इससे हमारे व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि होती है, जिससे हम नए स्थानों, वहां की संस्कृति, जीवनशैली को जानने का मौका मिलता है और इससे हमारी सोच और दृष्टिकोण में बदलाव आता है। आज के समय में सबसे अधिक यात्राएं पर्वतीय क्षेत्रों, पहाड़ियों जैसे जगहों की हो रही हैं, क्योंकि वे जगहें प्रकृति के सबसे करीब होने का अहसास दिलाती है।

हमें वहां सबसे ज्यादा खुशी मिलती है, भले ही हम एक-दो दिन के लिए जाएं या दो-तीन हफ्तों के लिए। शहर के लोग महीने में एक-दो सप्ताहांत जरूर वहां के चक्कर लगा आते है। पर आजकल लोग वहां घूमने जाते हैं तो अपने साथ ढेर सारे खाने-पीने का सामान ले जाते हैं और उसका प्रयोग करके उससे बचा हुआ कचरा वहीं छोड़कर आ जाते हैं।

इससे प्रकृति को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। लोग सबसे अधिक अपने पीछे वहां पर प्लास्टिक के बोतल और चिप्स-नमकीन जैसे अन्य खाद्य पदार्थों के बचे हुए पैकेट आदि छोड़ कर आ रहे हैं। बढ़ते हुए प्लास्टिक कचरे से वहां की सुंदरता में कमी आ रही है और प्रदूषण भी तेजी से फैल रहा है। कुछ साल पहले तक पहाड़ और पर्वतीय क्षेत्र प्रदूषण से मुक्त थे, लेकिन अब जिन जगहों पर मनुष्य के कदम पड़ रहे हैं, वे सब प्रदूषण की मार झेलने को मजबूर हो रहे हैं।

एक तो पर्वतीय क्षेत्रों पर रहने वालों के लिए पर्यटन ही कमाई का एकमात्र जरिया होता है, जिससे वे अपनी मातृभूमि में गुजर-बसर कर सकें। दूसरा, उनके पास अन्य राज्यों की तरह विकास करने का विकल्प नहीं होता है, क्योंकि उससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ सकता है।

इसलिए वहां पर घूमने जाने वाले यात्रियों को यह सोचना चाहिए कि अपने साथ-साथ प्रकृति और वहां पर रहने वाले लोगों के बारे में भी सोचें और वापस जाते समय अपने कचरे को निश्चित कूड़ेदान में फेंकें, ताकि दुबारा जब वे जाएं तो वहां प्रकृति की बेहतरीन, मनमोहक तस्वीर को अपने कैमरे में खींच सके, न कि कूड़े से उत्पन्न कचरे के पहाड़ के दृश्य। अपने घर वापस आने से पहले उनके घर को साफ करके आएं।
आरती कुशवाहा, गुरुग्राम।

विकास में युवा

भारत विश्व में सबसे युवा देश है। इसके बावजूद यहां के युवाओं की देश के विकास में भागीदारी अपेक्षित नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां की युवा जनसंख्या बड़ी तादाद में बेरोजगार है और रोजगार के चक्कर में यह शक्ति अपनी ऊर्जा देश के विकास न लगा कर अन्यथा कामों या फिर खुद के विकास गंवाती है। जब कोई खुद दूसरों के सहारे चल रहा है तो वह दूसरे को कैसे सहारा दे सकता है। भारत के युवा जब तक स्वावलंबी नहीं हो जाते हैं, तब तक यह युवा शक्ति देश के विकास की मुख्यधारा में नहीं आ सकती है।

दरअसल, आज भी युवा पुराने सिद्धांतों पर कार्य कर रहे हैं और सरकारी नौकरी इनके लिए जीविकोपार्जन के सूची में सबसे ऊपरी स्थान पर है। सरकारी नौकरी के चक्कर में न जाने कितने वर्ष अपने जिंदगी के गंवा दिए जाते हैं और इस दरमियान कोई अतिरिक्त कौशल भी नहीं सीख पाते। ज्यादातर सरकारी नौकरियों का हाल यह है कि या वह तो कोर्ट के चक्कर में फंसी हैं या परीक्षा कराने वाले आयोग के लापरवाह होने के कारण परिणामों का कुछ अता-पता नहीं है।

किसी देश के पास संसाधन कितने भी बड़े और अच्छे क्यों न हों, अगर हम उसका अच्छे से इस्तेमाल करने नहीं जानते हैं तो वह कूड़े के ढेर के समान है। भारत की युवा शक्ति अवसादग्रस्त चल रही है। ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को सही से देख-रेख में असफल रहें हैं जो इस युवा शक्ति को अवसाद में जाने का मुख्य कारण है। अभिभावक को चाहिए समय-समय पर अपने बच्चों से बात करते रहें और उनके मन में क्या चल रहा है, ये भी जानने की कोशिश करनी चाहिए। शायद कुछ जिंदगियां अवसाद और आत्महत्या करने से बच जाएं।

वहीं सरकार को चाहिए कि उनकी शिक्षा के साथ ही रोजगारपरक शिक्षा दे, ताकि भविष्य में इनको अपने जीविकापार्जन के लिए केवल शिक्षा पर ही आश्रित न रहना पड़े और ये जल्द आत्मनिर्भर बन सके। यहीं से फिर यह युवाशक्ति देश के विकास के काम आएगी और तब हम विश्व में सबसे युवा देश का लाभ उठा सकेंगे।
अवनीश कुमार गुप्ता, आजमगढ़।

बहादुरी का प्रतीक

हाल ही में नौसेना के सेवानिवृत्त कमांडर अभिलाष टामी ने गोल्डन ग्लोब दौड़ पूरी कर इतिहास रच दिया है। ऐसा कीर्तिमान स्थापित करने वाले कमांडर अभिलाष ने पहले भारतीय के रूप में निश्चित रूप से देश का मान बढ़ाया है। 2018 में नौका दौड़ में दुर्घटनाग्रस्त होकर घायल होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दुनिया की सबसे खतरनाक नौका प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर रहे।

स्वाभाविक ही तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड प्राप्त करने वाले चौवालीस वर्षीय अभिलाष टामी की सभी नौसेना कर्मियों ने सराहना की है। 2022 में शुरू हुए इस प्रतियोगिता में सोलह खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था, लेकिन सिर्फ तीन प्रतियोगियों ने ही यह दौड़ पूरी करने में सफलता प्राप्त की। पूर्व नौसेना कमांडर ने जान को हथेली पर रखकर इतिहास रच दिया है। अभिलाष टामी सभी के लिए निश्चित रूप से प्रेरणास्रोत हैं।
अनित कुमार राय टिंकू, बाघमारा, धनबाद।

तरीके पर बहस

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के आरोपी को बीस वर्ष की उम्र से ही जेल में रखने के बाद रिहा करना सियासत का ही कमाल है। इसी तरह फांसी के तरीकों में परिवर्तन और सुधार को लेकर वर्षों से बहस चल रही है, लेकिन किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सका है। संपादकीय ‘सजा की सूरत’ (संपादकीय, 4 मई) में उल्लेख है कि फांसी पर लटकाने से व्यक्ति की तड़प-तड़प कर मौत में निर्दयता और क्रूरता झलकती है।

विश्व अन्य देशों में भी अन्य तरीके से फांसी या मृत्यु दंड दिया जा रहा है, तो भारत में भी फांसी के नियम, प्रक्रिया और तरीकों में आवश्यक सुधार किया जाए, ताकि फांसी या मृत्यु दंड समय पर दिया जा सके और इसके स्वरूप में सुधार लाया जा सके। आखिर मनुष्य अपने संवेदनात्मक मूल्यों से संचालित होता है और उसमें लगातार क्रूरता के तत्त्व कम किए जाने चाहिए।
बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, उज्जैन।