‘लग गया तो तीर नहीं तो तुक्का तो है ही; पलट कर संभल जाएंगे।’ हमारे नेताओं की राजनीतिक बयानबाजी आजकल इसी ढर्रे पर हो रही है। वे पहले बड़े जोर-शोर से अपनी बात मीडिया में कहेंगे। फिर दांव गलत बैठता देखा तो फरमाएंगे कि ‘मेरी बात को तोड़-मोड़ कर पेश किया गया; मैंने वैसा नहीं, ऐसा कहा था।’
वादा करके भूल जाना या याद होते हुए भी भूलने का नाटक करना राजनीतिकों की आदतों में शुमार हो गया है। ऐसे पलटूरामों पर कैसे भरोसा करे आम मतदाता जो चुनाव के वक्त तो उनके अपने हो जाते हैं और बाद में पराए से भी ज्यादा निष्ठुर!
महेश नेनावा, गिरधर नगर, इंदौर
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