चुनावी वायदे
देश में चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां गिरगिट की तरह रंग बदलने लगती हैं। चुनावों में किसान, दलित, गरीब और पिछड़े याद आते हैं और उनके विकास की बातें खूब कही जाने लगती हैं। समाज में बदलाव का भरोसा दिलाया जाता है लेकिन चुनाव खत्म होने पर नेता उस क्षेत्र को ही भूल जाते हैं जहां वे वायदे करके आए थे। देश की महत्त्वपूर्ण सेवा करने और अन्नदाता कहे जाने वाले किसानों की सुध कब ली जाएगी?
’कांतिलाल मांडोत, सूरत
डोप का डंक
रियो ओेलंपिक में भारतीय पहलवान नरसिंह यादव के डोपिंग प्रकरण को लोग भूले नहीं थे कि एशियन एथलेटिक्स चैंपियन, शॉटपुट खिलाड़ी मनप्रीत कौर डोप टेस्ट में फेल हो गई। अभी दर्जन भर खिलाड़ियों के नाम आने बाकी हैं। रूसी खिलाड़ियों पर विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी की गाज पहले ही गिर चुकी है। खेल जगत में हमारे देश की शर्मनाक स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत डोपिंग के मामले में केवल रूस और इटली से पीछे है। इस तरह डोपिंग में कई जूनियर खिलाड़ियों का नाम आना गंभीर चिंता का विषय है। डोप का डंक किसी को नहीं बख्शता। इससे खिलाड़ी के साथ-साथ देश की भी बदनामी होती है।
इसके मद्देनजर खेल क्लबों और देश की खेल संस्थाओं को डोपिंग को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। खिलाड़ी कौन-सी दवाएं ले सकते हैं कौन-सी नहीं, किस तरह के खाद्य पदार्थ वे इस्तेमाल कर रहे हैं, इस बात का खयाल खेल संस्थाओं को जरूर रखना चाहिए। साथ ही, समय-समय पर खिलाड़ियों की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिए। अगर हम छोटे स्तर पर खिलाड़ियों को डोपमुक्त करके बाहर भेजेंगे तो सभी आशंकाओं से मुक्त खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाएंगे।
’सूर्यकांता, वजीर हसन रोड, लखनऊ</p>
शिशुओं की तुतलाहट
कालू राम शर्मा ने ‘ध्वनियों के खेल’ (दुनिया मेरे आगे, 26 जुलाई) में शिशुओं की तुतलाहट को लेकर जो कहा है उसमें कुछ संशोधन अपेक्षित है। तीन-चार वर्ष के शिशुओं की तुतलाहट की ओर ध्यान देने पर मैंने देखा है कि शिशु शुद्ध और अशुद्ध उच्चारण में अंतर करना जानते हैं हालांकि कभी-कभी स्वयं शुद्ध नहीं बोल पाते हैं। शिशु-वाणी के ऐसे कुछ उदाहरण मैंने इकट्ठा कर रखे हैं। एक बार मेरा नाती किसी चीज की ओर इशारा करके कह रहा था- ‘ये एथी है।’
मेरी समझ में नहीं आया और मैंने पूछा- ‘एथी?’ उसने कहा- ‘एथी नहीं, एथी।’ दो-तीन बार इसी तरह प्रश्नोत्तर चलता रहा। कुछ देर बाद मेरी समझ में आया कि वह कहना चाह रहा था ‘एसी’। अर्थात शुद्ध और अशुद्ध का अंतर वह जानता था लेकिन कह नहीं पा रहा था। इससे यह सीख भी मिलती है कि शिशुओं के साथ तुतला कर कभी नहीं बोलना चाहिए।
’हेमचंद्र पांडे, हौज खास़, नई दिल्ली</p>