कौन कहता है शीत युद्ध खत्म हो गया? कौन कहता है अंतराष्ट्रीय जासूसी अब नहीं होती? कौन कहता है जेम्स बांड की फिल्में अब अप्रासंगिक हो गई हैं? ऐसा होता तो इस साल जनवरी में ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या इराक में नहीं हुई होती। न ही पिछले शुक्रवार को तेहरान से सटे शहर अबसार्ड में हमला करके शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या कर दी जाती। इस बात से कौन इंकार करेगा कि इन दोनों हत्याओं के पीछे इजराइली एवं अमेरिकी गुप्तचरों का सौ फीसद हाथ है।
इजराइल का जन्म ही दोषपूर्ण रहा है। उसे अपने अस्तित्व के लिए इसी तरह, अरब देशों के साथ संघर्ष में रहना पड़ रहा है। जब पकिस्तान जैसे गैरजिम्मेदार देश को परमाणु बम विकसित करने की छूट दी गई तो ईरान को क्यों महरूम रखने की अंतरराष्ट्रीय साजिश की जा रही है? ऐसे समय में जब नव निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरानी परमाणु समझौता को वापस बहाल करने का संकेत दिए थे, ईरानी परमाणु वैज्ञानिक की हत्या उसमें खलल बन सकती है।
’जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी (जमशेदपुर)
पर्यावरण और हम
आज मानव सभ्यता को सबसे बड़ा खतरा मानव से ही है। विडंबना देखिए, अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का दोहन करने वाला मानव ही प्रकृति को बचाने के लिए बड़े-बड़े पर्यावरण सम्मेलन करता है। लेकिन साथ ही प्राकृतिक संसाधनों को कुचल कर विकास का पहिया भी घुमाता है। नतीजा यह होता है कि न तो जलवायु में कोई सुधार होता है, न ही प्रजातियों के विलुप्त होने में कमी आती है।
सच्चाई तो यह है कि मलीन वातावरण का दुष्प्रभाव सीधा स्वास्थय पर पड़ता है। नई बीमारियों और महामारियों का जन्म होता है, जिनका इलाज न कुदरत के पास होता है, न विज्ञान के पास। फिर चाहे वो कोरोना जैसी महामारी हो या कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी सभी पर्यावरण असंतुलन का ही परिणाम हैं।
’रोहित कुमार, शिमला</p>