देश में राजनीति के मायने विगत कई वर्षों से बदले-बदले नजर आ रहे हैं। राजनीति शब्द की महत्ता खतरे में नजर आ रही है। न तो कोई ‘राज’ रहा और न ही कोई ‘नीति’ रही। दोनो असहाय और गुमनाम अवस्थाओं में दिख रहे हैं। वर्तमान दौर का परिदृश्य और उदाहरण भी यही जाहिर करते हैं। जनता जनार्दन की उम्मीदें चुनिंदा जन-प्रतिनिधियों से होती हैं, लेकिन आपसी आरोप-प्रत्यारोप और वर्चस्व की लड़ाई में इस तरह की उम्मीदें दम तोड़ देती हैं।
सिद्धांतों की राजनीति करने के बजाय एक दूसरे को नीचा दिखाने की राजनेताओं के बीच होड़-सी चल रही है। अपने विरोधियों या फिर प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी राजनीति को प्रदूषित करने में पीछे नहीं रहती। छल, कपट, अपराध, घोटाले, जानलेवा हमले, वर्चस्व की उठा-पठक और कुर्सी मोह की खींचातानी, भ्रष्टाचार आदि।
देश और समाज के विकास में कर्तव्यों के आक्सीजन की कमी नजर नहीं आती। इसके बावजूद राजनीति को पारदर्शिता से पूर्ण नहीं बनाया जाता। राजनीति में जन-सेवा भाव और विकास और प्रगति के पहलुओं को शामिल होना ही चाहिए। यही राजनेताओं के कर्तव्य का पालन है।
स्वच्छ, अच्छी और पारदर्शी कर्तव्यनिष्ठ राजनीतिक सफर में इन गत्यावरोधकों को हटाना जरूरी हो जाता है। तभी राजनीति के सही मायने निकल कर सामने आएंगे और सार्थकता भी सिद्ध होगी।
सवाल है कि क्या राजनीति को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए हमारे राजनेताओं की सोच में उच्च्तम स्तर का परिवर्तन आएगा? भारत का विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसकी गरिमा को बनाए रखने के लिए एकजुटता से देश और समाज के चुहुमुंखी विकास के लिए कुर्सीमोह त्याग कर राजनेताओं को आगे आना होगा। हमारी राजनीति का स्तर ऊपर उठाना होगा, ताकि दूसरे देशों के सामने भारत और भारत की राजनीति को एक बेहतर उदाहरण के रूप में देखा जाए। सकारात्मक पहलू ही देश के विकास में योगदान देते हैं।
’योगेश जोशी, बड़वाह, मप्र
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