जोखिम का आधार

निजी ईमेल अकाउंट पर जाने-अनजाने विज्ञापनों की धमक देख कर चौंकना लाजिमी है। इस पर कोई सवाल करता, उससे पहले ‘ट्राई’ के अध्यक्ष की सूचनाएं सार्वजानिक हो गर्इं। वह भी सबसे सुरक्षित कहे जाने वाले ‘आधार’ के जरिए। अगर हमारा ‘आधार’ निराधार हो जाए तो दावों का क्या होगा? क्या जानकारियां सार्वजानिक हुई होती हैं कि हमारे मोबाइल पर अवांछित संदेश आते रहते हैं? दावे कुछ भी हों, गोपनीयता खुलेआम बाजारों में नीलाम हो रहीं है। आंकड़े चोरी करने की तकनीक के आगे सारी तकनीक नतमस्तक हैं। वहीं ‘केवाईसी’ यानी ‘ग्राहक को जानो’ के नाम पर जो सूचनाएं ली जा रही हैं, उस पर डाके नहीं पड़ रहें हैं, इसकी क्या गारंटी है? सुरक्षित जेल भी तोड़ दिए जाते हैं तो फिर इंटरनेट की हैसियत क्या है! सच तो यह है कि हम अपने बनाये जाल में खुद ही उलझते जा रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जहां से वापस निकल पाना भी नामुमकिन हो जाएगा। तरक्की की दौड़ ने हमारी गोपनीयता ही नहीं, नींद भी चुरा रखी है।

एमके मिश्रा, रातू, रांची

इंतजाम में लापरवाही

वर्षा अनेक क्षेत्रों में लाभदायक हो सकती है, लेकिन अत्यधिक सघन वर्षा हर किसी के लिए बाधा उत्पन्न कर देती है। इससे सामाजिक और आर्थिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। पेड़ गिरना, सड़क धंसना, इमारतें गिरना, बाढ़ आना आदि वर्षा के अनेक दुष्प्रभाव है, जिनके कारण न केवल मनुष्य को हानि होती है, बल्कि वन्य जीव भी प्रभावित होते हैं।

यह विचारणीय प्रश्न है कि हर साल बारिश से अपार जन-धन की हानि होती है, फिर भी देश में इस समस्या से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम अभी तक उपलब्ध नहीं है। बिहार के एक सरकारी अस्पताल में पानी भरना वहां के प्रशासनिक तंत्र के ढीले-ढाले रवैये को दर्शाता है। हमारे देश में जल निकास की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण सड़कों पर जल भर जाता है और परिवहन व्यवस्था चौपट हो जाती है। इस कारण बचाव टीम भी अपनी पूरी मेहनत से कुछ ही लोगों को बचा पाती है।

इसलिए सरकार को चाहिए कि वह वर्षा, बाढ़ जैसी समस्याओं से निपटने के लिए जल निकास की उचित व्यवस्था पहले से ही बना कर रखे, ताकि आर्थिक एवं जन-हानि से बचा जा सके। इसके अतिरिक्त यह हमारी भी नैतिक जिम्मेदरी बनती है कि हम कूड़ा-कर्कट डाल कर जल निकास के मार्ग को बाधित न करें और बाढ़ जैसी स्थिति से निपटने में एक दूसरे का सहयोग करें।

एसके बरनी, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश</strong>