मनुष्य जन्म लेता है और जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो जाती, किसी न किसी रूप में वह राजनीति के परिवेश में ही रहता है। चाहे वह घर में हो या समाज के बीच हो। वह राजनीति को छोड़ नहीं सकता। अब सवाल उठता है कि क्या राजनीति एक नफरत करने की चीज है? या उसको अपना कर समाज और देश के हित में कार्य करने की आवश्यकता है। मगर आज जिस तरह का राजनीतिक माहौल है, उससे एक सभ्य आदमी घबराता है और उससे बचता है। शायद यही वजह है कि आज भारत का एक पढ़ा-लिखा सूझ-बूझ रखने वाला वर्ग राजनीति को एक छूत की तरह देखता है और जहां भी उसके -परिवेश में राजनीतिक चर्चा छिड़ती है, वह अपनी नाक-भवें सिकोड़ने लगता है और प्रतिक्रिया देता है कि उसे राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है।

ऐसा कह कर वह अपने आपको तसल्ली जरूर देता है, मगर समाज और देश हित में उसके इस विचार को स्वीकार करना गलत होगा? ऐसी सोच के व्यक्ति को स्वार्थी कहना ही उचित होगा इस तरह का दृष्टिकोण रखते हुए वह अपनी सुरक्षा और व्यवस्थाओं को किसी भी तरह की सोच रखने वाली राजनीतिक सत्ता के हवाले कर देता है। फिर ऐसी राजनीतिक सत्ता द्वारा बनाई गई योजनाओं को कोसता है जो उसके सोच से तालमेल नहीं खाती।

देश की आजादी से पहले अंग्रेजों द्वारा कराई गई जनगणना के पेशा के कॉलम में खुद महात्मा गांधी ने राजनीतिक लिखा था। महात्मा गांधी ने जिस राजनीति को अपना पेशा बताया, वह हमारे लिए त्याज्य या न अपनाने वाला कर्म कैसे हो सकता है? अगर हम मनुष्य जीवन के विकास पर नजर दौड़ाएं तो राजनीति हमें घटिया नहीं, बल्कि श्रेष्ठ कर्म लगेगी। इसका उदाहरण हम अपने भारत देश की दे सकते हैं कि जिसे हम महापुरुष का दर्जा देते हैं, उनमें एक बड़ी शृंखला राजनीति करने वालों की है।

इसमें दो राय नहीं है कि आज हमारे देश की राजनीति लोभ और लालच के इर्द-गिर्द ही परिक्रमा करते हुए दिखती है, जिससे हमें निराशा भी हुई है। आज अपराधी, बेईमान, चरित्रहीन और नासमझ नेताओं के हाथों राजनीति का चीरहरण हो रहा है। इन सबसे संवेदनशील, ईमानदार लोगों के अंदर राजनीति के प्रति नकारात्मक सोच होना स्वाभाविक है। लेकिन यह बात सच है कि राजनीति के पतन या उसकी विकृति से कहीं ज्यादा खतरनाक है राजनीति से अपने आपको दूर करने की प्रवृत्ति। यह भी हमारे व्यक्तिगत वैचारिक विकास का एक हिस्सा है। इससे बड़ी आत्मघाती सोच क्या हो सकती है कि जिस राजनीति के हाथों में हमारी नीति निर्धारण की शक्ति है, उसी को हम खराब काम मानकर खुद को अलग-थलग कर लेते हैं।

यह भी सही है कि हर व्यक्ति को राजनीति करने की जरूरत नहीं है। समाज व्यवस्था राजनीति पर जितना कम निर्भर हो, उतना अच्छा है। मगर राजनीति का हर फील्ड में हस्तक्षेप और प्रभाव चिंता का विषय है। इससे धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक सभी क्षेत्रों में विकृतियां पैदा हुई हैं। इनको आवश्यक न्यूनतम स्तर तक लाने की आवश्यकता है। और यह भी राजनीति से ही संभव है। वास्तव में आज समाज और देश हित में सोचने और अच्छे लोगों को राजनीति में सक्रिय होने की आवश्यकता है। जहां एक परिवार में लोग डॉक्टर-इंजीनियर बनाने की सोच रखते हैं, मेरा मानना है कि एक कुशल राजनेता बनाने की ओर भी ध्यान देना चाहिए। राजनेताओं को भी ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
’मोहम्मद आसिफ, जामिया नगर, दिल्ली</p>