रोजमर्रा का एक हिस्सा है, भले ही इसके मानक समय के साथ बदल गए हों।

हमें इस विषय पर अपने अंदर भी झांक कर देखने का समय आ गया है, जिससे ‘स्वयं का साक्षात्कार’ हो जाए। केवल दूसरों की ओर अंगुली उठाने से हम अपना सुधार नहीं कर सकते। सृजन ही स्थायी निदान है। ऐतिहासिक घटनाक्रम इतनी जल्दी नहीं भुलाए जा सकते हैं, न ही उस दौर की सृजनात्मकता।
’देवेश त्रिपाठी, संत कबीर नगर, उप्र