सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि सर्वेक्षण और पंजीकरण से पहले वह निर्वाचन आयोग से मिल कर जिन लोगों को मताधिकार पत्र निर्गत करती है, उनके पास बुनियादी सुविधाओं के अलावा जीवनयापन के लिए उन्हें योग्यतानुसार रोजगार उपलब्ध कराए।

सिर्फ उन्हें ट्रकों में जानवरों की तरह लाद कर अपने भाषण में भीड़तंत्र में तब्दील करना, उन्हें चुनावी दिनों में नोट या टुकड़े दिखा कर, मतदान केंद्रों में उनके कतारबद्ध फोटो खिंचवा कर प्रेस विज्ञप्ति जारी करना और उन्हें जागरूक मतदाता नागरिक के रूप में प्रस्तुत करना दरअसल ठगने की कुनीति है।

ऐसी नागरिकता अमानवीयता के सिवा कुछ भी नहीं। इन्हीं हालात में अक्सर बशीर बद्र याद आते हैं- ‘वही ताज है, वही तख्त है, वही जहर है, वही जाम है / ये वही खुदा की जमीन है, ये वही बुतों का निजाम है!’

विनीता असर, पलामू, झारखंड

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta