प्रतिपक्ष को अपनी ऊर्जा और चेतना का अविरल प्रवाह जारी रखना होगा। उन्हें संभलना होगा, समर्थकों को साधे रखना होगा, अपना आत्मविश्वास जगाना होगा और लोकतंत्र की सार्थकता सुनिश्चित करने के लिए सशक्त प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वहन भी करना होगा। यह हमारे लोकतंत्र की परिपक्वता का ही चमत्कार है कि लगभग शून्य से शिखर तक का सफर वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी ने हमारे सामने पूरा किया है। दरअसल, प्रतिपक्ष को आत्मविश्वास जागृत करने की नितांत आवश्यकता है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में प्रतिपक्ष के सम्मुख अस्तित्व का संकट, आंशिक तौर पर ही सही, मगर लोकतंत्र के शुभचिंतकों के लिए चिंता का विषय है। निश्चित रूप से राजनीति का एकतरफा हो जाना स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना में बाधक सिद्ध होता है।
मुद्दे की बात यह कि बेहतर हो सत्तापक्ष निरंकुश न हो जाए, व्यापक जनमत का समर्थन दंभ का कारण न बन जाए, साथ ही गिरते हुए को और अधिक न गिराया जाए। इस तथ्य को भी बखूबी समझ लिया जाना चाहिए कि देश के नागरिकों का राजनीति के प्रति जितना अधिक विरक्ति भाव होगा, उतनी ही अधिक संभावना लोकतंत्र के एकतंत्र में परिवर्तित होने को लेकर होगी। इसमें अति न हो, सशक्त प्रतिपक्ष की उपस्थिति ही ऐसा सुनिश्चित कर सकती है। अन्यथा स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा भी दौर आया था, जिसने लोकतंत्र के नुमाइंदों के बीच जमकर कोहराम मचा कर रख दिया था। हमें इतिहास से सतर्कता की सीख मिले तो ऐसी सीख ले लेनी चाहिए।
आम नागरिक, जिनका राजनीति से नाता हो या न हो, लेकिन वे भी यही चाहेंगे कि प्रतिपक्ष भी सशक्त हो। सरकार प्रतिपक्ष का भय पाले और कुछ गलत न करें। प्रतिपक्ष सत्ता में आने की आतुरता का भाव लिए अपनी भूमिका को सतर्कता से निभाए। निश्चित ही जब सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष अपने-अपने राजनीतिक धर्म का परिपालन करते रहेंगे, तब हम विकसित भारत की परिकल्पना को साकार स्वरूप लेते हुए देख सकेंगे। वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में प्रतिपक्ष एकला चले या संयुक्त रूप से चले, लेकिन चले और फिर दौड़े जरूर।
स्वस्थ लोकतंत्र को बरकरार रखने के लिए सत्तापक्ष एवं प्रतिपक्ष में अधिक अंतर नहीं होना चाहिए। जब तक आम नागरिकों के समक्ष सत्तापक्ष का सक्षम विकल्प नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र डांवाडोल स्थिति में ही दिखाई देगा। ऐसी स्थिति सत्तापक्ष की निरंकुश मनोवृत्ति का स्पष्ट परिचय देखने को मिल सकता है। वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में नागरिकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो वर्तमान नेतृत्व की कार्यप्रणाली से इत्तिफाक नहीं रखता। लोकतंत्र के उत्तम स्वास्थ्य के लिए किसी न किसी रूप में आम नागरिकों के समक्ष सत्तापक्ष का विकल्प लोकतंत्र की सार्थकता को सिद्ध करने में प्रबल रूप से सहायक सिद्ध होता है। मुद्दे की बात यह कि प्रतिपक्ष अपनी बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करे, यही समय की मांग है। अन्यथा देश में लोकतंत्र की जड़ें खोखली होने के आसार नजर आते हैं।
- राजेंद्र बज, देवास, मप्र