विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने लोकसभा में विपक्ष की अनुपस्थिति में जिस ढंग से भगोड़े ललित मोदी को पासपोर्ट दिलवाने में किए गुनाह पर भावनात्मक लीपापोती कर अपना बचाव करने की कोशिश की, वह उनकी राजनीतिक कमाई पर बट्टा है।

यदि वे सच्चे दिल से इसे स्वीकार कर इस्तीफा देतीं तो निश्चित ही अपना राजनीतिक कद बढ़ा लेतीं। वे कहती हैं कि उन्होंने भगोड़े ललित मोदी को ब्रिटेन से पुर्तगाल के आव्रजन में ब्रिटिश अधिकारियों से कोई लिखित व्यवहार नहीं किया। ‘मुझ पर आरोप लगाने वालों के पास कोई कागज है तो बताएं?’ लेकिन अपने इसी भाषण के दौरान वे यह भी कह जाती हैं कि उनकी ललित मोदी से फोन पर बात हुई और उसके बाद फोन पर ही उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से कहा था कि यदि वे अपने किसी नियम के तहत ललित मोदी को ब्रिटेन से जाने की अनुमति देते हैं, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

इस बात की स्वीकारोक्ति में ही उनकी गुनाह कबूली साफ हो जाती है। उन्होंने यह किस हैसियत से किया? यह पद की जिम्मेदारी से इतर उसका दुरुपयोग नहीं तो क्या है? भगोड़े और मनी लांड्रिंग के आरोपी ललित मोदी के लिए किया गया यह गुनाह उसकी पत्नी को सत्रह साल से कैंसर होने और उसके इलाज के लिए मानवीय मुलम्मा चढ़ाने से छुप नहीं जाता है।

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जिस भगोड़े व्यक्ति को देश खोज रहा है, वह मजे से ब्रिटेन में है। वह देश की विदेश मंत्री को फोन करता है और विदेश मंत्री उसे पकड़वाने के बजाय उपकृत करती हैं। यह सब उपकार वे विदेश मंत्रालय के सारे नियम कायदों और अपने पद की जिम्मेदारी को दरकिनार कर और बिना किसी को विश्वास में लिए ऊपरी तौर पर करती हैं। यदि यह आपराधिक कृत्य नहीं था, तो उन्हें बाकायदा ‘व्यवस्था’ के जरिए इसे करना चाहिए था। अब जब चोरी पकड़ी गई तो मानवीय आधार का ढोल पीटा जा रहा है।

सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में यह भी कहा कि लगता है, उनके ग्रह खराब चल रहे हैं। जब सच्चाई छुपाने के खेल हों, ग्रह कितने ही अच्छे क्यों न हों, खराब हो ही जाते हैं। इसके लिए कोई और नहीं वे खुद जिम्मेदार हैं।

 

रामचंद्र शर्मा, तरुछाया नगर, जयपुरे

 

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